Himachal: हाईकोर्ट ने सरकार को वन अतिक्रमण संबंधित विशिष्ट मामलों की पहचान करने के दिए निर्देश
प्रदेश हाईकोर्ट ने वन अतिक्रमण से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए प्रतिवादी राज्य सरकार को महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं।
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वन अतिक्रमण से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए प्रतिवादी राज्य सरकार को महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने राज्य को निर्देश दिया है कि वह कोर्ट में विचाराधीन सभी याचिकाओं में से उन विशिष्ट मामलों की पहचान करे जो वन भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित हैं। कोर्ट ने राज्य से कहा है कि वह ऐसे सभी चिह्नित मामलों की सूची अगली सुनवाई की तारीख से पहले अदालत में प्रस्तुत करे। अदालत ने कहा है कि कौन से मामले वन भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित है और कौन से मामले राजस्व रिकॉर्ड से जुड़े है, इसकी एक सारिणी बनाई जाए। मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी। इस निर्देश का उद्देश्य वन अतिक्रमण से संबंधित गंभीर मामलों को छांटकर उनकी सुनवाई को प्राथमिकता देना है।
पंचायत सचिव को मिलेगा पिछली सेवा का लाभ, हाईकोर्ट ने दिए आदेश
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता की पंचायत समिति में पंचायत सचिव के रूप में दी गई कुल सेवा को सेवानिवृत्ति लाभों की गणना के लिए गिनने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को देय तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 5 फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी मिलेगा। यदि भुगतान छह महीने के भीतर नहीं किया जाता है, तो ब्याज दर 7 फीसदी प्रति वर्ष हो जाएगी। इसके साथ ही प्रतिवादी याचिकाकर्ता को मुकदमे की लागत के रूप में 10 हजार रुपये का भुगतान भी करेंगे। याचिकाकर्ता की सेवाओं को राज्य सरकार ने पंचायती राज विभाग या ग्रामीण विकास विभाग में मर्ज करने के बाद पिछली सेवाओं का लाभ देने से इन्कार कर दिया था।
न्यायालय ने आदेश दिया है कि ऐसे कर्मचारियों को उनकी पिछली पंचायत समिति में पंचायत सचिव के रूप में दी गई सेवा के आधार पर सेवानिवृत्ति लाभ (पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण) प्रदान किए जाए। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की अदालत ने फटकार लगाते हुए कहा कि एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते प्रतिवादी राज्य का यह पहला कर्तव्य था कि वह स्वयं ही याचिकाकर्ता को पूर्व के न्यायिक फैसलों का लाभ प्रदान करे। न्यायालय ने प्रतिवादियों के आचरण की आलोचना करते हुए कहा कि वे लागू किए जा चुके न्यायिक फैसलों को फिर से खोलने की कोशिश कर रहे हैं। अदालत ने रामेश्वर सिंह (मृतक) बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले में यह फैसला सुनाया। रामेश्वर सिंह 23 अगस्त 1979 को पंचायत समिति रैत में पंचायत सचिव के रूप में नियुक्त हुए थे और 31 जनवरी 2011 को सेवानिवृत्त हो गए। 31 वर्ष 7 माह और 8 दिन की सेवा के बावजूद प्रतिवादियों ने केवल 27 वर्ष की सेवा के लिए सेवानिवृत्ति लाभ दिए गए थे।
न्यायालय ने प्रतिवादियों के इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया कि ग्रामीण विकास और पंचायती राज दो अलग-अलग विभाग हैं और पिछली सेवा का लाभ केवल कुछ मामलों में दिया गया था। न्यायालय ने बशेशर लाल और पूरन चंद के पूर्व फैसलों का जिक्र किया। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पंचायत सचिवों द्वारा पंचायत समितियों में दी गई सेवा को बिना किसी भेदभाव के गिना जाना चाहिए, भले ही उन्हें ग्रामीण विकास विभाग या पंचायती राज विभाग में समाहित किया गया हो। अदालत ने कहा कि ये फैसले सभी समान रूप से स्थित कर्मचारियों पर लागू होते हैं न कि केवल याचिकाकर्ताओं पर। यह फैसला उन सभी पंचायत सचिवों के लिए एक बड़ी राहत है, जो विभागों के विलय के कारण अपनी पिछली सेवा के लाभ से वंचित थे।