शंखध्वनि से अमंगल का नाश और लक्ष्मी का वास: जानिए शास्त्रों में वर्णित शंख के चमत्कारी प्रभाव
हिंदू धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना जाता है। किसी भी तरह के पारंपारिक और धार्मिक अनुष्ठान में शंख की ध्वनि बहुत ही मंगलकारी मानी जाती है।
विस्तार
सनातन धर्म में सभी वैदिक कार्यों में शंख का विशेष स्थान है,इसके बिना कोई भी पूजा सम्पन्न नहीं होती। सुख-समृद्धि एवं सौभाग्यदायी शंख को भारतीय संस्कृति में मांगलिक चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया है। शंख भगवान विष्णु का प्रमुख आयुध है। शंख की ध्वनि आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न होती है। शास्त्रों के अनुसार शंख की उत्पत्ति शंखचूर्ण की हड्डियों से हुई है, इसलिए इसे पवित्र वस्तुओं में परम पवित्र व मंगलों के भी मंगल माना गया है।
शंख के प्रकार और लक्ष्मी से संबंध
यूँ तो शंख कई प्रकार के होते हैं, लेकिन वामावर्ती और दक्षिणावर्ती शंख प्रमुख होते हैं। भगवती महालक्ष्मी और दक्षिणावर्ती शंख दोनों की ही उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय सागर से हुई। इसलिए शंख को लक्ष्मी का छोटा भाई कहा गया है।
दक्षिणावर्ती शंख में देवताओं का वास
दक्षिणावर्ती शंख के शीर्ष में चन्द्र देवता, मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा, यमुना तथा सरस्वती का वास माना गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख अनेक प्रकार के रूपों में विराजमान होकर देवताओं की पूजा में निरन्तर पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अचूक साधन है।
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शंख का जल और शंखध्वनि का पुण्य प्रभाव
इसके पवित्र जल को तीर्थमय माना जाता है। जहाँ कहीं भी शंखध्वनि होती है, वहाँ लक्ष्मीजी सम्यक प्रकार से विराजमान रहती हैं। जो शंख के जल से स्नान कर लेता है, उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। जहाँ पर शंख रहता है, वहाँ भगवान श्री हरि, भगवती लक्ष्मी सहित सदा निवास करते हैं और अमंगल दूर से ही भाग जाता है।
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धार्मिक अनुष्ठान और महाभारत में शंख
विजय का प्रतीक माने जाने वाले शंख से किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के आरम्भ में शंखध्वनि की जाती है। इसकी ध्वनि जहाँ तक पहुँचती है, वहाँ तक के वातावरण में रहने वाले सभी कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, ऐसा शोधों से भी स्पष्ट हुआ है। शंख का जल सभी को पवित्र करने वाला माना गया है, इसी वजह से आरती के बाद श्रद्धालुओं पर शंख से जल छिड़का जाता है। महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख, अर्जुन ने देवदत्त और भीम ने पौंड्रक नामक बड़े शंख बजाए। वहीं युधिष्ठिर ने अनंतविजय, नकुल ने सुघोष और सहदेव ने मणिपुष्पक शंख को बजाकर युद्ध का उद्घोष किया।