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मनीष नरवाल की कहानी: पिस्टल दिलाने को पिता के पास नहीं थे पैसे, मकान बेचकर दिलाया था तमंचा, बेटे ने रचा इतिहास
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, पेरिस
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Fri, 30 Aug 2024 06:02 PM IST
सार
मनीष ने पैरालंपिक के अलावा 2022 एशियाई पैरा गेम्स में 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीता है। उन्हें 2020 में अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया था। 2021 में मनीष को खेल रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
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मनीष नरवाल
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
अवनि लेखरा के बाद भारत के एक और स्टार शूटर मनीष नरवाल ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 स्पर्धा में भारत के लिए रजत पदक जीता है। उन्होंने अपने लगातार दूसरे पैरालंपिक में पदक पर निशाना साधा है। इससे पहले टोक्यो पैरालंपिक में मनीष ने 50 मीटर पिस्टल एसएच1 मिश्रित स्पर्धा में स्वर्ण जीता था। हालांकि, मनीष के लिए यह कामयाबी आसान नहीं रही है। उन्होंने इसके लिए काफी संघर्ष किया है। हालांकि, इन संघर्षों ने उनके जज्बे को टूटने नहीं दिया और अब मनीष ने इतिहास रच दिया है।
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मनीष नरवाल
- फोटो : Twitter
मनीष नरवाल का जन्म 17 अक्तूबर 2021 को हुआ था। उनका दांया हाथ बचपन से ही काम नहीं करता था। घर वालों ने डॉक्टर, अस्पताल से लेकर मंदिरों तक में मत्था टेका, लेकिन उन्हें मनीष का हाथ ठीक करने में सफलता नहीं मिली। मनीष समझदार हुए तो उनका पहला प्यार फुटबॉल बन गया। वह इस खेल को दीवानेपन की हद तक खेलते थे, लेकिन एक दिन फुटबॉल खेलने के दौरान उनके दांए हाथ में उन्हें चोट लग गई। खून भी बहा, लेकिन उन्हें न तो दर्द हुआ और न ही चोट का पता लगा। घर गए तो माता-पिता ने हाथ से खून बहता देखा तो उन्हें इसके बारे में पता लगा।
माता-पिता ने उसी दिन उनकी फुटबॉल छुड़वा दी। पिता के एक दोस्त के कहने पर मनीष को शूटिंग शुरू कराई गई। उसमें भी उन्होंने झंडे गाड़ने शुरू किए तो पिस्टल की जरूरत पड़ी। अब पिस्टल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे तो पिता दिलबाग ने सात लाख रुपये में मकान बेचकर बेटे को पिस्टल थमा दी। उसी बेटे ने पिता को बेचे गए मकान के बदले पैरालंपिक में एक स्वर्ण और एक रजत समेत दो पदक लाकर उसकी कीमत अदा कर दी।
माता-पिता ने उसी दिन उनकी फुटबॉल छुड़वा दी। पिता के एक दोस्त के कहने पर मनीष को शूटिंग शुरू कराई गई। उसमें भी उन्होंने झंडे गाड़ने शुरू किए तो पिस्टल की जरूरत पड़ी। अब पिस्टल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे तो पिता दिलबाग ने सात लाख रुपये में मकान बेचकर बेटे को पिस्टल थमा दी। उसी बेटे ने पिता को बेचे गए मकान के बदले पैरालंपिक में एक स्वर्ण और एक रजत समेत दो पदक लाकर उसकी कीमत अदा कर दी।
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मनीष नरवाल
- फोटो : Twitter
बाएं हाथ से पिस्टल पकड़ने में होती थी मुश्किल
19 साल के मनीष खुलासा करते हैं कि उन्हें फुटबॉल बहुत पसंद थी। वह इसी में अपना करियर बनाना चाहते थे, लेकिन हाथ में चोट लगने के बाद उनके पिता अपने दोस्त को कहने पर बल्लभगढ़ में कोच राकेश के पास लेकर गए। उनका दांया हाथ काम नहीं करता था तो बांए हाथ से पिस्टल पकड़नी होती थी। शुरुआत में काफी दिक्कत आई लेकिन एक बार आदत पड़ गई तो सब ठीक होता गया।
