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'सी-टर्टल' का कमाल: विदेशों से लौटे वैज्ञानिकों ने चीन को बनाया दुनिया का 'टेक गुरु', अमेरिका-यूरोप भी हैरान!
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Mon, 29 Dec 2025 03:43 PM IST
सार
What Is China's Sea Turtle Strategy: चीन की 'सी-टर्टल' रणनीति की आज यूरोप और अमेरिका भी लोहा मान रहे हैं। विदेशों में पढ़ाई और अनुभव हासिल कर घर लौटने वाले चीनी विशेषज्ञों ने चीन में कई सफल कंपनियों को जन्म दिया है। ये कंपनियां आज इनोवेशन के दम पर चीन को कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बना रही हैं।
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सी-टर्टल रणनीति से चीन बन रहा आत्मनिर्भर
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
चीन में एक शब्द बहुत मशहूर है- 'हाइगुई', जिसका शाब्दिक अर्थ है 'समुद्री कछुआ'। जिस तरह समुद्री कछुआ अंडे देने के लिए मीलों का सफर तय कर वापस अपने तट पर आता है, वैसे ही चीन ने दशकों पहले एक योजना बनाई थी। इसके तहत, चीन ने अपने देश के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों को अमेरिका और यूरोप के बेहतरीन विश्वविद्यालयों जैसे MIT, स्टैनफोर्ड, हार्वर्ड में पढ़ने के लिए भेजा। लक्ष्य यह था कि जब ये लोग वहां की टॉप कंपनियों जैसे गूगल, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट में काम करके तजुर्बा हासिल कर लें, तो उन्हें भारी-भरकम सुविधाओं के साथ वापस चीन बुला लिया जाए।
सी-टर्टल रणनीति से चीन ने टेक्नोलॉजी में बनाई बढ़त
चीन ने इन विशेषज्ञों को वापस बुलाने के लिए सिर्फ देशभक्ति का सहारा नहीं लिया, बल्कि उन्हें आकर्षित करने के लिए कई खास योजनाएं भी बनाईं। एक ऐसी ही योजना चीन में काफी मशहूर है जिसे थाउजेंड टैलेंट्स प्लान (Thousand Talents Plan) कहा जाता है। इस योजना के जरिए विदेशों से लौटने वाले इंजीनियर्स को करोड़ों रुपये के ग्रांट्स, अत्याधुनिक लैब, रहने के लिए आलीशान घर और उनके बच्चों के लिए बेहतरीन स्कूलों की सुविधा दी गई। चीन का संदेश साफ था कि इंजीनियर्स विदेश में जो कुछ भी सीखकर आए हैं, उसका इस्तेमाल अपने देश को महाशक्ति बनाने में करें, चीन उनके लिए संसाधनों की कमी नहीं होने देगा।
सफलता के कुछ बड़े उदाहरण
चीन की इस रणनीति ने कई ऐसी कंपनियों को जन्म दिया जो आज दुनिया पर राज कर रही हैं। इसका उदाहरण चीन की कई बड़ी टेक कंपनियों से मिलता है। चीन के मशहूर सर्च इंजन बाइडू (Baidu) के संस्थापक रॉबिन ली ने अमेरिका में पढ़ाई की और वहां की शुरुआती सर्च इंजन तकनीक पर काम किया। जब वे वापस लौटे, तो उन्होंने चीन का अपना 'गूगल' खड़ा कर दिया। आज बाइडू दुनिया की सबसे बड़ी AI कंपनियों में से एक है।
यह भी पढ़ें: Chip War: पश्चिम के वर्चस्व को सीधी चुनौती देगा चीन का 'सुपर मशीन', मैनहैटन प्रोजेक्ट से हो रही तुलना
दुनिया के कमर्शियल ड्रोन मार्केट पर दबदबा रखने वाली कंपनी DJI के पीछे भी यही सोच थी। हांगकांग में पढ़ाई करने वाले वांग ताओ (Frank Wang) जब चीन लौटे तो उन्होंने शेन्जेन (Shenzhen) शहर में DJI की स्थापना की। DJI के प्रोडक्ट्स चीन की फैक्ट्री से निकल कर दुनियाभर में गए। आज पूरी दुनिया ड्रोन्स में DJI का लोहा मानती है। आज के दिन में करीब 70% कमर्शियल ड्रोन मार्केट पर इसी कंपनी का कब्जा है।
