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Punjab: गुरु गोबिंद सिंह जी केश में सजाते थे 3 इंच की कृपाण, तख्त श्री केसगढ़ साहिब में सहेज कर रखे हैं शस्त्र
मोहित धुपड़, चंडीगढ़
Published by: अंकेश ठाकुर
Updated Wed, 26 Nov 2025 10:03 AM IST
सार
श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस पर इस विशेष बस को तैयार किया गया है। इसे असम के धोबड़ी साहिब गुरुद्वारे से लेकर श्री आनंदपुर साहिब तक लाया गया है।
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तीन इंच की कृपाण
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी अपने केशों में तीन इंच की तलवार सजाते थे। इसी नन्ही कृपाण के दर्शन अब देश के विभिन्न राज्यों में संगत को करवाए जा रहे हैं। इसके साथ-साथ गुरु तेग बहादुर जी की शस्त्रनुमा कई निशानियां भी संगत के बीच एक विशेष बस में सजाकर ले जाई जा रही हैं।
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श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस पर इस विशेष बस को तैयार किया गया है। इसे असम के धोबड़ी साहिब गुरुद्वारे से लेकर श्री आनंदपुर साहिब तक लाया गया है। तीन महीने की इस यात्रा के दौरान गुरुओं की इन निशानियों को विभिन्न प्रदेशों के गुरुघरों में ले जाया गया जहां संगतों ने इनके दर्शन किए। इसका मकसद नई पीढ़ी को इन निशानियां से रूबरू करवाना था।
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तख्त श्री केसगढ़ साहिब के अश्वनी सिंह बताते हैं कि इस विशेष बस में श्री गुरु तेग बहादुर व गुरु गोबिंद सिंह जी की तलवारें, कृपाण व तेगा नाम के शस्त्रों को विशेष रूप से सहेजा गया है। यह बस यहां संगतों के बीच मुख्य आकर्षण का केंद्र बनी रही। खासकर गुरु गोबिंद सिंह जी की तीन इंच की वह कृपाण, जिसे वे अपने केशों में सजाते थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री आनंदपुर साहिब में 29 साल गुजारे थे और उनके तीन साहिबजादों का जन्म भी यहीं हुआ है। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी भी यहीं रहा करते थे और यहीं से कश्मीरी पंडित कृपा राम की गुहार के बाद औरंगजेब का सामना करने अपने शिष्यों भाई मती दास जी, भाई सती दास जी और भाई दयाला जी संग दिल्ली के लिए रवाना हुए थे।
हिंदू धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने चांदनी चौक पर अपनी शहादत दी। उनका शीश धड़ से काटकर अलग कर दिया गया। गुरु साहिब की शहादत के बाद भाई जैता जी ने उनका शीश लाकर गुरु गोबिंद सिंह जी का सौंपा था और यहीं जिस जगह भी उनके शीश का संस्कार किया गया था, वहां आज शीशगंज गुरुद्वारा स्थापित है। मंगलवार को यहां गुरु साहिब की कुर्बानियों को नतमस्तक करने बड़ी संख्या में संगत पहुंची। सेवादार अश्वनी सिंह बताते हैं कि तीन दिन से यहां संगतों का मेला लगा हुआ है। खासकर नहीं पीढ़ी में गुरुओं का इतिहास जानने की काफी उत्सुकता देखी जा रही है।