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Himachal: सीएसआर गतिविधियों की निगरानी में लापरवाही पर हाईकोर्ट नाराज, कहा- सरकार के पास विजन की कमी

संवाद न्यूज एजेंसी, शिमला। Published by: Krishan Singh Updated Fri, 07 Nov 2025 10:30 AM IST
सार

कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के पास विजन की कमी है।

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High Court frowns on negligence in monitoring CSR activities, says lack of vision
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित राज्य को कंपनियों के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) दायित्वों से लाभान्वित करने की दिशा में कथित लापरवाही के लिए नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के पास विजन की कमी है। कोर्ट ने कंपनियों के कोऑपरेटिव सोशल रिस्पांसिबिलिटी के वैधानिक दायित्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए यह कदम उठाया है। इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि कितनी कंपनियों ने हिमाचल में भारी बारिश और त्रासदी के लिए योगदान करने की अपनी सामाजिक और वैधानिक जिम्मेदारी का पालन किया है। सरकार अभी तक ऐसी कंपनियों की सूची कोर्ट में पेश नहीं कर पाई है। उद्योग निदेशक के एक पत्र में 9 जुलाई 2025 को स्पष्ट किया गया था कि राज्य सरकार की सीएसआर गतिविधियों के कार्यान्वयन व निगरानी में कोई सीधी भूमिका नहीं है। यह दायित्व केंद्र सरकार के तहत कंपनी अधिनियम के तहत आता है।

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मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावलिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि 12 सितंबर को पारित उनके आदेश के मद्देनजर राज्य नींद से जाग गया है। अब फील्ड अधिकारियों को सीएसआर प्रावधानों के तहत आने वाली कंपनियों की सूची उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं और सूचना एकत्र करने की प्रक्रिया जारी है। राज्य सरकार ने सीएसआर की सूचना प्राप्त करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा है। कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि हिमाचल प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह प्रभावित होने के बावजूद विशिष्ट प्रावधानों से लाभान्वित होने की स्थिति में नहीं है।

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कोर्ट ने कहा कि यह सब खराब कानूनी सलाह और लीगल रिमेंबरेंसर-सह-प्रधान सचिव (कानून) जैसे न्यायिक अधिकारी का उचित उपयोग न करने के कारण हुआ। कोर्ट ने मुख्य सचिव द्वारा 15 अक्तूबर को उनसे कार्य वापस लेने और बाद में 18 अक्तूबर को अधिसूचना को संशोधित करने की घटना का हवाला देते हुए इसे खराब तस्वीर और राज्य सरकार की ओर से विजन की कमी बताया। मामले की अगली सुनवाई 3 दिसंबर को होगी। गौरतलब है कि प्रदेश में हुई त्रासदी को लेकर कंपनियों की सीएसआर जवाबदेही पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया। न्यायालय ने कहा है कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत, जिन कंपनियों की नेट वर्थ पांच सौ करोड़ रुपये या उससे अधिक है या टर्नओवर एक हजार करोड़ रुपये या उससे अधिक है या पिछले वित्तीय वर्ष में शुद्ध लाभ पांच करोड़ रुपये या उससे अधिक है, उनके लिए कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी अनिवार्य है। 

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