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राम मंदिर निर्माण से अयोध्या वासियों को हुई प्राण की प्राप्ति : राम दिनेशाचार्य
संवाद न्यूज एजेंसी, अयोध्या
Updated Tue, 30 Dec 2025 09:50 PM IST
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14- श्रीराम कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ का पूजन करते ट्रस्टी व अन्य- ट्रस्ट
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अयोध्या। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा द्वादशी उत्सव का उल्लास छलक रहा है। राम मंदिर आने वाले श्रद्धालु न सिर्फ दर्शन कर रहे हैं, बल्कि रामकथा सुनकर उनका हृदय तृप्त हो जा रहा है। अंगद टीला परिसर में संचालित रामकथा के दूसरे दिन जगद्गुरु राम दिनेशाचार्य ने कहा कि राम मंदिर निर्माण से सदियों के अंतराल के बाद अयोध्या वासियों को प्राण की प्राप्ति हुई, अयोध्या जीवंत हो उठी। आज पूरा विश्व राम के बारे में जानने के लिए उत्सुक है।
बालक राम पर केंद्रित रामकथा को विस्तार देते हुए जगद्गुरु ने कहा कि रामकथा को वसुंधरा पर लाने का श्रेय महादेव को जाता है। कागभुसुंडि जैसे ज्ञानी ने बालक राम का जब दर्शन किया तो वह पांच वर्ष तक अयोध्या में ही विराजमान रहे। जिसका हृदय बालक की तरह नहीं होगा, उसके मन में राम की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है। भगवान हमेशा मन मांगते हैं, क्योंकि इसी मन में दंभ, द्वेष, दुराशा होती है। भगवान निर्मल मन की कामना रखते हैं, निर्मल मन बच्चे का होता है।
एक उदाहरण के माध्यम से भारद्वाज मुनि की चर्चा करते हुए कहा कि ब्रह्म में क्रोध नहीं होता, विरह नहीं होता, दशरथ नंदन राम यदि ब्रह्म हैं तो कैसे, उनमें ब्रह्म के लक्षण क्यों नहीं। श्रीराम कथा जीव के इस तरह के भ्रम को मिटाने वाली है। जीवन के हर अज्ञान व अंधकार को नाश करने में केवल रामकथा ही समर्थवान है। उन्होंने कहा कि भक्तों के हृदय में भगवान की कथा सुनने की इच्छा होनी चाहिए। इसके लिए अपने इष्ट के प्रति प्रेम होना चाहिए। कथा प्रवाचक महत्वपूर्ण नहीं होता, कथा का श्रोता महत्वपूर्ण होता है, जो भगवान राम की कथा सुनता है।
भक्ति में प्रतिष्ठा की चिंता नहीं होती और जहां प्रतिष्ठा की चिंता हो, वहां भक्ति नहीं होती। कलयुग में इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मीरा हैं, जिसको पूजा और भक्ति का अभिमान हुआ माया ने उसकी भक्ति चूर कर दी। उन्होंने माया तेरी बहुत कठिन है राह भजन गाया तो श्रोता भावविभोर हो उठे। श्रीराम कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ का पूजन ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्र, धनंजय पाठक, डॉ. चंद्रगोपाल पांडेय, नरेश गर्ग व अरुण गोयल ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
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एक उदाहरण के माध्यम से भारद्वाज मुनि की चर्चा करते हुए कहा कि ब्रह्म में क्रोध नहीं होता, विरह नहीं होता, दशरथ नंदन राम यदि ब्रह्म हैं तो कैसे, उनमें ब्रह्म के लक्षण क्यों नहीं। श्रीराम कथा जीव के इस तरह के भ्रम को मिटाने वाली है। जीवन के हर अज्ञान व अंधकार को नाश करने में केवल रामकथा ही समर्थवान है। उन्होंने कहा कि भक्तों के हृदय में भगवान की कथा सुनने की इच्छा होनी चाहिए। इसके लिए अपने इष्ट के प्रति प्रेम होना चाहिए। कथा प्रवाचक महत्वपूर्ण नहीं होता, कथा का श्रोता महत्वपूर्ण होता है, जो भगवान राम की कथा सुनता है।
भक्ति में प्रतिष्ठा की चिंता नहीं होती और जहां प्रतिष्ठा की चिंता हो, वहां भक्ति नहीं होती। कलयुग में इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मीरा हैं, जिसको पूजा और भक्ति का अभिमान हुआ माया ने उसकी भक्ति चूर कर दी। उन्होंने माया तेरी बहुत कठिन है राह भजन गाया तो श्रोता भावविभोर हो उठे। श्रीराम कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ का पूजन ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्र, धनंजय पाठक, डॉ. चंद्रगोपाल पांडेय, नरेश गर्ग व अरुण गोयल ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
