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Bhagavad Gita: तनाव से राहत दिलाती हैं गीता में लिखी ये पांच बातें, जानिए इनके बारे में

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: मेघा कुमारी Updated Sat, 05 Jul 2025 11:18 AM IST
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सार

Bhagavad Gita: श्रीकृष्ण के मुताबिक सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं, जो आते-जाते रहते हैं। इसलिए "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" इसका अर्थ है कि "कर्म करो फल की चिंता मत करो" 

Top Shlokas of Bhagavad Gita about life and happiness know motivational quotes in hindi
geeta - फोटो : adobe stock
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विस्तार
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Shlokas of Bhagavad Gita: जीवन में व्यक्ति कई बार असफलताओं का सामना करता है। इसके जरिए वह अपने मार्ग में सुधार और सीमाओं को समझकर आगे बढ़ता है। इसके अलावा असफलता इंसान को धैर्यवान भी बनाती है जिससे सफलता का मार्ग और भी खुबसूरत बन जाता है। हालांकि फिर भी मन नकारात्मकता और दिमाग तनाव से भर जाता है। श्रीकृष्ण के मुताबिक सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं, जो आते-जाते रहते हैं। इसलिए "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" इसका अर्थ है कि "कर्म करो फल की चिंता मत करो"

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यदि आप ऐसे विचार के साथ अपने लक्ष्यों के लिए प्रयास करते हैं, तो सफलता अवश्य मिलती हैं। कहा जाता है कि जब अर्जुन के कदम युद्ध के लिए डगमगाने लगे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का पाठ पढ़ाया था। तभी से जीवन के कठिन समय में गीता का अध्ययन करने की सलाह दी जाती है। इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक शांति का एहसास और सही निर्णय लेने में सफल बनता है। ऐसे में आइए गीता में मौजूद श्लोंको से कुछ अहम के बारे में जानते हैं जिसका अध्ययन मनुष्य को अवश्य करना चाहिए।

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ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

इस श्कोल का अर्थ है कि जब भी हम कोई चीज देखते हैं, तो उसे लेने की इच्छा मन में जागृत होती हैं। धीरे-धीरे उस वस्तु के प्रति हमारा लगाव होने लगता है। परंतु जब वह इच्छा पूरी नहीं होती, तो मन क्रोधित भी हो जाता है, जिसका प्रभाव उचित नहीं है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। 


"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥"

श्री कृष्ण के अनुसार कामना, क्रोध और लोभ यह तीनों ही नरक के द्वार हैं। इसलिए इनसे दूरी बनाकर रखें।

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

गीता के इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर विश्वास और नियंत्रण रखता है वह अपनी इच्छा से ज्ञान प्राप्त कर लेता है।

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

श्री कृष्ण के मुताबिक क्रोध व्यक्ति का दिल और दिमाग दोनों नष्ट करता है, क्योंकि जब भी क्रोध आता है तो सभी तर्क खो जाते हैं। इसलिए समय कैसा भी हो मन को शांत रखें और क्रोध से दूर रहें।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। 

 

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