एक और कंपनी का उदाहरण लें, तो अमेरिका के साथ चल रहे चिप वॉर में चीन की सबसे बड़ी उम्मीद SMIC है। इस कंपनी को खड़ा करने और उसे ऊंचाइयों पर ले जाने वाले अधिकतर इंजीनियर वही हैं, जिन्होंने कभी अमेरिका की इंटेल (Intel) या टीएसएमसी (TSMC) जैसी कंपनियों में ऊंचे पदों पर काम किया था।
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सी-टर्टल रणनीति से चीन ने टेक्नोलॉजी में बनाई बढ़त
चीन ने इन विशेषज्ञों को वापस बुलाने के लिए सिर्फ देशभक्ति का सहारा नहीं लिया, बल्कि उन्हें आकर्षित करने के लिए कई खास योजनाएं भी बनाईं। एक ऐसी ही योजना चीन में काफी मशहूर है जिसे थाउजेंड टैलेंट्स प्लान (Thousand Talents Plan) कहा जाता है। इस योजना के जरिए विदेशों से लौटने वाले इंजीनियर्स को करोड़ों रुपये के ग्रांट्स, अत्याधुनिक लैब, रहने के लिए आलीशान घर और उनके बच्चों के लिए बेहतरीन स्कूलों की सुविधा दी गई। चीन का संदेश साफ था कि इंजीनियर्स विदेश में जो कुछ भी सीखकर आए हैं, उसका इस्तेमाल अपने देश को महाशक्ति बनाने में करें, चीन उनके लिए संसाधनों की कमी नहीं होने देगा।
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सफलता के कुछ बड़े उदाहरण
चीन की इस रणनीति ने कई ऐसी कंपनियों को जन्म दिया जो आज दुनिया पर राज कर रही हैं। इसका उदाहरण चीन की कई बड़ी टेक कंपनियों से मिलता है। चीन के मशहूर सर्च इंजन बाइडू (Baidu) के संस्थापक रॉबिन ली ने अमेरिका में पढ़ाई की और वहां की शुरुआती सर्च इंजन तकनीक पर काम किया। जब वे वापस लौटे, तो उन्होंने चीन का अपना 'गूगल' खड़ा कर दिया। आज बाइडू दुनिया की सबसे बड़ी AI कंपनियों में से एक है।
यह भी पढ़ें: Chip War: पश्चिम के वर्चस्व को सीधी चुनौती देगा चीन का 'सुपर मशीन', मैनहैटन प्रोजेक्ट से हो रही तुलना
दुनिया के कमर्शियल ड्रोन मार्केट पर दबदबा रखने वाली कंपनी DJI के पीछे भी यही सोच थी। हांगकांग में पढ़ाई करने वाले वांग ताओ (Frank Wang) जब चीन लौटे तो उन्होंने शेन्जेन (Shenzhen) शहर में DJI की स्थापना की। DJI के प्रोडक्ट्स चीन की फैक्ट्री से निकल कर दुनियाभर में गए। आज पूरी दुनिया ड्रोन्स में DJI का लोहा मानती है। आज के दिन में करीब 70% कमर्शियल ड्रोन मार्केट पर इसी कंपनी का कब्जा है।
एक और कंपनी का उदाहरण लें, तो अमेरिका के साथ चल रहे चिप वॉर में चीन की सबसे बड़ी उम्मीद SMIC है। इस कंपनी को खड़ा करने और उसे ऊंचाइयों पर ले जाने वाले अधिकतर इंजीनियर वही हैं, जिन्होंने कभी अमेरिका की इंटेल (Intel) या टीएसएमसी (TSMC) जैसी कंपनियों में ऊंचे पदों पर काम किया था।
AI चिप (सांकेतिक तस्वीर)
- फोटो : AI
चीन ने बनाई चिप बनाने वाली 'सुपर मशीन'
चीन की यही रणनीति उसे एडवांस एआई चिप के निर्माण में भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा पर आगे बढ़ा रही है। हाल ही में चीन ने EUV (एक्सट्रीम अल्ट्रावॉयलेट लिथोग्राफी) मशीन का प्रोटोटाइप तैयार किया है। यह मशीन इंसानी बाल से भी हजारों गुना पतली सर्किट लाइनों को सिलिकॉन की प्लेट पर प्रिंट कर सकती है। जितनी बारीक सर्किट होगी, चिप उतनी ही पावरफुल होगी। वर्तमान में इस तकनीक पर केवल डच कंपनी ASML का कब्जा है। चीन की यह मशीन फिलहाल अल्ट्रावॉयलेट लाइट पैदा करने में सफल रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बहुत जल्द इस मशीन से वर्किंग चिप बनाना शुरू किया जाएगा।
क्यों सफल हो रही है यह रणनीति?
