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Saphala Ekadashi 2025: सफला एकादशी आज, जानिए इस व्रत का महत्व, पूजाविधि और कथा
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Mon, 15 Dec 2025 07:01 AM IST
सार
Saphala Ekadashi 2025: 15 दिसंबर को सफला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। हिंदू धर्म में सफला एकादशी के व्रत का विशेष महत्व होता है। हर वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी कहते हैं। यह अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार साल की आखिरी एकादशी है। इस एकादशी का व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से हजारों वर्ष तक साधना का पुण्य लाभ प्राप्त होता है।
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Saphala Ekadashi 2025: सफला एकादशी तो अपने नाम के अनुसार ही सभी कार्यों को सफल एवं पूर्ण करने वाली है।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
Saphala Ekadashi 2025: परमेश्वर श्रीविष्णु ने अपने कृष्ण अवतार में महाभारत युद्ध से पहले पाण्डुपुत्र अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि हे अर्जुन! मैं ही सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद,गंधर्वों में चित्ररथ, सिद्धों में कपिल मुनि,तिथियों में एकादशी एवं नदियों में गंगा हूँ। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार नारदजी के पूछने पर एकादशी का माहात्म्य बताते हुए श्रीनारायण ने कहा- मुने! यह एकादशी व्रत देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जैसे देवताओं में श्री कृष्ण,देवियों में प्रकृति,वर्णों में ब्राह्मण तथा वैष्णवों में भगवान शिव श्रेष्ठ हैं,उसी प्रकार व्रतों में एकादशी व्रत श्रेष्ठ है।
मान्यता है कि भगवान विष्णु ने मनुष्य के कल्याण हेतु अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया। ये सभी एकादशियां विशेष पुण्यफल प्रदान करने वाली एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती हैं। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को 'सफला एकादशी' कहा जाता है। सफला एकादशी तो अपने नाम के अनुसार ही सभी कार्यों को सफल एवं पूर्ण करने वाली है। पुराणों में इस एकादशी के सन्दर्भ में कहा गया है कि हज़ारों वर्ष तक तपस्या करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है ,वह पुण्य भक्तिपूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को शुद्ध कर भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम को पीले वस्त्र पर विराजमान करें। दीप प्रज्वलित कर भगवान को चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी दल, और फल अर्पित करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। सांयकाल में दीपदान और रात्रि जागरण कर भगवान की आराधना करें। इस दिन मंदिर एवं तुलसी के नीचे दीपदान करने का महत्त्व धर्मग्रंथों में बताया गया है। अगले दिन द्वादशी पर ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें। इस विधि से व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। जो लोग किसी कारणवश इस एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें इस दिन भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथा का पाठ करना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम,गीता एवं रामायण का पाठ करना भी इस दिन उत्तम फलदायी होता है। एकादशी व्रत में व्यक्ति भौतिक इच्छाओं को त्यागकर अपने मन, वाणी, और कर्म को शुद्ध करता है। व्रत के दौरान भगवान विष्णु के नाम का स्मरण एवं उनकी उपासना करने से आत्मा को शुद्धि मिलती है।
पुराणों के अनुसार राजा माहिष्मत का ज्येष्ठ पुत्र 'लुम्भक' सदैव पाप कार्यों में लीन रहकर देवी-देवताओं की निंदा किया करता था। पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा ने उसे बहुत समझाया,लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे अपने राज्य से निकाल दिया। पाप बुद्धि लुम्भक वन में प्रतिदिन मांस तथा फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा। उस दुष्ट का विश्राम स्थान बहुत पुराने पीपल वृक्ष के पास था। पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह शीत के कारण निष्प्राण सा हो गया। अगले दिन सफला एकादशी को दोपहर में सूर्य देव के ताप के प्रभाव से उसे होश आया। भूख से दुर्बल लुम्भक जब फल एकत्रित करके लाया तो सूर्य अस्त हो गया। तब उसने वही पीपल के वृक्ष की जड़ में फलों को निवेदन करते हुए कहा- 'इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों'। अनायास ही लुम्भक से इस व्रत का पालन हो गया जिसके प्रभाव से लुम्भक को दिव्य रूप,राज्य,पुत्र आदि सभी प्राप्त हुए। सफला एकादशी की महिमा को पढ़ने या सुनने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है।
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मान्यता है कि भगवान विष्णु ने मनुष्य के कल्याण हेतु अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया। ये सभी एकादशियां विशेष पुण्यफल प्रदान करने वाली एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती हैं। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को 'सफला एकादशी' कहा जाता है। सफला एकादशी तो अपने नाम के अनुसार ही सभी कार्यों को सफल एवं पूर्ण करने वाली है। पुराणों में इस एकादशी के सन्दर्भ में कहा गया है कि हज़ारों वर्ष तक तपस्या करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है ,वह पुण्य भक्तिपूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
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ऐसे होंगे श्रीहरि प्रसन्नप्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को शुद्ध कर भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम को पीले वस्त्र पर विराजमान करें। दीप प्रज्वलित कर भगवान को चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी दल, और फल अर्पित करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। सांयकाल में दीपदान और रात्रि जागरण कर भगवान की आराधना करें। इस दिन मंदिर एवं तुलसी के नीचे दीपदान करने का महत्त्व धर्मग्रंथों में बताया गया है। अगले दिन द्वादशी पर ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें। इस विधि से व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। जो लोग किसी कारणवश इस एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें इस दिन भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथा का पाठ करना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम,गीता एवं रामायण का पाठ करना भी इस दिन उत्तम फलदायी होता है। एकादशी व्रत में व्यक्ति भौतिक इच्छाओं को त्यागकर अपने मन, वाणी, और कर्म को शुद्ध करता है। व्रत के दौरान भगवान विष्णु के नाम का स्मरण एवं उनकी उपासना करने से आत्मा को शुद्धि मिलती है।
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सफला एकादशी कथापुराणों के अनुसार राजा माहिष्मत का ज्येष्ठ पुत्र 'लुम्भक' सदैव पाप कार्यों में लीन रहकर देवी-देवताओं की निंदा किया करता था। पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा ने उसे बहुत समझाया,लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे अपने राज्य से निकाल दिया। पाप बुद्धि लुम्भक वन में प्रतिदिन मांस तथा फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा। उस दुष्ट का विश्राम स्थान बहुत पुराने पीपल वृक्ष के पास था। पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह शीत के कारण निष्प्राण सा हो गया। अगले दिन सफला एकादशी को दोपहर में सूर्य देव के ताप के प्रभाव से उसे होश आया। भूख से दुर्बल लुम्भक जब फल एकत्रित करके लाया तो सूर्य अस्त हो गया। तब उसने वही पीपल के वृक्ष की जड़ में फलों को निवेदन करते हुए कहा- 'इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों'। अनायास ही लुम्भक से इस व्रत का पालन हो गया जिसके प्रभाव से लुम्भक को दिव्य रूप,राज्य,पुत्र आदि सभी प्राप्त हुए। सफला एकादशी की महिमा को पढ़ने या सुनने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है।
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