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भगवान दत्तात्रेय का प्रकट उत्सव: 24 गुरुओं वाले अद्वितीय देव, जिनमें बसते हैं ब्रह्मा-विष्णु-महेश
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Thu, 04 Dec 2025 08:58 AM IST
सार
आज 4 दिसंबर 2025 को दत्तात्रेय जयंती है। हिंदू पंचांग के अनुसार भगवान दत्तात्रेय का प्रागट्य मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का अंश अवतार माना गया है।
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दत्तात्रेय जयंती 2025
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान दत्तात्रेय का अवतरण हुआ था। शास्त्रों में दत्तात्रेय को त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और शिव—का संयुक्त स्वरूप बताया गया है। इनकी उपासना त्रिगुण रुप में की जाती है। दक्षिण भारत सहित सम्पूर्ण भारत में दत्त संप्रदाय के अनेक प्रमुख मंदिर स्थित हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान दत्तात्रेय के स्मरण, व्रत और दर्शन-पूजन से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन से कष्ट दूर होते हैं।
1. त्रिदेव का संयुक्त अवतार—दत्तात्रेय
भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का अंश अवतार माना गया है। इनके तीन मुख और छह भुजाएँ इसी त्रिदेवीय स्वरूप का प्रतीक हैं। ये केवल देव ही नहीं, वरन् योग, तप और ज्ञान के सर्वोच्च स्वरूप माने जाते हैं। दत्तात्रेय मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर विशेष रूप से पूजित होते हैं और इनके नाम से ‘दत्त’ संप्रदाय की स्थापना भी हुई।
2. दत्तात्रेय के 24 अद्भुत गुरु
श्री दत्तात्रेय का जीवन अत्यंत विलक्षण है। उन्होंने प्रकृति और जीवन के हर रूप से शिक्षा ग्रहण की। इसीलिए इनके 24 गुरु माने गए—प्रकृति से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, समुद्र, सूर्य और चंद्रमा जैसे आठ तत्व—और जीव जगत से सर्प, मकड़ी, झींगुर, पतंगा, भौंरा, मधुमक्खी, मछली, कौआ, कबूतर, हिरण, अजगर और हाथी जैसे 12 प्राणी। इसके अतिरिक्त एक बालक, एक लोहार, एक कन्या और पिंगला नाम की वेश्या से भी उन्होंने जीवन-ज्ञान प्राप्त किया। दत्तात्रेय का संदेश है कि जहाँ से भी ज्ञान मिले, उसे विनम्रता से गुरु मान लेना चाहिए।
3. अत्रि ऋषि की कामना और ‘दत्त’ नाम का रहस्य
श्रीमद्भागवत के अनुसार महर्षि अत्रि ने भगवान विष्णु को पुत्र रूप में प्राप्त करने की महान अभिलाषा की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और बोले—“मैंने स्वयं को आपको दिया।” इसी ‘दिया गया’ भाव से नाम पड़ा दत्त, और अत्रि के पुत्र होने से आत्रेय। इस प्रकार यह दिव्य स्वरूप ‘दत्तात्रेय’ कहलाया। उनकी माता सती अनुसूया पतिव्रता और तेजस्विता का अद्वितीय उदाहरण हैं।
4. सती अनुसूया के पतिव्रत की परीक्षा
शास्त्रों में वर्णित एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, माता अनुसूया के पतिव्रत की महिमा तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी। नारदजी द्वारा प्रशंसा सुनकर माता पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। तीनों देवियाँ अपने पतियों—ब्रह्मा, विष्णु और शिव—को पृथ्वी पर भेजती हैं।
अत्रि ऋषि की अनुपस्थिति में तीनों देव साधु वेश में आश्रम पहुँचे और माता अनुसूया से निर्वस्त्र होकर भोजन कराने की शर्त रख दी। माता ने मन में विचलन होते हुए भी अतिथि-धर्म निभाने का निश्चय किया और पति को स्मरण किया। उसी क्षण उन्हें साधुओं के रूप में खड़े त्रिदेव दिखाई दिए। उन्होंने अत्रि ऋषि के कमंडल का जल छिड़का और तीनों देव शिशु रूप में परिवर्तित हो गए।
5. दत्तात्रेय जन्म कथा : तीन देव एक बालरूप में
