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Kushinagar News: हर गांव में सेनानी...नहीं है कोई निशानी
संवाद न्यूज एजेंसी, कुशीनगर
Updated Sat, 12 Aug 2023 11:53 PM IST
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यादीन तिवारी की फाइल फ़ोटो।संवाद
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फोटो है।
फाजिलनगर क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कई गांव, उनके परिवारों को सम्मान की हसरत है अधूरी
संवाद न्यूज एजेंसी
पडरौना। फाजिलनगर क्षेत्र के चंद्रौटा, किशुनदेवपट्टी, श्रीरामपट्टी आदि गांव आजादी के इतिहास को समेटे हुए हैं। इसमें किशुनदेवपट्टी के राजवंशी राय, महामुनि राय, दीपराज सिंह व हरिनंदन सिंह, चंद्रौटा के विद्यादीन तिवारी व श्रीराम पट्टी के राजाराम लाल श्रीवास्तव आदि सेनानियों ने अलग-अलग जगहों पर आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया।
इन लोगों ने आजादी की खातिर जेल की यातनाएं सहीं, लेकिन इन स्वतंत्रता सेनानियों के परिजन गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आजादी के इन दीवानों के मन में बस एक ही जज्बा था कि देश किसी तरह से अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो जाए। इसके लिए घर परिवार को भी छोड़ दिया। जेल जाने से भी वे पीछे नहीं हटे।
रणबांकुरों से भरे फाजिलनगर की इस धरा के लोगों में सम्मान की हसरत आज भी अधूरी है। इनके गांव में सरकार ने न कोई स्मृति द्वार बनाया और न ही उनकी प्रतिमा स्थापित की। इसकी वजह से आज की युवा पीढ़ी स्वतंत्रता आंदोलन कारियों की वीर गाथा से अनभिज्ञ हैं।
केस-1
किशुनदेव पट्टी के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय राजवंशी राय का देश की आजादी में गौरवशाली इतिहास रहा। इनको ताम्रपत्र भी मिला था। उनकी गाथा परिवारीजन और कुछ क्षेत्र के लोगों की जुबान पर तो है पर सरकारी दस्तावेज में नहीं। राजवंशी राय ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। राजवंशी राय का जन्म सन 1911 में में हुआ था। कम वर्षों में ही शिक्षार्थी के रूप में राजवंशी ने शिक्षकों का दिल जीत लिया। शुरू से ही उनके अंदर स्वतंत्रता का जुनून कूट-कूट कर भरा था। वह पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। शुरुआत में उनके परिवार को काफी यातनाएं दी गईं। इसके बाद उन्हें गोरखपुर में कुछ महीने तक जेल में सजा काटनी पड़ी। उनके स्मरणीय योगदान के लिए सरकार की तरफ से दी जाने वाली कृषि भूमि को भी उन्होंने ठुकरा दिया था। देश की आजादी के बाद वह ग्राम सचिव बने और समाजसेवा की भूमिका में अपनी जिम्मेदारियों को निभाए। 1971 में राजवंशी राय का निधन बीमारी के कारण हो गया।
केस-2
किशुनदेवपट्टी गांव के 1918 को ही एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे महामुनि राय भी कम नहीं थे। उन्होंने प्रदेश की विभिन्न जगहों पर आंदोलनों में शिरकत की। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा भी रहे। बागपत में गांधी आश्रम में रहकर स्वदेशी अपनाओ, विदेशी भगाओ का नारा बुलंद किया। अंग्रेजों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया, लेकिन महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की ठान ली। तीन सितंबर 2006 को उनका निधन हो गया। महामुनि के साथ उनके बेटे भी देश सेवा में लगे हैं। चार बेटों में दो बेटे दिलीप राय व सतीश राय उपनिरीक्षक व हेड कांस्टेबल हैं। उनके अलावा योगेंद्र राय व रवि राय किसान हैं। महामुनि राय की पत्नी किशोरा ने बताया कि स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस पर पूर्व में कई बार डीएम से मिलकर पति का स्मृति स्थल, स्मृति द्वार और दरवाजे पर हैंडपंप के लिए मांग की, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हरिनंदन सिंह और इनके भाई दीपराज सिंह के नाम भी उपेक्षा से अस्तित्वविहीन होते जा रहे हैं।
केस-3
