अरावली विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने समिति की सिफारिशों व आदेशों को रखा स्थगन में, पूर्व CM गहलोत ने जताई खुशी
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों और अरावली रेंज की परिभाषा को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के 20 नवंबर 2025 के निर्णय पर फिलहाल स्थगन (stay) दे दिया। अदालत ने समिति की सिफारिशों और पूर्व आदेशों को अगले आदेश तक लागू नहीं करने का निर्देश दिया। कोर्ट के फैसले पर पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने खुशी जताई है। चलिए बता रहे हैं कोर्ट ने क्या कहा है...?
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों और अरावली रेंज की परिभाषा को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा तय किए जाने वाले अपने पहले निर्णय (20 नवंबर 2025) को फिलहाल निलंबित कर दिया है। मामला “In Re: Definition of Aravalli Hills and Ranges and Ancillary Issues” में स्वतः संज्ञान लिया गया। पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे. के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे।
न्यायालय ने कहा कि समिति की रिपोर्ट पर अमल करने या 20 नवंबर के निर्णय में दिए गए निर्देश लागू करने से पहले निष्पक्ष, स्वतंत्र और तटस्थ विशेषज्ञ राय आवश्यक है। इस प्रक्रिया में सभी प्रासंगिक हितधारकों को पारदर्शी परामर्श के माध्यम से शामिल किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने चारों संबंधित राज्यों और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा।
हम फैसले का स्वागत करते हैं- पूर्व सीएम गहलोत
वहीं, इस फैसले पर कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, "हम बहुत खुश हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन प्रदान किया। हम इसका स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि सरकार जनता की भावना को समझेगी। चारों राज्यों और पूरे देश की जनता इस आंदोलन में भाग ले चुकी है, सड़कों पर उतरी है और विरोध जताया है। यह समझ से परे है कि पर्यावरण मंत्री इसे क्यों नहीं समझ पा रहे हैं।"#WATCH | Supreme Court has “put in abeyance” its earlier decision (issued on November 20) to accept the Central Environment Ministry’s definition of Aravalli Hills and Aravalli Range.
Congress leader Ashok Gehlot says, "We are very happy that the Supreme Court has granted a stay… pic.twitter.com/xfIsFZQ6c7 — ANI (@ANI) December 29, 2025
गहलोत ने कहा कि वर्तमान पर्यावरणीय परिस्थितियों को देखते हुए यह बेहद आवश्यक है कि अरावली को लेकर अगली शताब्दी तक की स्थिति को सोचकर काम किया जाए। पर्यावरण मंत्री को भी अब पर्यावरण के हित में काम करने की सोच रखनी चाहिए। सरिस्का सहित पूरे अरावली में खनन बढ़ाने की सोच भविष्य के लिए ख़तरनाक है।
'कोई भी सिफारिश न्यायालय की स्वीकृति के बिना लागू नहीं की जाएगी'
भारत संघ की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि समिति की रिपोर्ट में कुछ भ्रांतियां हैं और सरकार पूरी तरह से सहयोग करने को तैयार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी सिफारिश न्यायालय की स्वीकृति के बिना लागू नहीं की जाएगी। इसके अलावा, योजना की तैयारी के दौरान सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया अपनाई जाएगी, ताकि सभी हितधारक अपने विचार रख सकें।
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उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित की जा सकती है
