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Explainer: क्या टीम इंडिया की शर्मनाक हार के लिए गंभीर जिम्मेदार? भारत का घरेलू टेस्ट किला ढहने के 7 बड़े कारण

स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: स्वप्निल शशांक Updated Wed, 26 Nov 2025 04:58 PM IST
सार

सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या गंभीर इस टीम को फिर से खड़ा कर पाएंगे या भारत को नए नेतृत्व की तलाश करनी होगी? भारतीय टीम की यह गिरावट उस दौर में आई है जब टीम की देखरेख कोच गौतम गंभीर जैसे चैंपियन खिलाड़ी के हाथों में है।

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Gautam Gambhir Under Fire: 5 Reasons Why India's Home Test Dominance Has Collapsed
भारत की शर्मनाक हार - फोटो : ANI
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विस्तार
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भारतीय टीम की यह गिरावट उस दौर में आई है जब टीम की देखरेख कोच गौतम गंभीर के हाथों में है। सफेद गेंद क्रिकेट में उनकी सफलता सब जानते हैं, लेकिन रेड-बॉल क्रिकेट में उनकी योजनाएं सवालों के घेरे में हैं। भारत की टेस्ट टीम, जिसे कभी घरेलू क्रिकेट की 'अजेय दीवार' कहा जाता था, अब लगातार हार का सामना कर रही है। न्यूजीलैंड के खिलाफ 0-3 की हार के बाद दक्षिण अफ्रीका के हाथों 0-2 की सीरीज हार ने भारतीय क्रिकेट में हलचल मचा दी है। 
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क्रिकेट विश्लेषकों, पूर्व दिग्गजों और फैंस इस हार के लिए भारतीय खिलाड़ियों के साथ-साथ कोच गंभीर को भी जिम्मेदार मान रहे हैं। कोच गंभीर प्रेस कॉन्फ्रेंस में आकर खुद पर आलोचनाओं का जवाब दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें हटाने या नहीं हटाने का फैसला बीसीसीआई के हाथों में हैं, लेकिन बोर्ड को उनकी सफलताएं नहीं भूलनी चाहिए। अब एक बड़ा सवाल है क्या भारत की टेस्ट गिरावट के लिए गौतम गंभीर जिम्मेदार हैं? आइए जानते हैं उनके कार्यकाल में ऐसी पांच बड़ी घटनाएं, जिसने भारत के घरेलू किले को ढहाने में अहम भूमिका निभाई। इसमें गंभीर लिप्त थे या नहीं, ये कोई नहीं जानता, लेकिन उनके फैसले या राय के बिना ऐसा होना असंभव है। 
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1. रविचंद्रन अश्विन विवाद: क्या उनकी अनदेखी हुई?
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारत के दूसरे सबसे अधिक टेस्ट विकेट लेने वाले गेंदबाज रविचंद्रन अश्विन के अचानक संन्यास ने सबको चौंका दिया। भले ही अश्विन ने खुद कहा कि दबाव नहीं था, लेकिन हालात कुछ और कहानी कहते हैं। तब कहा गया था कि गंभीर ने अश्विन की जगह वॉशिंगटन सुंदर जैसे ऑलराउंडरों को खिलाने पर पर जोर दिया था। लोअर ऑर्डर में बैटिंग कर सकने वाले गेंदबाज की अहमियत के दबाव में अश्विन को संन्यास के लिए मजबूर होना पड़ा था और वह गंभीर से निराश भी थे। टीम चयन और रणनीति में अश्विन की भूमिका कमजोर होती गई और यह संदेश स्पष्ट था टीम अब स्पेशलिस्ट नहीं बल्कि मल्टीस्किल्ड खिलाड़ियों पर चलेगी। इस बदलाव को कई पूर्व खिलाड़ी गलत दिशा मानते हैं, क्योंकि टेस्ट क्रिकेट में अनुभव, तकनीक और विशेषज्ञता की कीमत होती है।

2. विराट कोहली और रोहित शर्मा के संन्यास का प्रभाव
भारत की टेस्ट गिरावट का दूसरा बड़ा कारण है विराट कोहली और रोहित शर्मा का अचानक संन्यास। दोनों ने इसे निजी फैसला बताया, लेकिन रिपोर्ट्स का दावा है कि टीम प्रबंधन ने उन्हें धीरे-धीरे प्लान से बाहर किया। भारत के सबसे भरोसेमंद टेस्ट नंबर-चार कोहली और भारत के अनुभवी ओपनर और कप्तान रोहित, इन दोनों के अचानक जाने से टीम अनुभवहीन हो गई। अगर ये दोनों कुछ वर्षों तक युवा खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करते, तो शायद भारतीय टेस्ट टीम आज भी मजबूत होती। 