शूटिंग आगे जारी रखने के लिए उन्हें पिस्टल की जरूरत थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए मोरनी की पिस्टल चाहिए थी। पिता का छोटे-मोटे पुर्जे बनाने का काम था। इससे पिस्टल नहीं आनी थी। पिता के पास एक छोटा मकान था। उन्होंने इसे सात लाख रुपये में बेचकर उन्हें तकरीबन उन्हें पिस्टल दिला दी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
19 साल के मनीष खुलासा करते हैं कि उन्हें फुटबॉल बहुत पसंद थी। वह इसी में अपना करियर बनाना चाहते थे, लेकिन हाथ में चोट लगने के बाद उनके पिता अपने दोस्त को कहने पर बल्लभगढ़ में कोच राकेश के पास लेकर गए। उनका दांया हाथ काम नहीं करता था तो बांए हाथ से पिस्टल पकड़नी होती थी। शुरुआत में काफी दिक्कत आई लेकिन एक बार आदत पड़ गई तो सब ठीक होता गया।
शूटिंग आगे जारी रखने के लिए उन्हें पिस्टल की जरूरत थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए मोरनी की पिस्टल चाहिए थी। पिता का छोटे-मोटे पुर्जे बनाने का काम था। इससे पिस्टल नहीं आनी थी। पिता के पास एक छोटा मकान था। उन्होंने इसे सात लाख रुपये में बेचकर उन्हें तकरीबन उन्हें पिस्टल दिला दी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
मनीष नरवाल
- फोटो : Twitter
शूटिंग से पिता का बने सहारा
मनीष के कोच जेपी नौटियाल के मुताबिक मनीष के घर के हालात ऐसे थे उनके पिता उन्हें पिस्टल नहीं दिला सकते थे। जिसके चलते उन्हें साल 2015 में अपना मकान बेचना पड़ा। उस वक्त उनके लिए यह फैसला काफी कड़ा था, लेकिन मनीष ने दो साल के अंदर ही 2017 में जूनियर विश्व कीर्तिमान रचकर विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता। जब उन्हें बीते वर्ष अर्जुन अवार्ड जीता तो पिता ने भी अपने काम को बढ़ा लिया।
मनीष ने पैरालंपिक के अलावा 2022 एशियाई पैरा गेम्स में 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीता है। उन्हें 2020 में अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया था। 2021 में मनीष को खेल रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। मनीष ने 2016 में बल्लभगढ़ में ही अपने शूटिंग करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुआत ही धमाकेदार अंदाज में की थी। 2021 पैरा शूटिंग विश्व कप में मनीष ने पी4 मिश्रित पिस्टल एसएच1 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने तब विश्व रिकॉर्ड भी कायम किया था। वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीत चुके हैं।
मनीष के कोच जेपी नौटियाल के मुताबिक मनीष के घर के हालात ऐसे थे उनके पिता उन्हें पिस्टल नहीं दिला सकते थे। जिसके चलते उन्हें साल 2015 में अपना मकान बेचना पड़ा। उस वक्त उनके लिए यह फैसला काफी कड़ा था, लेकिन मनीष ने दो साल के अंदर ही 2017 में जूनियर विश्व कीर्तिमान रचकर विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता। जब उन्हें बीते वर्ष अर्जुन अवार्ड जीता तो पिता ने भी अपने काम को बढ़ा लिया।
मनीष ने पैरालंपिक के अलावा 2022 एशियाई पैरा गेम्स में 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीता है। उन्हें 2020 में अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया था। 2021 में मनीष को खेल रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। मनीष ने 2016 में बल्लभगढ़ में ही अपने शूटिंग करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुआत ही धमाकेदार अंदाज में की थी। 2021 पैरा शूटिंग विश्व कप में मनीष ने पी4 मिश्रित पिस्टल एसएच1 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने तब विश्व रिकॉर्ड भी कायम किया था। वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीत चुके हैं।