राजस्थान की ओर से भी सॉलिसिटर जनरल और अपर महाधिवक्ता उपस्थित रहे। न्यायालय ने यह अवलोकन किया कि यदि संरक्षण केवल 500 मीटर तक सीमित कर दिया गया, तो इससे संरक्षित क्षेत्र का भौगोलिक दायरा संकुचित हो सकता है, जिसके लिए स्पष्टीकरण आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे की सुनवाई 21 जनवरी 2025 को निर्धारित की और कहा कि इस बीच पूर्व निर्णय और समिति की सिफारिशों को स्थगित रखा जाएगा। न्यायालय ने संकेत दिया कि आवश्यकता पड़ने पर एक अन्य उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित की जा सकती है।
इन 9 बिंदुओं में जानें सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर में क्या कहा-
1. अरावली का अत्यंत महत्वपूर्ण पारिस्थितिक महत्व
न्यायालय ने पुनः दोहराया कि अरावली पहाड़ियां उत्तर-पश्चिम भारत की 'ग्रीन लंग्स' हैं और यह थार मरुस्थल तथा उत्तरी उपजाऊ मैदानों के बीच एक अपरिहार्य पारिस्थितिक एवं सामाजिक-आर्थिक आधार का कार्य करती हैं।
2. स्वीकृत परिभाषा में अस्पष्टता पर चिंता
न्यायालय ने पूर्व में (20.11.2025 को) समिति द्वारा दी गई अरावली पहाड़ियों एवं श्रेणियों की परिभाषा को स्वीकार किया था, परंतु अब न्यायालय ने पाया कि परिभाषा के कुछ पहलुओं में स्पष्टता का अभाव है, और इसके कारण गलत व्याख्या और दुरुपयोग का वास्तविक खतरा उत्पन्न हो सकता है, विशेष रूप से खनन गतिविधियों के संदर्भ में।
3.पर्यावरणविदों और जनता की आपत्तियों का संज्ञान
न्यायालय ने पर्यावरणविदों एवं अन्य हितधारकों द्वारा उठाई गई व्यापक चिंताओं पर ध्यान दिया कि नई परिभाषा में संरक्षित क्षेत्र को सीमित कर सकती है, और पारिस्थितिक रूप से जुड़े क्षेत्रों को अनियंत्रित खनन के लिए असुरक्षित छोड़ सकती है।
4. न्यायालय द्वारा उठाए गए गंभीर प्रश्न
न्यायालय ने विशेष रूप से कई प्रश्नों पर संदेह व्यक्त किया है। क्या अरावली रेंज को केवल पहाड़ियों के बीच 500 मीटर तक सीमित करना संरक्षण के दायरे को कृत्रिम रूप से संकुचित करता है? क्या 100 मीटर से कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ अनुचित रूप से पर्यावरणीय संरक्षण से बाहर हो जाती हैं? क्या 500 मीटर की सीमा से परे भी पारिस्थितिक निरंतरता बनी रहती है?
5. स्वतंत्र विशेषज्ञ पुनः-परीक्षण की आवश्यकता
न्यायालय ने कहा कि समिति की रिपोर्ट, या 20.11.2025 के अपने पूर्व निर्देशों के किसी भी क्रियान्वयन से पहले, निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं विशेषज्ञ राय प्राप्त की जानी चाहिए, जिसमें सभी संबंधित हितधारकों को सम्मिलित किया जाए।
6. नई उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का संकेत
न्यायालय ने संकेत दिया कि एक नई उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित की जा सकती है, जो कि पूर्व रिपोर्ट की समग्र पुनः-जांच करे, न्यायालय द्वारा उठाए गए विशिष्ट स्पष्टीकरणात्मक प्रश्नों का उत्तर दें। अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक पारिस्थितिक प्रभावों का आकलन करे।
7. केंद्र और चार राज्यों को नोटिस
न्यायालय ने नोटिस जारी किया। भारत संघ को, तथा दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात राज्यों को। मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को ग्रीन बेंच के समक्ष निर्धारित की गई है।
8.पूर्ण यथास्थिति सबसे महत्वपूर्ण निर्देश
समिति की सभी सिफारिशें स्थगित रहेंगी। 20.11.2025 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में दिए गए निष्कर्ष और निर्देश भी स्थगित रहेंगे। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इस दौरान कोई अपरिवर्तनीय प्रशासनिक या पारिस्थितिक कदम न उठाया जाए।
9. खनन पर पूर्ण प्रतिबंध जारी
09.05.2024 के अपने पूर्व आदेश को दोहराते हुए, न्यायालय ने निर्देश दिया कि कि नए खनन पट्टे, और पुराने खनन पट्टों के नवीनीकरण अरावली पहाड़ियों एवं श्रेणियों में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना नहीं दिए जाएंगे, जब तक आगे कोई आदेश न हो।