3. बल्लेबाजी क्रम में प्रयोग: खिलाड़ी आए और गए
टेस्ट इतिहास में नंबर तीन की भूमिका हमेशा बेहद महत्वपूर्ण रही है। राहुल द्रविड़ और चेतेश्वर पुजारा जैसे बल्लेबाज़ इसके उदाहरण हैं। लेकिन गंभीर के दौर में शुभमन गिल, साई सुदर्शन, करुण नायर, वॉशिंगटन सुंदर, इन खिलाड़ियों को लगातार बदला गया। चयन में स्थिरता की कमी ने खिलाड़ियों को असुरक्षित और दबाव में ला दिया। ऑलराउंडर्स को प्राथमिकता देकर विशेषज्ञ बल्लेबाजों की जगह कम कर दी गई। कई विशेषज्ञों का कहना है, 'टीम बैलेंस आज न तो बैटिंग का है और न बॉलिंग का, सिर्फ प्रयोगशाला बन गई है।' 



4. हर मैच में प्लेइंग-11 में बदलाव
गंभीर का एक और बड़ा निर्णय जिसने अस्थिरता बढ़ाई, वह है लगातार खिलाड़ियों को बदलना। पिछले एक साल में भारत ने बार-बार टीम चुनी, पिच चुनी, रणनीति बदली, पर स्थिरता कहीं नहीं दिखाई दी। पहली गलती के बाद ही खिलाड़ियों को बाहर करने की नीति ने टीम का आत्मविश्वास तोड़ दिया। पूर्व दिग्गजों का मानना है कि टेस्ट क्रिकेट में निरंतरता चयन से आती है, प्रयोगों से नहीं। खिलाड़ी टीम के लिए नहीं, बल्कि अपनी जगह बचाने के लिए खेलते नजर आए।

5. पिच रणनीति और आक्रामक सोच का उल्टा असर
कहा जा रहा है कि गंभीर की चाहत थी कि भारत ऐसी पिचें बनाए जहां गेंद तीसरे सत्र से ही शार्प टर्न लें। लेकिन यह रणनीति बैकफायर हो गई। कोलकाता टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका ने स्पिन ट्रैक पर भारत को धूल चटाई और मैच सिर्फ तीन दिन में खत्म हो गया। कोलकाता में जब पिच स्पिनर्स की मददगार थी, तो चार स्पिनर्स को खिलाने का फैसला भी समझ से परे था। दक्षिण अफ्रीका ने तीन मुख्य स्पिनर्स के दम पर मैच जीता। पहले टीमें जीत नहीं तो मैच को ड्रॉ कराने पर भी ध्यान देती थीं, लेकिन अब जल्द से जल्द जीत दर्ज करने की चाहत से नुकसान पहुंचा है। कम दिनों में जीत के लिए बनाई गई अत्यधिक स्पिन-सहायक पिचें अब खुद भारतीय बल्लेबाजों के लिए खतरा बन रही हैं। असमान उछाल और तेज टूटती सतहें विरोधियों जितना ही भारत को भी परेशान कर रही हैं, जहां भारत कभी अजेय हुआ करता था।





6. घर पर ही कमजोर बल्लेबाजी
सिर्फ नंबर तीन नहीं, ओपनिंग से लेकर पांचवें नंबर तक भारत की बल्लेबाजी कमजोर दिखी। विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे जैसे मजबूत तकनीक और सॉलिड डिफेंस वाले खिलाड़ियों के जाने के बाद नई बैटिंग लाइन-अप अभी स्थिर नहीं हो पाई है। न्यूजीलैंड से जब टीम हारी थी तब रोहित शर्मा और विराट कोहली भी टीम में थे। ऐसे में टीम इंडिया को मध्यक्रम में ऐसे बल्लेबाज की कमी खल रही है, जो मैदान पर जम सके और गेंदबाजों को थका सके। पारी को संभालने वाले बल्लेबाजों की कमी बार-बार सामने आ रही है। यही नतीजा है कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो टेस्ट में भारत की ओर से एक भी शतक नहीं लगा और न ही भारतीय टीम चार पारियों में एक बार भी 202 का आंकड़ा पार कर सकी।

 

7. न तो गेंदबाज मैच जिता रहे, न बल्लेबाज बना रहे
बुमराह, शमी, अश्विन और जडेजा, इनके दम पर भारत कई बार बच निकला है, लेकिन लगातार मैच जिताने का दबाव गेंदबाजों पर ही नहीं डाला जा सकता। एक समय भारत की मजबूती बल्लेबाजी हुआ करती थी और घरेलू पिचों पर जीत की वजह भी यही थी, लेकिन अब इसमें गिरावट देखने को मिल रही है। कोच गंभीर समेत टीम मैनेजमेंट का भरोसा इस बात पर है कि गेंदबाज मैच जिताते हैं और बल्लेबाज मैच बनाते हैं, लेकिन न तो गेंदबाज अपना काम कर रहे, न ही बल्लेबाज मैच बना पा रहे। 

