Himachal News: प्राकृतिक रुप खो चुकी सतलुज नदी बजा रही खतरे की घंटी, पारिस्थितिकी पर असर
वैदिक नदी सतलुज हिमाचल प्रदेश के लिए खतरे की घंटी बजा रही है।
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अपना प्राकृतिक स्वरूप खोती वैदिक नदी सतलुज हिमाचल प्रदेश के लिए खतरे की घंटी बजा रही है। करीब 100 किलोमीटर तक नदी जलाशयों में और लगभग इतनी ही लंबाई तक सुरंगों में समा चुकी है। इससे किन्नौर समेत पूरे प्रदेश की पारिस्थितिकी गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। सतलुज के बिगड़ते स्वरूप को लेकर पनबिजली विशेषज्ञ और पर्यावरणविद इंजीनियर आरएल जस्टा ने गहरी चिंता जताई है।
सतलुज ताल की 11,096 मेगावाट क्षमता में से इतने का दोहन
सतलुज ताल की 11,096 मेगावाट क्षमता में से 6177 मेगावाट का दोहन हो चुका है, जबकि 968 मेगावाट क्षमता की परियोजनाओं पर काम जारी है। विशेषज्ञ का कहना है कि बढ़ते मीथेन उत्सर्जन, हिमरेखा के सिकुड़ने और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के संकेत हालात को और अधिक चिंताजनक बना रहे हैं। सतलुज घाटी का बदलता स्वरूप आने वाले समय में पर्यावरण, कृषि के लिए चुनौती हो सकता है।
किन्नौर की नाजुक भू-संरचना पर दुष्प्रभाव डाला
दशकों से हो रहे जलविद्युत निर्माण कार्यों ने किन्नौर की नाजुक भू-संरचना पर दुष्प्रभाव डाला है। सेब बगीचों की नमी में कमी, पेयजल स्रोतों का सूखना, बढ़ते भूस्खलन और घरों में आती दरारें स्थानीय लोगों की बड़ी चिंता बन चुके हैं। जंगी-थोपन, थोपन-पोवारी, शोंगटोंग-कड़छम, कड़छम-वांगतु, नाथपा-झाकड़ी, रामपुर, लूहरी-सैंज, सैंज-सुन्नी, कोलडैम और भाखड़ा बांध जैसे प्रोजेक्टों ने घाटी का स्वरूप बदल दिया है। घाटी में स्थापित और प्रस्तावित परियोजनाओं का घनत्व अत्यधिक है, जिससे भू-वैज्ञानिक संतुलन लगातार बिगड़ रहा है।
शिपकी-ला से हिमाचल में प्रवेश करती है सतलुज
मानसरोवर के निकट राक्षसताल से निकलकर सतलुज शिपकी-ला के रास्ते हिमाचल में प्रवेश करती है। यहां से 320 किलोमीटर बहने के बाद नदी भाखड़ा बांध में पहुंचती है। अंत में अरब सागर में मिलती है।
सुरंगें या जलाशयों के बनने से सतलुज ने प्राकृतिक स्वरूप किन्नौर खो दिया है। इससे आगे भी इस पर बांध बने हैं। नदी ने मैदानों तक रूप बदले हैं। हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से गड़बड़ हो रहा है, ऐसा तब तक नहीं कहा जा सकता है, जब तक इस पर सटीक अध्ययन न हो। - जगत सिंह नेगी, जनजातीय विकास मंत्री