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केंद्र के पास नहीं पश्चिमी यूपी में बेंच का प्रस्ताव
अमर उजाला ब्यूरो, इलाहाबाद
Updated Mon, 14 Mar 2016 01:58 AM IST
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हाईकोर्ट
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, इलाहाबाद
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केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा है कि केंद्र सरकार के पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट की बेंच बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। इस दिशा में राज्य सरकार और यहां का हाईकोर्ट ही कुछ कर सकता है। राज्य सरकार से प्रस्ताव मिले बिना केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा सकती है। मुकदमों में कमी लाने के लिए वैकल्पिक न्याय प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण है। मीडिएशन सेंटर, कैंसिलिएशन सेंटर और आर्बीटेशन सेंटरों की स्थापना बहुत अच्छे उपाय हैं। अमेेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी मीडिएशन काफी लोकप्रिय है। इस दिशा में राज्यों को और अधिक प्रयास करने चाहिए। लोक अदालतों का गठन जरूरी है। इस बारे में केंद्र सरकार राज्यों को हर मदद के लिए तैयार है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थापना के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह में शामिल होने आए कानून मंत्री ने खास मुलाकात में जजों की नियुक्ति, मुकदमों के त्वरित निस्तारण सहित न्यायपालिका से जुड़े तमाम सवालों के जवाब दिए। कहा, जजों की नियुक्ति का मामला अब न्यायपालिका के हाथ में है। हमने नियुक्ति में पारदर्शिता लाने के लिए एजेएसी बिल पारित किया जिसे सुप्रीमकोर्ट ने नहीं माना। न्यायपालिका को विधायी निर्णयों की समीक्षा का अधिकार है। हम सुप्रीमकोर्ट के निर्णय को स्वीकार करते हैं। सर्वोच्च अदालत ने सरकार को जजों की नियुक्ति पर ड्राफ्ट ऑफ मेमोरेंडम देने के लिए कहा है।
इसकी प्रक्रिया जारी है। हमने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेज कर उनका सुझाव मांगा है। कानूनविदों से भी सुझाव मांगे जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में अभी समय लगेगा इसीलिए हमने सुप्रीमकोर्ट से अनुरोध किया था कि इस दौरान रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया कोलेजियम सिस्टम से पूरी की जाए।
कानून मंत्री ने कहा, न्यायप्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हमने 1052 पुराने कानूनों को समाप्त कर दिया है। इसका बिल राज्य सभा से पारित हो चुका है। 1047 के करीब और पुराने कानूनों को समाप्त किया जाना है। इस दिशा में सरकार तेजी से काम कर रही है। अदालतों में मुकदमों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। नए-नए कानूनों के आने से इनसे संबंधित विवाद भी बढ़ रहे हैं। तकनीक और मूलभूत ढांचे में विकास करके इसे कम किया जा सकता है। कानून प्रक्रिया को सरल बनाने के दिशा में भी केंद्र सरकार प्रयासरत है। हमने चेक बाउंस से संबंधित कानून में संशोधन करके बंच में मुकदमे निपटाने की व्यवस्था की है। वाणिज्यिक अदालतों के गठन संबंधी कानून भी पारित हो चुका है। शीघ्र ही वाणिज्यिक अदालतों के गठन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इसी प्रकार से आर्बीटेशन एक्ट (मध्यस्थता कानून) में भी संशोधन कर इससे संबंधित मामलों को एक वर्ष में निस्तारित करने की व्यवस्था की है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थापना के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह में शामिल होने आए कानून मंत्री ने खास मुलाकात में जजों की नियुक्ति, मुकदमों के त्वरित निस्तारण सहित न्यायपालिका से जुड़े तमाम सवालों के जवाब दिए। कहा, जजों की नियुक्ति का मामला अब न्यायपालिका के हाथ में है। हमने नियुक्ति में पारदर्शिता लाने के लिए एजेएसी बिल पारित किया जिसे सुप्रीमकोर्ट ने नहीं माना। न्यायपालिका को विधायी निर्णयों की समीक्षा का अधिकार है। हम सुप्रीमकोर्ट के निर्णय को स्वीकार करते हैं। सर्वोच्च अदालत ने सरकार को जजों की नियुक्ति पर ड्राफ्ट ऑफ मेमोरेंडम देने के लिए कहा है।
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इसकी प्रक्रिया जारी है। हमने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेज कर उनका सुझाव मांगा है। कानूनविदों से भी सुझाव मांगे जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में अभी समय लगेगा इसीलिए हमने सुप्रीमकोर्ट से अनुरोध किया था कि इस दौरान रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया कोलेजियम सिस्टम से पूरी की जाए।
कानून मंत्री ने कहा, न्यायप्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हमने 1052 पुराने कानूनों को समाप्त कर दिया है। इसका बिल राज्य सभा से पारित हो चुका है। 1047 के करीब और पुराने कानूनों को समाप्त किया जाना है। इस दिशा में सरकार तेजी से काम कर रही है। अदालतों में मुकदमों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। नए-नए कानूनों के आने से इनसे संबंधित विवाद भी बढ़ रहे हैं। तकनीक और मूलभूत ढांचे में विकास करके इसे कम किया जा सकता है। कानून प्रक्रिया को सरल बनाने के दिशा में भी केंद्र सरकार प्रयासरत है। हमने चेक बाउंस से संबंधित कानून में संशोधन करके बंच में मुकदमे निपटाने की व्यवस्था की है। वाणिज्यिक अदालतों के गठन संबंधी कानून भी पारित हो चुका है। शीघ्र ही वाणिज्यिक अदालतों के गठन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इसी प्रकार से आर्बीटेशन एक्ट (मध्यस्थता कानून) में भी संशोधन कर इससे संबंधित मामलों को एक वर्ष में निस्तारित करने की व्यवस्था की है।