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Amar Ujala Samvad: कौन हैं दीपा मलिक? पैरालंपिक में भारत को शॉट पुट में दिला चुकीं रजत, जानें उनके बारे में
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, देहरादून
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Sun, 04 Aug 2024 07:58 AM IST
सार
दीपा मलिक का जन्म 1970 में हुआ था। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से में पूरी तरह से संवेदनहीनता आ गई और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा।
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दीपा मलिक
- फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
दीपा मलिक एक प्रमुख भारतीय पैरालंपियन और खिलाड़ी हैं, जिन्होंने खेल जगत में अपनी अपार क्षमताओं और मेहनत से एक विशेष स्थान बनाया है। उनकी कहानी प्रेरणा और दृढ़ता की मिसाल है। दीपा अब रविवार को देहरादून में होने वाले अमर उजाला संवाद में शिरकत करती दिखेंगी। यहां उनकी उपलब्धियों और उनके जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही है:
प्रारंभिक जीवन और स्वास्थ्य समस्याएं
दीपा मलिक का जन्म 1970 में हुआ था। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से में पूरी तरह से संवेदनहीनता आ गई और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। उसी समय उनके पति कर्नल विक्रम सिंह कारगिल में देश के लिए जंग लड़ रहे थे। उस दौरान ही दीपा की स्पाइनल ट्यूमर सर्जरी हुई और उनको 183 टांके लगे थे। हालांकि, इस कठिन परिस्थिति ने उन्हें हतोत्साहित नहीं किया, बल्कि उन्होंने इसे अपने आत्म-संवर्धन और खेल में उत्कृष्टता के लिए एक प्रेरणा के रूप में स्वीकार किया।
सामाजिक कार्य और लिखने में रुचि रखती हैं दीपा
दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं। दीपा को लिखने का शौक है और वह अपनी बायोग्राफी से लेकर खिलाड़ियों के बारे में लिखती हैं। दीपा की उम्र 53 साल है और उसके पास 50 से ज्यादा स्वर्ण पदक हैं। दीपा मलिक की सल्तनत केवल अपने ही देश में नहीं है, वह विदेशों में पहले भी अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी है। दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जेवलिन व डिस्कस थ्रोअर हैं। उन्होंने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के लिए कई पहल की हैं और समाज में समावेशिता के महत्व को बढ़ावा दिया है। उनकी जीवन यात्रा और उपलब्धियां यह दर्शाती हैं कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद सपने देखना और उन्हें पूरा करना संभव है। दीपा मलिक का संघर्ष, मेहनत, और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।
सात साल पहले जीता था पहला पदक
दीपा ने 2009 में शॉट पुट में अपना पहला पदक(कांस्य) जीता था। इसके अगले ही साल ऐसा कमाल किया कि इंग्लैंड में शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और जेवलिन तीनों में गोल्ड मेडल जीते। उस साल दीपा के सितारे बुलंदी पर रहे और उसने चाइना में पैरा एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता। वहां कांस्य जीतने वाली दीपा पहली भारतीय महिला बनीं।।
खेल करियर और उपलब्धियां
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प्रारंभिक जीवन और स्वास्थ्य समस्याएं
दीपा मलिक का जन्म 1970 में हुआ था। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से में पूरी तरह से संवेदनहीनता आ गई और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। उसी समय उनके पति कर्नल विक्रम सिंह कारगिल में देश के लिए जंग लड़ रहे थे। उस दौरान ही दीपा की स्पाइनल ट्यूमर सर्जरी हुई और उनको 183 टांके लगे थे। हालांकि, इस कठिन परिस्थिति ने उन्हें हतोत्साहित नहीं किया, बल्कि उन्होंने इसे अपने आत्म-संवर्धन और खेल में उत्कृष्टता के लिए एक प्रेरणा के रूप में स्वीकार किया।
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सामाजिक कार्य और लिखने में रुचि रखती हैं दीपा
दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं। दीपा को लिखने का शौक है और वह अपनी बायोग्राफी से लेकर खिलाड़ियों के बारे में लिखती हैं। दीपा की उम्र 53 साल है और उसके पास 50 से ज्यादा स्वर्ण पदक हैं। दीपा मलिक की सल्तनत केवल अपने ही देश में नहीं है, वह विदेशों में पहले भी अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी है। दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जेवलिन व डिस्कस थ्रोअर हैं। उन्होंने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के लिए कई पहल की हैं और समाज में समावेशिता के महत्व को बढ़ावा दिया है। उनकी जीवन यात्रा और उपलब्धियां यह दर्शाती हैं कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद सपने देखना और उन्हें पूरा करना संभव है। दीपा मलिक का संघर्ष, मेहनत, और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।
सात साल पहले जीता था पहला पदक
दीपा ने 2009 में शॉट पुट में अपना पहला पदक(कांस्य) जीता था। इसके अगले ही साल ऐसा कमाल किया कि इंग्लैंड में शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और जेवलिन तीनों में गोल्ड मेडल जीते। उस साल दीपा के सितारे बुलंदी पर रहे और उसने चाइना में पैरा एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता। वहां कांस्य जीतने वाली दीपा पहली भारतीय महिला बनीं।।
खेल करियर और उपलब्धियां
- दीपा ने 2011 में वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक जीता तो उसी साल शरजहां में वर्ल्ड गेम्स में दो कांस्य पदक जीते। वर्ष 2012 में मलेशिया ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जेवलिन व डिस्कस थ्रो में दो स्वर्ण पदक जीते।
- अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं: दीपा ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी भारत का नाम रोशन किया है। इनमें 2014 एशियन पैरा गेम्स में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पदक शामिल हैं। उन्होंने शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में भी कई पदक जीते हैं।
- 2014 में चाइना ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप बीजिंग में शॉटपुट में स्वर्ण पदक जीता। उसी साल इंच्योन एशियन पैरा गेम्स में रजत पदक जीकर रिकॉर्ड बनाया।
- साल 2016 भी दीपा मलिक के लिए बेहतर रहा है और पैरालंपिक में रजत से पहले ही दुबई में ओसिएनिया एशियन चैंपियनशिप में जेवलिन थ्रो में स्वर्ण व शॉटपुट में कांस्य पदक जीता।
- पैरालंपिक खेल: दीपा मलिक ने 2016 रियो पैरालंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और महिलाओं की शॉट पुट स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचा। वे 2016 में भारतीय पैरालंपिक टीम की सबसे प्रमुख खिलाड़ी बनीं।
- राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार: दीपा को भारत सरकार द्वारा 'अर्जुन अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया है, जो भारतीय खेल जगत में उत्कृष्टता का सम्मान है।
- प्रेरणास्त्रोत: दीपा मलिक की सफलता ने उन्हें एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया है। वे विशेष रूप से विकलांगता वाले युवाओं के लिए एक आदर्श बनी हैं और उन्होंने अपने प्रयासों से यह साबित किया है कि सीमाएं केवल मन में होती हैं।