अनुसूया जी ने शर्त के अनुसार तीनों बालरूप देवों को स्नेहपूर्वक भोजन कराया। इधर अपने पतियों के बिना तीनों देवियाँ व्याकुल थीं। नारदजी के मार्गदर्शन पर वे पृथ्वी पर पहुँचीं और माता अनुसूया से क्षमा माँगी। तीनों देवों ने भी उनकी परीक्षा पर खेद जताया और माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसी इच्छा पूर्ति हेतु तीनों देवों ने संयुक्त रूप से दत्तात्रेय के रूप में अवतार लिया। इसके बाद माता अनुसूया ने अत्रि ऋषि के चरणोदक से तीनों देवों को पूर्ववत स्वरूप में लौटा दिया। इस प्रकार जगत में त्रिदेव का संयुक्त और अद्भुत अवतार प्रकट हुए भगवान दत्तात्रेय।
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1. त्रिदेव का संयुक्त अवतार—दत्तात्रेय
भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का अंश अवतार माना गया है। इनके तीन मुख और छह भुजाएँ इसी त्रिदेवीय स्वरूप का प्रतीक हैं। ये केवल देव ही नहीं, वरन् योग, तप और ज्ञान के सर्वोच्च स्वरूप माने जाते हैं। दत्तात्रेय मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर विशेष रूप से पूजित होते हैं और इनके नाम से ‘दत्त’ संप्रदाय की स्थापना भी हुई।
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2. दत्तात्रेय के 24 अद्भुत गुरु
श्री दत्तात्रेय का जीवन अत्यंत विलक्षण है। उन्होंने प्रकृति और जीवन के हर रूप से शिक्षा ग्रहण की। इसीलिए इनके 24 गुरु माने गए—प्रकृति से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, समुद्र, सूर्य और चंद्रमा जैसे आठ तत्व—और जीव जगत से सर्प, मकड़ी, झींगुर, पतंगा, भौंरा, मधुमक्खी, मछली, कौआ, कबूतर, हिरण, अजगर और हाथी जैसे 12 प्राणी। इसके अतिरिक्त एक बालक, एक लोहार, एक कन्या और पिंगला नाम की वेश्या से भी उन्होंने जीवन-ज्ञान प्राप्त किया। दत्तात्रेय का संदेश है कि जहाँ से भी ज्ञान मिले, उसे विनम्रता से गुरु मान लेना चाहिए।
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3. अत्रि ऋषि की कामना और ‘दत्त’ नाम का रहस्य
श्रीमद्भागवत के अनुसार महर्षि अत्रि ने भगवान विष्णु को पुत्र रूप में प्राप्त करने की महान अभिलाषा की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और बोले—“मैंने स्वयं को आपको दिया।” इसी ‘दिया गया’ भाव से नाम पड़ा दत्त, और अत्रि के पुत्र होने से आत्रेय। इस प्रकार यह दिव्य स्वरूप ‘दत्तात्रेय’ कहलाया। उनकी माता सती अनुसूया पतिव्रता और तेजस्विता का अद्वितीय उदाहरण हैं।
4. सती अनुसूया के पतिव्रत की परीक्षा
शास्त्रों में वर्णित एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, माता अनुसूया के पतिव्रत की महिमा तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी। नारदजी द्वारा प्रशंसा सुनकर माता पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। तीनों देवियाँ अपने पतियों—ब्रह्मा, विष्णु और शिव—को पृथ्वी पर भेजती हैं।
अत्रि ऋषि की अनुपस्थिति में तीनों देव साधु वेश में आश्रम पहुँचे और माता अनुसूया से निर्वस्त्र होकर भोजन कराने की शर्त रख दी। माता ने मन में विचलन होते हुए भी अतिथि-धर्म निभाने का निश्चय किया और पति को स्मरण किया। उसी क्षण उन्हें साधुओं के रूप में खड़े त्रिदेव दिखाई दिए। उन्होंने अत्रि ऋषि के कमंडल का जल छिड़का और तीनों देव शिशु रूप में परिवर्तित हो गए।
5. दत्तात्रेय जन्म कथा : तीन देव एक बालरूप में
अनुसूया जी ने शर्त के अनुसार तीनों बालरूप देवों को स्नेहपूर्वक भोजन कराया। इधर अपने पतियों के बिना तीनों देवियाँ व्याकुल थीं। नारदजी के मार्गदर्शन पर वे पृथ्वी पर पहुँचीं और माता अनुसूया से क्षमा माँगी। तीनों देवों ने भी उनकी परीक्षा पर खेद जताया और माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसी इच्छा पूर्ति हेतु तीनों देवों ने संयुक्त रूप से दत्तात्रेय के रूप में अवतार लिया। इसके बाद माता अनुसूया ने अत्रि ऋषि के चरणोदक से तीनों देवों को पूर्ववत स्वरूप में लौटा दिया। इस प्रकार जगत में त्रिदेव का संयुक्त और अद्भुत अवतार प्रकट हुए भगवान दत्तात्रेय।