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AI: नए अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा, एआई के इस्तेमाल से रिसर्च पेपर्स की भाषा जटिल हुई, पर गुणवत्ता घटी

टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: सुयश पांडेय Updated Sat, 20 Dec 2025 05:10 PM IST
सार

एक नए अध्ययन में सामने आया है कि रिसर्च पेपर लिखने में एआई का बढ़ता इस्तेमाल रिसर्च को तेजी से बदल रहा है। जहां एआई की मदद से शोधकर्ताओं की प्रोडक्टिविटी में बड़ी बढ़ोतरी हुई है, वहीं कई मामलों में रिसर्च की वास्तविक गुणवत्ता कमजोर होती नजर आई है। 

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AI Is Making Research Papers Sound Smarter But Study Warns Quality May Be Declining
ऑफिस में प्रोडक्टिविटी बढ़ा रहा एआई - फोटो : AI
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विस्तार
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल अब रिसर्च पेपर लिखने में तेजी से बढ़ रहा है। इससे वैज्ञानिक दुनिया में बड़ा बदलाव आ रहा है। एक नए अध्ययन में सामने आया है कि एआई की मदद से रिसर्च पेपर्स की भाषा तो ज्यादा भारी-भरकम और जटिल हो गई है। लेकिन कई मामलों में रिसर्च की असली गुणवत्ता कमजोर पड़ रही है। यह अध्ययन मशहूर जर्नल Science में छपा है। यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब स्प्रिंगर नेचर और एल्सेवियर जैसे बड़े पब्लिशर्स रिसर्च लिखने में एआई के इस्तेमाल की अनुमति दे रहे हैं और इसके लिए नियम भी बना रहे हैं।

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अध्ययन में क्या देखा गया?

अमेरिका की कॉर्नेल और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 21 लाख से ज्यादा प्री-प्रिंट रिसर्च पेपर्स, 28,000 से अधिक पीयर-रिव्यू स्टडीज और वैज्ञानिक दस्तावेजों के करीब 24.6 करोड़ ऑनलाइन व्यूज का विश्लेषण किया। उन्होंने खास टूल्स की मदद से यह समझने की कोशिश की कि रिसर्च में एआई (LLM जैसे चैटजीपीटी और जेमिनी जैसे टाइप मॉडल) का इस्तेमाल कब शुरू हुआ और उसका क्या असर पड़ा?

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इस अध्ययन से क्या-क्या बातें सामने आईं?

1. एआई की मदद से वैज्ञानिकों की प्रोडक्टिविटी 23% से लेकर लगभग 89% तक बढ़ सकती है। जिन शोधकर्ताओं को अंग्रेजी लिखने में दिक्कत होती थी, उन्हें सबसे ज्यादा फायदा हुआ। एशिया से जुड़े शोधकर्ताओं की प्रोडक्टिविटी में 43% से 89% तक बढ़ोतरी देखी गई। वहीं, अंग्रेजी बोलने वाले देशों के शोधकर्ताओं में 23% से 46% तक की बढ़त हुई।


2. सबसे अहम और चौंकाने वाली बात ये है कि एआई से लिखे गए पेपर्स की भाषा ज्यादा जटिल और भारी लगती है। लेकिन तकनीकी और वैज्ञानिक रूप से कई पेपर्स कमजोर पाए गए। पहले माना जाता था कि मुश्किल भाषा मतलब बेहतर रिसर्च, लेकिन यह अध्ययन बताता है कि एआई की जटिल भाषा कई बार कमजोर रिसर्च को 'छिपाने' का काम कर रही है।

3. एआई के कारण अब शोधकर्ता ज्यादा तरह के स्रोतों का हवाला देने लगे हैं। किताबों और कम-cite होने वाले लेखों का इस्तेमाल बढ़ा है। करीब 12% शोधकर्ताओं ने पहले से ज्यादा किताबों को रेफर किया। यह दिखाता है कि एआई लंबी किताबों से जानकारी निकालने में काफी सक्षम है।

भविष्य की क्या है चुनौती?

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि एडवांस एआई सिस्टम भविष्य में रिसर्च की क्वालिटी, वैज्ञानिक संवाद और बौद्धिक मेहनत की हमारी समझ सबको चुनौती देंगे। उनका कहना है कि आने वाले समय में अंग्रेजी में प्रवाह उतनी जरूरी नहीं रहेगी, लेकिन रिसर्च की सही जांच, मजबूत मूल्यांकन और गहरी समीक्षा पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो जाएगी। इसका मतलब यह है कि पीयर रिव्यूअर्स, जर्नल एडिटर्स और पूरा वैज्ञानिक समुदाय अब कमजोर रिसर्च को पहचानने के लिए और ज्यादा सतर्क रहना होगा।

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