चीन की सफलता का सबसे बड़ा कारण है उसका इकोसिस्टम। वापस लौटने वाले विशेषज्ञों को सिर्फ पैसा नहीं मिलता, बल्कि उन्हें चीन का विशाल डेटा (Data) और सरकार का पूरा समर्थन मिलता है। उदाहरण के तौर पर, AI के क्षेत्र में डेटा ईंधन का काम करता है, और चीन की विशाल आबादी इस मामले में विशेषज्ञों को वह अनुभव देती है जो उन्हें विदेश में नहीं मिल पाता। साथ ही, चीन का एडवांस इंफ्रास्ट्रक्चर और तकनीकी सुविधाएं विशेषज्ञों को अपनी रिसर्च को हकीकत में बदलने का मौका देती है।
यह भी पढ़ें: एआई की रेस में झोंका जा रहा अंधाधुंध पैसा, एक-दूसरे का टैलेंट हड़प रही कंपनियां, सीईओ का बड़ा खुलासा
दुनिया के लिए एक सीख
आज चीन सिर्फ दूसरे देशों की नकल नहीं कर रहा, बल्कि तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से हर क्षेत्र में नई खोज कर रहा है। क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G से लेकर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के मामले में चीन आज जो बढ़त बनाए हुए है, उसके पीछे उन हजारों वैज्ञानिकों का दिमाग है जिन्होंने दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों से ज्ञान बटोरकर उसे अपनी मिट्टी में सींचा है। अज भारत में जन्मे कई इंजीनियर्स नासा, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं। भारत से विदेश जाने वाले कई स्टूडेंट्स पढ़ाई पूरी करने के बाद रोजगार के लिए वहीं रुक जाते हैं या उस देश की नागरिकता ले लेते हैं। अगर भारत को भी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चीन जैसी ही तरक्की करनी है तो सी-टर्टल जैसी रणनीति अपनानी होगी। इतना ही नहीं, सरकार को देश में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए नए सिरे से योजनाएं भी लागू करनी होंगी।
चीन की यही रणनीति उसे एडवांस एआई चिप के निर्माण में भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा पर आगे बढ़ा रही है। हाल ही में चीन ने EUV (एक्सट्रीम अल्ट्रावॉयलेट लिथोग्राफी) मशीन का प्रोटोटाइप तैयार किया है। यह मशीन इंसानी बाल से भी हजारों गुना पतली सर्किट लाइनों को सिलिकॉन की प्लेट पर प्रिंट कर सकती है। जितनी बारीक सर्किट होगी, चिप उतनी ही पावरफुल होगी। वर्तमान में इस तकनीक पर केवल डच कंपनी ASML का कब्जा है। चीन की यह मशीन फिलहाल अल्ट्रावॉयलेट लाइट पैदा करने में सफल रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बहुत जल्द इस मशीन से वर्किंग चिप बनाना शुरू किया जाएगा।
क्यों सफल हो रही है यह रणनीति?
चीन की सफलता का सबसे बड़ा कारण है उसका इकोसिस्टम। वापस लौटने वाले विशेषज्ञों को सिर्फ पैसा नहीं मिलता, बल्कि उन्हें चीन का विशाल डेटा (Data) और सरकार का पूरा समर्थन मिलता है। उदाहरण के तौर पर, AI के क्षेत्र में डेटा ईंधन का काम करता है, और चीन की विशाल आबादी इस मामले में विशेषज्ञों को वह अनुभव देती है जो उन्हें विदेश में नहीं मिल पाता। साथ ही, चीन का एडवांस इंफ्रास्ट्रक्चर और तकनीकी सुविधाएं विशेषज्ञों को अपनी रिसर्च को हकीकत में बदलने का मौका देती है।
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दुनिया के लिए एक सीख
आज चीन सिर्फ दूसरे देशों की नकल नहीं कर रहा, बल्कि तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से हर क्षेत्र में नई खोज कर रहा है। क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G से लेकर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के मामले में चीन आज जो बढ़त बनाए हुए है, उसके पीछे उन हजारों वैज्ञानिकों का दिमाग है जिन्होंने दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों से ज्ञान बटोरकर उसे अपनी मिट्टी में सींचा है। अज भारत में जन्मे कई इंजीनियर्स नासा, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं। भारत से विदेश जाने वाले कई स्टूडेंट्स पढ़ाई पूरी करने के बाद रोजगार के लिए वहीं रुक जाते हैं या उस देश की नागरिकता ले लेते हैं। अगर भारत को भी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चीन जैसी ही तरक्की करनी है तो सी-टर्टल जैसी रणनीति अपनानी होगी। इतना ही नहीं, सरकार को देश में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए नए सिरे से योजनाएं भी लागू करनी होंगी।