13 महीने में भारत की पांच हार, बड़ी चेतावनी
16 अक्तूबर, 2024 से अब तक भारत ने घर पर सात टेस्ट खेले और इनमें से पांच हारे हैं। कोच गौतम गंभीर की देखरेख में घर पर ही टीम के प्रदर्शन में गिरावट आई है। पिछले 13 महीने में हम घर पर जितने टेस्ट हारे हैं, उससे पहले उतने टेस्ट हारने में भारत को करीब 13 साल लगे थे। 16 अक्तूबर, 2024 से अब तक घरेलू टेस्ट में हार का दर 71.42 प्रतिशत है, जो 1932 से अब तक यानी भारत के टेस्ट इतिहास में सबसे खराब है। इस अवधि में भारत को घरेलू परिस्थितियों में अक्सर अपने ही बनाए पिचों का उल्टा प्रभाव झेलना पड़ा है। स्पिनर्स के खिलाफ खराब बल्लेबाजी ने भारत की बैटिंग को कई बार ध्वस्त किया है। जबकि भारत ने खुद ही घर पर लगभग सभी टेस्ट में स्पिन पिच की मांग की थी।

दिसंबर 2012–2024: लगभग 13 साल में 5 हार और अब 13 महीने में ही उतनी
अगर इस दौर की तुलना पिछले वर्षों से करें, तस्वीर और भी चिंताजनक बनती है। दिसंबर 2012 से 15 अक्तूबर, 2024 तक यानी लगभग 13 साल में भारत ने घर में 55 टेस्ट खेले। इसमें उसने 42 जीते, सिर्फ पांच हारे और सात ड्रॉ रहे। हार का दर सिर्फ 9.09 प्रतिशत। यानी भारत को घर में पांच बार हराना विरोधियों के लिए दशक भर की मेहनत जैसा था। और अब उतने ही मैच भारत ने सिर्फ पिछले 13 महीनों में गंवा दिए। यह गिरावट न केवल टीम की तैयारी पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि घरेलू लाभ अब भारत के पक्ष में वैसा नहीं रहा जैसा पहले था।

2001–2012: टीम में बदलाव का दौर, फिर भी इतनी हार नहीं
2001 से 30 नवंबर 2012 तक भारत का घरेलू टेस्ट रिकॉर्ड भी संतुलित रहा। इस दौरान खेले गए 57 टेस्ट में भारत ने 29 जीते, आठ हारे और 20 ड्रॉ रहे। उस दौर में टीम का बदलाव बहुत बड़ा था, गांगुली युग से द्रविड़ युग और फिर धोनी युग तक की यात्रा, गेंदबाजी में उतार-चढ़ाव, तेज गेंदबाजी में अनुभव की कमी भी थी, फिर भी भारत का हार प्रतिशत 14.03 फीसद था। आज की तुलना में यह आंकड़ा पांच गुणा बेहतर दिखता है, जबकि उस समय टीम की संरचना और मिलने वाली सुविधाएं आज जैसी मजबूत नहीं थीं।

1932–2000: शुरुआती संघर्ष का दौर भी इतना खराब नहीं था
भारत ने 1932 से लेकर 2000 तक कुल 179 घरेलू टेस्ट खेले। इसमें भारत ने 49 जीते, 42 हारे, एक टाई रहा और 87 मुकाबले ड्रॉ रहे थे। हार का अनुपात 23.46 प्रतिशत था। यानी वह दौर जब भारत टेस्ट क्रिकेट में सीखने की यात्रा पर था, तब भी टीम का प्रदर्शन वर्तमान 13 महीनों से बेहतर था।

क्यों यह दौर भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है?
भारत टेस्ट क्रिकेट में अपनी पहचान घर में बने रिकॉर्ड्स की वजह से बनाता रहा है। घर की हारें सिर्फ आंकड़े नहीं बदलतीं, वे टीम का मनोबल, विपक्ष की धारणा और भविष्य की तैयारी सब पर असर डालती हैं। इतना ही नहीं, विश्व टेस्ट चैंपियनशिप आने के बाद से टीमें घर की सीरीज को भुनाने का अवसर नहीं छोड़तीं। ऐसे में घर पर एक भी हार से टीम के फाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को झटका लगता है। भारत 2021 और 2023 में डब्ल्यूटीसी के फाइनल में पहुंचा था। तब टीम ने विदेशी पिचों के साथ घर में शानदार प्रदर्शन किया था। 2025 के फाइनल में नहीं पहुंचने की वजह न्यूजीलैंड से हार रही थी। अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ क्लीन स्वीप से भी उम्मीदों को झटका लगा है। अगर भारत घर में ही जीतना बंद कर दे, तो विदेशी दौरों में टीम को और ज्यादा मानसिक दबाव झेलना पड़ेगा।

क्या यह खराब समय है या गलत प्रयोग?
भारत आज जिस स्थिति में है, वह सिर्फ खराब फॉर्म नहीं बल्कि रणनीति, चयन और सोच की असंगति का परिणाम लगता है। गौतम गंभीर के विजन पर सवाल हैं, लेकिन साथ ही यह दौर भारतीय टेस्ट क्रिकेट के बदलते अध्याय का हिस्सा भी हो सकता है। सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या गंभीर इस टीम को फिर से खड़ा कर पाएंगे या भारत को नए नेतृत्व की तलाश करनी होगी?

 
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