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Ajmer News : पुष्कर में पितरों के तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व, यहां पितरों को होती है मोक्ष की प्राप्ति

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, अजमेर Published by: अजमेर ब्यूरो Updated Wed, 02 Oct 2024 08:59 AM IST
सार

पितृ पक्ष के दौरान पुष्कर जी तीर्थ क्षेत्र में श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान किए जाने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान राम ने अपने पिता का श्राद्ध यहां किया था। यहां श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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Ajmer : Tarpan and Shraddha of ancestors have special significance in Pushkar, here ancestors attain salvation
पुष्कर तीर्थ में है श्राद्ध का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। 15 दिवसीय श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान और अनुष्ठान करते हैं। यूं तो देश के कई तीर्थ स्थलों पर पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं लेकिन अजमेर के तीर्थ गुरु पुष्कर में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। यही वजह है कि आज भी हजारों की संख्या में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए तीर्थ नगरी पुष्कर में आते हैं। आखिर क्या है पुष्कर में श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण का महत्व जानिए इस खबर में...



राजस्थान के अजमेर जिले में पुष्कर एक ऐसा तीर्थक्षेत्र है, जहां पर 7 कुलों और पांच पीढ़ियों तक के पूर्वजों की शांति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। इस बार 18 सितंबर से शुरू हुआ श्राद्ध पक्ष आज 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त हो रहा है। पुष्कर सरोवर के पुरोहित पंडित दिनेश पाराशर बताते हैं कि पुष्कर के पवित्र सरोवर के घाट पर अपने पूर्वजों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध कर्म से पूर्वजों को शांति मिलती है और पितृ दोष एवं अन्य व्याधियों से भी मुक्ति मिलती है। पितरों के आशीर्वाद से घर में खुशहाली आती है। 

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पुष्कर में पिंडदान करते श्रद्धालु - फोटो : अमर उजाला

पुष्कर एकमात्र ऐसा तीर्थ है, जहां पर 7 कुल और 5 पीढ़ियों तक के पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं जबकि देश में अन्य तीर्थ स्थलों पर एक या दो पीढ़ी तक के पूर्वजों के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। भगवान श्रीराम ने भी यहीं पर अपने पूर्वजों का उद्धार यहां श्राद्ध करके किया था। जगत पिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर में पवित्र सरोवर के जल को नारायण के रूप में पूजा जाता है, यहां श्रद्धा के साथ पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पांडवों ने भी यहीं किया था अपने पूर्वजों के श्राद्ध

गया कुंड के पुरोहित ईश्वरलाल पाराशर ने बताया कि पुष्कर स्थित सुधाबाय (गया कुंड) का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि जो गया (बिहार) जाकर अपने पितरों का श्राद्ध नहीं कर सकता। वह पुष्कर के इस सुधाबाय (गया) कुंड में श्राद्ध कर सकता है। पद्म पुराण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने अपने पिता दशरथ सहित सभी पूर्वजों का श्राद्ध इस गया कुंड में किया था। श्राद्ध कर्म के बाद भगवान श्रीराम ने ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों को भोजन भी करवाया था। द्वापर युग में पांडवों ने भी अपने पूर्वजों के निमित्त यहां श्राद्ध किया था। सालों से श्रद्धालु पुष्कर में जगत पिता ब्रह्मा के दर्शनों के लिए आते रहे हैं और यहां आने पर अपने पूर्वजों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करवाते हैं।

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पितरों का तर्पण करने आए श्रद्धालु - फोटो : अमर उजाला

यह है श्राद्ध का महत्व

पुरोहित राकेश पाराशर बताते हैं कि पितृपक्ष में पूर्वजों को श्रद्धा से याद किया जाना ही श्राद्ध माना जाता है। पूर्वजों के निमित्त पिंडदान करने का मतलब है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं और तर्पण करने का अर्थ माना जाता है कि हम उन्हें जल का दान कर रहे हैं। श्रद्धालु पुरोहितों के सान्निध्य में वैदिक मंत्रोच्चारण और परंपरागत रूप से सरोवर में स्नान कर अपने पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए अलग-अलग घाटों पर तर्पण और पिंडदान करते हैं। इसके बाद कौए, कुत्ते और गाय को भोजन करवाकर ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है और दक्षिणा दी जाती है। 

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पितृपक्ष में पुष्कर में श्राद्ध करने का है विशेष महत्व - फोटो : अमर उजाला
श्राद्ध पक्ष मे आते हैं हजारों लोग

पुष्कर सरोवर के पुरोहित पंडित मदन पाराशर बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष शुरू होने के साथ ही यहां श्रद्धालुओं की आवक बढ़ जाती है। अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पुष्कर में पिंडदान, तर्पण सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के चलते पुष्कर के 52 घाटों पर श्रद्धालुओं भीड़ लगी रहती है। जो लोग हरिद्वार और गया नहीं जा पाते वे लोग श्राद्ध पक्ष में पिंडदान के लिए पुष्कर आते हैं। मान्यता है कि पुष्कर के गया कुंड में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अजमेर से विकास टाक की स्पेशल रिपोर्ट
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