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Mahavir Jayanti 2025: आज महावीर जयंती, जानिए कौन थे भगवान महावीर और उनके जीवन जीने के पांच सूत्र
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Thu, 10 Apr 2025 06:53 AM IST
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सार
Mahavir Jayanti 2025: महावीर जयंती केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि यह दिन मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। इस दिन जैन समाज द्वारा विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक, कलश यात्रा, शोभायात्रा और धर्मोपदेशों का आयोजन किया जाता है।

महावीर जयंती 2025
- फोटो : adobe stock

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विस्तार
Mahavir Jayanti 2025: हर वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को पूरे देश में महावीर जयंती श्रद्धा, आस्था और शांति के संदेश के साथ मनाई जाती है। यह दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए सत्य, अहिंसा और संयम की प्रेरणा देने वाला दिन है।
भगवान महावीर का जीवन परिचय
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलपुर में हुआ था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ लिच्छवी वंश के शासक थे और माता त्रिशला गणराज्य की राजकुमारी थीं। बाल्यकाल से ही महावीर में गहरी संवेदनशीलता, वैराग्य और सत्य की खोज की प्रवृत्ति थी।
जब वे 30 वर्ष के हुए, तब उन्होंने राजपाठ, परिवार और ऐश्वर्य को त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। इसके बाद 12 वर्षों तक कठोर तप, ध्यान और मौन साधना की। अंततः उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे 'जिन' अर्थात इंद्रियों को जीतने वाले कहलाए। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन जनकल्याण और धर्म प्रचार में अर्पित कर दिया।
महावीर जयंती का धार्मिक और सामाजिक महत्व
महावीर जयंती केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि यह दिन मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। इस दिन जैन समाज द्वारा विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक, कलश यात्रा, शोभायात्रा और धर्मोपदेशों का आयोजन किया जाता है। देशभर के जैन मंदिरों में भगवान महावीर की प्रतिमाओं का अभिषेक किया जाता है। कई स्थानों पर निःशुल्क चिकित्सा शिविर, अन्नदान और पुस्तक वितरण जैसे सेवा कार्य भी किए जाते हैं।
भगवान महावीर के जीवन जीने के पांच सूत्र
भगवान महावीर ने जो पांच प्रमुख व्रत बताए, वे ही उनके जीवन दर्शन के मूल आधार हैं।
अहिंसा
हर जीव में आत्मा है, इसलिए किसी को भी कष्ट पहुंचाना पाप है। महावीर ने मन, वचन और कर्म से अहिंसा का पालन करने का संदेश दिया।
सत्य बोलना ही आत्मा की शुद्धि का मार्ग है। उन्होंने कहा कि झूठ बोलने से मन अशांत होता है और समाज में अविश्वास फैलता है।
अस्तेय
बिना अनुमति किसी वस्तु को लेना या चुराना अपराध है। संतोष और आत्मनियंत्रण जीवन में सुख का मार्ग है।
ब्रह्मचर्य
इंद्रियों पर नियंत्रण, मानसिक और शारीरिक संयम आत्मा की उन्नति के लिए आवश्यक है।
अपरिग्रह
जितना कम संग्रह करेंगे, उतना जीवन सरल और शांत होगा। धन, वस्त्र, रिश्तों और इच्छाओं का मोह त्यागना ही सच्चा वैराग्य है।
भगवान महावीर के ये सिद्धांत आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि बिना हिंसा, छल, और मोह के भी जीवन को सुंदर और सफल बनाया जा सकता है।
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भगवान महावीर का जीवन परिचय
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलपुर में हुआ था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ लिच्छवी वंश के शासक थे और माता त्रिशला गणराज्य की राजकुमारी थीं। बाल्यकाल से ही महावीर में गहरी संवेदनशीलता, वैराग्य और सत्य की खोज की प्रवृत्ति थी।
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जब वे 30 वर्ष के हुए, तब उन्होंने राजपाठ, परिवार और ऐश्वर्य को त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। इसके बाद 12 वर्षों तक कठोर तप, ध्यान और मौन साधना की। अंततः उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे 'जिन' अर्थात इंद्रियों को जीतने वाले कहलाए। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन जनकल्याण और धर्म प्रचार में अर्पित कर दिया।
महावीर जयंती का धार्मिक और सामाजिक महत्व
महावीर जयंती केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि यह दिन मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। इस दिन जैन समाज द्वारा विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक, कलश यात्रा, शोभायात्रा और धर्मोपदेशों का आयोजन किया जाता है। देशभर के जैन मंदिरों में भगवान महावीर की प्रतिमाओं का अभिषेक किया जाता है। कई स्थानों पर निःशुल्क चिकित्सा शिविर, अन्नदान और पुस्तक वितरण जैसे सेवा कार्य भी किए जाते हैं।
भगवान महावीर के जीवन जीने के पांच सूत्र
भगवान महावीर ने जो पांच प्रमुख व्रत बताए, वे ही उनके जीवन दर्शन के मूल आधार हैं।
अहिंसा
हर जीव में आत्मा है, इसलिए किसी को भी कष्ट पहुंचाना पाप है। महावीर ने मन, वचन और कर्म से अहिंसा का पालन करने का संदेश दिया।
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सत्यसत्य बोलना ही आत्मा की शुद्धि का मार्ग है। उन्होंने कहा कि झूठ बोलने से मन अशांत होता है और समाज में अविश्वास फैलता है।
अस्तेय
बिना अनुमति किसी वस्तु को लेना या चुराना अपराध है। संतोष और आत्मनियंत्रण जीवन में सुख का मार्ग है।
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अपरिग्रह
जितना कम संग्रह करेंगे, उतना जीवन सरल और शांत होगा। धन, वस्त्र, रिश्तों और इच्छाओं का मोह त्यागना ही सच्चा वैराग्य है।
भगवान महावीर के ये सिद्धांत आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि बिना हिंसा, छल, और मोह के भी जीवन को सुंदर और सफल बनाया जा सकता है।