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Tech: 10 मिनट में सामान कैसे पहुंचाते हैं Zepto, Blinkit और Instamart? डेटा और टेक्नोलॉजी का कमाल समझिए

टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नीतीश कुमार Updated Sun, 28 Dec 2025 02:17 PM IST
सार

How Quick Commerce Works: कल्पना कीजिए, आपने चाय के लिए पानी रखा और पता चला चीनी खत्म है। ऑर्डर करते ही 10 मिनट में चीनी हाजिर! यह रफ़्तार किसी करिश्मे से कम नहीं लगती, लेकिन इसके पीछे सिर्फ डिलीवरी की तेज रफ्तार नहीं, बल्कि कंपनियों की एक बेहद स्मार्ट और हाई-टेक प्लानिंग भी शामिल है।

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क्विक कॉमर्स डिलीवरी (सांकेतिक) - फोटो : AI
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विस्तार
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आज के दौर में क्विक कॉमर्स कंपनियों ने हमारी जीवनशैली को इंस्टेंट बना दिया है। पहले जहां हम राशन के लिए बाजार जाते थे और लाइन में लगकर सामान खरीदते थे, वहीं अब मोबाइल पर एक टैप करते ही सामान मिनटों में घर पहुंच जाता है। दरअसल, क्विक कॉमर्स कंपनियों की इतनी तेज डिलीवरी का राज केवल पार्टनर का तेज गाड़ी चलाना ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बेहद जटिल तकनीकी ढांचा काम करता है।
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जैसे ही आप एप पर सामान सर्च करते हैं, कंपनी का सर्वर सक्रिय हो जाता है और आपके घर के सबसे नजदीकी छोटे गोदाम में उस सामान की उपलब्धता जांचना शुरू कर देता है। यह पूरी प्रक्रिया इतनी सटीक होती है कि आपके पेमेंट बटन दबाने से पहले ही सिस्टम यह तय कर चुका होता है कि कौन सा कर्मचारी आपका सामान पैक करेगा और कौन सा राइडर उसे आप तक पहुंचाएगा। यह तकनीक और स्थानीय मौजूदगी का एक ऐसा तालमेल है, जो यह सुनिश्चित करता है कि सामान आपके पहुंचने से पहले ही तैयार रहे।
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डार्क स्टोर्स: आपके मोहल्ले में छिपा 'मिनी वेयरहाउस'
इन कंपनियों की सबसे बड़ी ताकत उनके डार्क स्टोर्स हैं। ये कोई साधारण किराने की दुकान नहीं होतीं जहां आप अंदर जाकर खरीदारी कर सकें, बल्कि ये छोटे-छोटे गोदाम होते हैं जो रणनीतिक रूप से घनी आबादी वाले इलाकों के बीचों-बीच स्थित होते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि आप किसी बड़े शहर के सेक्टर या मोहल्ले में रहते हैं, तो संभव है कि आपके घर से मात्र 1 या 2 किलोमीटर की दूरी पर ही ऐसा ही एक स्टोर किसी बेसमेंट या तंग गली में चल रहा हो। इन स्टोर्स का स्थान डेटा विश्लेषण के आधार पर तय किया जाता है ताकि डिलीवरी की दूरी न्यूनतम रहे। चूंकि दूरी कम होती है, इसलिए डिलीवरी राइडर को ट्रैफिक में फंसने या सिग्नल तोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती, वह सामान्य गति से चलकर भी 5 मिनट में आपके दरवाजे पर पहुंच सकता है। यहां वही जरूरी चीजें स्टॉक की जाती हैं, जिनकी मांग सबसे ज्यादा होती है, जैसे दूध, ब्रेड, अंडे, स्नैक्स और इंस्टेंट फूड।

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डार्क स्टोर (सांकेतिक) - फोटो : AI
डेटा तय करता है कितनी फास्ट होगी डिलीवरी
डार्क स्टोर में कौन-सा सामान रहेगा, यह कोई मैनेजर अपने अनुमान से तय नहीं करता। इसके पीछे काम करता है डेटा और एडवांस एल्गोरिदम। कंपनियां यह लगातार एनालिसिस करती हैं कि किस इलाके में किस समय किस चीज की ज्यादा डिमांड रहती है। अगर किसी कॉलोनी में रात के समय आइसक्रीम ज्यादा ऑर्डर होती है, तो सिस्टम पहले ही उस स्टोर को उसी हिसाब से स्टॉक कर देता है। यानी जब आप एप खोलते हैं, तो आपका सामान पहले से ही 1-2 किलोमीटर के दायरे में मौजूद होता है।

जैसे ही आप ऑर्डर कन्फर्म करते हैं, वह तुरंत नजदीकी डार्क स्टोर तक पहुंच जाता है। स्टोर के अंदर सामान को काफी सोच-समझकर रखा जाता है। जो प्रोडक्ट अक्सर साथ खरीदे जाते हैं, उन्हें पास-पास रखा जाता है, ताकि कर्मचारियों को सामान ढूंढने में समय न लगे, इसके लिए एप उन्हें सबसे छोटा और तेज रास्ता बताता है। लक्ष्य यही होता है कि 60 से 90 सेकंड के भीतर पूरा ऑर्डर पैक हो जाए।

टेक्नोलॉजी की मदद से होता है टाइम मैनेजमेंट
उधर, स्टोर के बाहर डिलीवरी राइडर पहले से तैयार रहते हैं। जीपीएस और सॉफ्टवेयर यह तय करता है कि कौन-सा राइडर सबसे पास है और किस रास्ते से कम ट्रैफिक मिलेगा। सिस्टम को शहर के हर मोड़, गली और भीड़भाड़ की रियल-टाइम जानकारी होती है, जिससे डिलीवरी में एक भी मिनट बर्बाद न हो।

हालांकि इस पूरी कहानी में सिर्फ टेक्नोलॉजी और लॉजिस्टिक्स ही नहीं, बल्कि हमारा व्यवहार भी बड़ा रोल निभाता है। 10 मिनट की सुविधा ने हमें पहले से योजना बनाना लगभग भुला दिया है। अब लोग महीनेभर का राशन एक बार नहीं खरीदते, क्योंकि भरोसा है कि जरूरत पड़ते ही चीनी, चाय पत्ती या दूध कुछ ही मिनटों में आ जाएगा। इस वजह से हमें फ्रीक्वेंट बाइंग की आदत लग चुकी है और इसमें क्विक कॉमर्स कंपनियों का जमकर फायदा हो रहा है।
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