Chaitra Navratri 2019 : इस पूजन विधि से प्रसन्न होकर मां चंद्रघंटा देंगी शत्रुओं पर विजय का आशीर्वाद
इस तरह करें शक्ति की साधना
मां चंद्रघंटा के ललाट पर अर्धचंद्र के आकार का घंटा होने के कारण इन्हे चंद्रघंटा कहा जाता है। इस दिन साधक का मन मणि पूर्ण चक्र में प्रविष्ट होता है। इस दिन देवी की कृपा पाने और मनोकामना की पूर्ति के लिए छोटी-छोटी ग्यारह घंटियां या एक घंटा चढ़ाएं एवं उसे बजाएं। माता की विशेष कृपा पाने के लिए इसे नियमित रूप से या फिर 21 दिन तक पूजा के दौरान बजाएं। माता के इस विशेष उपाय से घर की निगेटिव एनर्जी दूर होगी और सम्पूर्ण वातावरण शुद्ध हो जायेगा। मां चंद्रघंटा के घंटे के ध्वनि अपने भक्तों की भूत प्रेतादि से रक्षा करती है।
मां चंद्रघंटा की कथा
मां दुर्गा के इस स्वरुप की कथा भी भगवान भोलेनाथ से ही सम्बंधित है। जब भगवान भोलेनाथ देवी सती से विवाह रचाने हेतु बारात लेकर आये तो वह अपने औघड़ रूप में, तन विभूति से रमा हुआ, सर्पों की माला, बड़ी-बड़ी जटायें, भूत - प्रेत आदि साथ लेकर आये थे। उनके इस रूप को देखकर देवी सती की मां भयभीत हो मूर्छित हो गयीं और सभी डरने लगे। तब देवी सती ने भगवान शिव से उनके निर्मल रूप में आने अनुरोध किया। भगवान शिव के देवी सती के इस अनुरोध को न स्वीकारने के कारण देवी जगदम्बा ने क्रोधित होकर चन्द्रघण्टा का रूप लिया और उनके घंटे की ध्वनि सम्पूर्ण वातावरण में जो गूंज उठी, उस निर्मल और शीतल ध्वनि से सम्पूर्ण वातावरण सुगम हो गया। तत्पश्चात भगवान शिव अपने सहज रूप में आये और विवाह संपन्न किया।
संपूर्ण सफलता के लिए नवरात्रि पर करवाएं सामूहिक दुर्गा सप्तशती का विशेष पाठ
मंत्र जप से पूरी होगी मनोकामना
मां चंद्रघंटा की पूजा निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजन करें —
वंदना मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता |
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।
ध्यान
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