वियज दिवस: 'मैं अपना टैंक नहीं छोड़ूंगा, दुश्मन मेरे सामने है'... खेत्रपाल ने रोक दी थी पाकिस्तान की घुसपैठ
सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल भारतीय सेना अधिकारी और टैंक कमांडर थे। उन्हें भारतीय टैंकों के महारथी के रूप में भी जाना जाता है और जिन्हें 10 टैंक विध्वंस का श्रेय दिया जाता है।
विस्तार
16 दिसंबर को विजय दिवस के अवसर पर भारतीय सेना की शौर्य गाथाओं का पुनः स्मरण किया जाता है। ऐसे ही एक वीर शहीद थे सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अपने अदम्य साहस और बलिदान से युद्ध का रुख बदल दिया था। उनकी बहादुरी का आज भी हर भारतीय को गर्व है।
युद्ध के दौरान, सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने पाकिस्तानी टैंकों की घेराबंदी में अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन पर टूट पड़े थे। जब उन्हें आदेश मिला कि टैंक छोड़ दें क्योंकि वह आग की लपटों से घिर चुके थे, उनका जवाब था, मेरी गन अभी भी काम कर रही है, दुश्मन मेरे सामने हैं, और मैं इन्हें मार दूंगा। अपनी गंभीर चोटों के बावजूद, उन्होंने एक पाकिस्तानी टैंक को नष्ट किया, लेकिन इसके बाद वह बुरी तरह घायल हो गए और शहीद हो गए।
बसंतर की लड़ाई और खेत्रपाल का योगदान
मेजर जनरल (वेटरन) चंद्र प्रकाश बताते हैं कि 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था। उस समय सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल अहमद नगर में यंग ऑफिसर्स कोर्स कर रहे थे, जिन्हें युद्ध में शामिल होने के लिए जल्द वापस बुलाया गया। वे वेस्टर्न कमांड के तहत शकरगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी के पास लड़ाई में शामिल हुए। यह लड़ाई 1971 के भारत-पाक युद्ध की सबसे भीषण टैंक लड़ाईयों में से एक मानी जाती है। खेत्रपाल ने इस लड़ाई के दौरान चार दुश्मन टैंक नष्ट किए और पाकिस्तान के मंसूबों को नाकाम किया। उनके साहस और युद्ध कौशल के कारण पाकिस्तान की सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
मां की गर्वित बातें और टाइगर का नाम
अरुण खेत्रपाल की मां, माहेश्वरी खेत्रपाल, अपने बेटे को टाइगर कहकर संबोधित करती थीं। उन्होंने कहा, मेरे बेटे ने कुछ असाधारण नहीं किया, यह उसका कर्तव्य था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें गर्व है कि वह एक बहादुर मां हैं। अरुण खेत्रपाल भारतीय सेना के सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता थे। उनका परिवार हमेशा से फौजी था, उनके दादा, पड़दादा और पिता भी सेना में थे।
पाकिस्तानी अफसर ने बताए युद्ध के आखिरी पल
बसंतर की लड़ाई को भारतीय सैन्य इतिहास की सबसे भीषण टैंक लड़ाइयों में से एक माना जाता है। पाकिस्तानी सेना ने 17 हार्स द्वारा दिखाई गई अद्वितीय बहादुरी की सराहना करते हुए उन्हें फख्र-ए-हिंद का खिताब दिया था। मेजर जनरल चंद्र प्रकाश बताते हैं कि एक पाकिस्तानी सेवानिवृत्त अफसर ने युद्ध के आखिरी पल को याद करते हुए कहा कि उसने ही खेत्रपाल के टैंक पर गोला दागा था। लेकिन, आग की लपटों से घिरे होने के बावजूद खेत्रपाल के चेहरे पर कोई डर नहीं था, बल्कि उन्होंने दुश्मन को कड़ा जवाब देने का जज्बा दिखाया।
वेस्टर्न कमांड की श्रद्धांजलि
आज वेस्टर्न कमांड द्वारा शहीद सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। इस मौके पर वेस्टर्न कमांड के आला अफसर और सीनियर वेटरन मौजूद रहेंगे। कार्यक्रम के दौरान एक विशेष फिल्म वेस्टर्न कमांड रोल इन 1971 वार" का प्रसारण भी किया जाएगा। खेत्रपाल के शिक्षा संस्थान, लॉरेंस स्कूल सनावर के स्टाफ भी इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। साथ ही, धर्मेंद्र की आखिरी फिल्म इक्कीस जो इस युद्ध पर आधारित है, भी रिलीज़ होगी, जिसमें वह खेत्रपाल के पिता के किरदार में नजर आएंगे।