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HP: सूखे की मार से कैंकर की चपेट में आ रहे सेब के बगीचे, समय से पहले पतझड़ और तेज धूप से फैल रहा रोग

संवाद न्यूज एजेंसी, रोहडू। Published by: Krishan Singh Updated Mon, 01 Dec 2025 12:07 PM IST
सार

सूखे के चलते समय से पहले पतझड़ और तेज धूप के कारण भी कैंकर रोग की समस्या पैदा हुई है। सूर्य की तेज किरणें पौधे के तने की छाल खराब कर रही हैं।

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Himachal Apple orchards are being affected by canker due to drought, premature defoliation and intense sunligh
सूखे की मार से कैंकर की चपेट में आ रहे सेब के बगीचे। - फोटो : संवाद
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विस्तार
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सूखे जैसी स्थिति के चलते सेब के बगीचों में कैंकर का रोग तेजी से फैल रहा है। इस रोग से सेब के पौधों को काफी नुकसान हो रहा है। इस कारण बागवान खासे चिंतित नजर आ रही हैं। सूखे के चलते समय से पहले पतझड़ और तेज धूप के कारण भी कैंकर रोग की समस्या पैदा हुई है। सूर्य की तेज किरणें पौधे के तने की छाल खराब कर रही हैं। इससे सेब के पौधे कैंकर की चपेट में आ रहे हैं। सेब के पुराने पेड़ों पर कैंकर बीमारी का असर ज्यादा नजर आ रहा है। विशेषज्ञों ने बताया कि सूबे में सेब सेब के पौधों में कई प्रकार के कैंकर रोग देखे गए हैं। ये सभी फफूंद जनित हैं। मुख्य रोगों में भूरा तना कैंकर, धुएं वाला कैंकर, झुलसा कैंकर, गुलाबी कैंकर, काला तना, नेल हेड, रजत पत्ती कैंकर शामिल हैं। इनका समय पर उपचार आवश्यक है। उद्यान विभाग के विषय विशेषज्ञ डॉ. संजय चौहान ने बताया कि कैंकर रोग पौधों में कई कारणों से फैलता है। यदि पौधे की जड़ खराब हो जाए, गलत तरीके से प्रूनिंग की जाए या बगीचों में आग जलाई जाए तो कैंकर रोग अधिक फैलता है। इस वर्ष समय से पहले पतझड़ हुआ है। सूरज की तेज किरणों से पौधों के तनों और टहनियों पर सनबर्न हुआ है, जो कैंकर रोग का कारण बना है।

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ये हैं कैंकर के लक्षण
बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि कैंकर रोग के लक्षण पौधे के तने, शाखाओं और टहनियों पर उभरे या धंसे हुए कई रंगों के धब्बों के रूप में नजर आते हैं। रोगी पौधों की छाल कई बार पपड़ी बनकर उखड़ जाती है। ऐसे में पौधे भी सूख जाते हैं। इससे बागवानों को वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाता है।

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कैंकर की रोकथाम के लिए सेब के पौधों की कांट-छांट वैज्ञानिक तरीके से करनी चाहिए। बागवानों को फल तोड़ने या प्रूनिंग के बाद कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 600 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। समय पर रोकथाम करने से पौधों को बचाया जा सकता है। -डॉ. संजय चौहान, विषय विशेषज्ञ, उद्यान विभाग

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