फतवे जारी करनेवालों को बढ़ावा देना क्या धर्मनिरपेक्षता है: तस्लीमा नसरीन
बंग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा है कि उनके खिलाफ फतवे जारी करने वालों को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों का संरक्षण रहा है। उन्होंने नाम लेकर कहा कि कोलकाता में सरेआम उनके (तस्लीमा) खिलाफ फतवा जारी करनेवाले और सिर पर इनाम रखनेवालों को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दोस्त हैं।
ऐसे लोगों को ममता, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य एवं पूर्व कांग्रेस सरकार का समर्थन व संरक्षण मिला है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर किस तरह की धर्मनिरपेक्षता है?
फतवे जारी करनेवालों को बढ़ावा देना क्या धर्मनिरपेक्षता है? उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज की महिलाओं के अधिकारों की बात करें, तो कोई विरोध में नहीं उतरता और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की बात करें, तो जानलेवा हमला हो जाता है।
इस्लाम को मानने वाले और इस्लामिक देश जब तक खुद के लिए आलोचना नहीं सुनेंगे, तब तक वे धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकते। उन्होंने समान नागरिक संहिता को तुरंत लागू करने की पैरवी की। उन्होंने कहा कि महिला अधिकारों के लिए ये बेहद जरूरी है।
मेरे खिलाफ फतवा जारी हो जाता है
उन्होंने कहा कि जब वे हिन्दू, क्रश्चयन धर्मों के खिलाफ लिखती हूं, तो कुछ नहीं होता, लेकिन जैसे ही मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ लिखती हूं, तो मेरे खिलाफ फतवा जारी हो जाता है और जान का खतरा बन जाता है। जबकि बिना आलोचना धर्म सुधार नहीं हो सकता। इस्लाम को भी आलोचना स्वीकार करनी चाहिए।
अधिकारों का हनन करनेवालों को सजा तक नहीं दी
उन्होंने कहा कि वे मानवता, समानता, लिखने-बोलने की आजादी पर विश्वास रखती हैं, न कि धर्म व राष्ट्रवाद पर। वे एेसे देशों की सीमाओं के भी खिलाफ हैं, जो धर्म के आधार पर बनी हुई हों। उन्होंने बांग्लादेश और भारत के लिए कहा कि ये कैसे धर्मनिर्पेक्ष देश हैं, जिन्होंने मेरे अधिकारों का हनन करनेवालों को सजा तक नहीं दी और पीड़ित होने के बावजूद मैने निर्वासन की पीड़ा झेली। हैदराबाद में हमला होने पर मुझे ही दोषी ठहराया गया।
हर धर्म महिलाओं के खिलाफ
उन्होंने कहा कि हर धर्म महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है। लेकिन जब महिला अधिकारों की बात होती है, तो वे सुधार भी करते हैं और समझते भी हैं। लेकिन इस्लाम में महिला अधिकारों की बात नहीं की जाती, इसे समझना होगा। उन्होंने सवाल उठाए कि इस्लाम में महिलाओं को अधिकार क्यों नहीं मिलते? उनके अधिकारों के लिए आवाज क्यों नहीं उठाती? ये सब नहीं है, तो कोई राष्ट्र खुद को धर्मनिरपेक्ष कैसे कह सकता है?
उन्होंने कहा कि महिलाओं की सभी समस्याओं के समाधान के उपाय शिक्षा है। उन्होंने कहा कि असहिष्णुता हर क्षेत्र में है, चाहे वह घरेलू हिंसा हो या महिला अत्याचार। उन्होंने सवाल उठाया कि हिंदुस्तान में मुस्लिम महिलाओं को बराबर का हक नहीं दिया जा रहा, फिर लोकतंत्र की क्यों बाते होती हैं?