1928 को चंद्रौटा गांव में जन्मे विद्यादीन तिवारी किशोरावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। शुरू से ही महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। 14 वर्ष की उम्र में रामधारी शास्त्री के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पडरौना में एक सर्कस चल रहा था। वहां अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा छपा था। रामधारी शास्त्री ने पर्चा बांटने की जिम्मेदारी विद्यादीन को देकर पुलिस से आगाह रहने के निर्देश दिए। विद्यादीन अपने सहयोगियों के साथ रामकोला के पास मोरवन गांव में छिप गए। अंग्रेज़ों को इसकी सूचना मिली तो वहां छापा मारकर विद्यादीन और उनके सहयोगियों को पकड़ लिया। अंग्रेजाें ने उन्हें माफी मांगने की बात कही, लेकिन स्वाभिमान से युक्त और मन में भारत को आजाद कराने में योगदान का संकल्प लेने वाले विद्यादीन राजी नहीं हुए। इससे नाराज अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेज दिया। गोरखपुर में चार माह जेल की सजा काटने के बाद फिर से स्वतंत्रता की लड़ाई में जुट गए। हाईस्कूल के बाद सेना में भर्ती हुए। वहां से अदन चले गए। लौटने के बाद रेलवे में टीटी बन गए। छुट्टी पर घर लौटे तो परिवार वालों को पता था कि वह सेना में हैं, इस कारण उन्हें मां ने जाने नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने शिक्षक की नौकरी की। विद्यादीन पुलिस विभाग में उपनिरीक्षक पद पर भी रहे। सरकार उन्हें सेनानी, पुलिस और सेना से पेंशन देती थी। पेंशन के पैसे से रोडवेज से फ्री सेवा भी दी। सात अगस्त 2007 को उनका निधन हो गया।
केस-4
एक जून 1919 को फाजिलनगर विधानसभा क्षेत्र के श्रीराम पट्टी में जन्मे राजाराम लाल श्रीवास्तव भी महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। उनकी सक्रियता के चलते अंग्रेजों की पुलिस ने 18 अप्रैल 1941 को उन्हें गोरखपुर में गिरफ्तार कर लिया। सिटी मजिस्ट्रेट ने उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास व पचास रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना न दिए जाने के कारण उन्हें छह माह का अतिरिक्त कारावास भी भोगना पड़ा। जेल जाने के कारण उनकी शिक्षा कक्षा आठ तक ही सम्भव हो पाई। बाद में गन्ना विभाग में नौकरी करते हुए वह 1977 में सेवानिवृत्त हुए। स्वतंत्रता संग्राम के इस सेनानी ने भारत की स्वतंत्रता के आंखों में संजोए सपने की हकीकत देख कर 24 दिसंबर 2018 को सदैव के लिए आंखें मूंद लीं। उनके जाने के साथ ही सरकार उनको भूल गई।

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फाजिलनगर क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कई गांव, उनके परिवारों को सम्मान की हसरत है अधूरी
संवाद न्यूज एजेंसी
पडरौना। फाजिलनगर क्षेत्र के चंद्रौटा, किशुनदेवपट्टी, श्रीरामपट्टी आदि गांव आजादी के इतिहास को समेटे हुए हैं। इसमें किशुनदेवपट्टी के राजवंशी राय, महामुनि राय, दीपराज सिंह व हरिनंदन सिंह, चंद्रौटा के विद्यादीन तिवारी व श्रीराम पट्टी के राजाराम लाल श्रीवास्तव आदि सेनानियों ने अलग-अलग जगहों पर आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया।
इन लोगों ने आजादी की खातिर जेल की यातनाएं सहीं, लेकिन इन स्वतंत्रता सेनानियों के परिजन गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आजादी के इन दीवानों के मन में बस एक ही जज्बा था कि देश किसी तरह से अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो जाए। इसके लिए घर परिवार को भी छोड़ दिया। जेल जाने से भी वे पीछे नहीं हटे।
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रणबांकुरों से भरे फाजिलनगर की इस धरा के लोगों में सम्मान की हसरत आज भी अधूरी है। इनके गांव में सरकार ने न कोई स्मृति द्वार बनाया और न ही उनकी प्रतिमा स्थापित की। इसकी वजह से आज की युवा पीढ़ी स्वतंत्रता आंदोलन कारियों की वीर गाथा से अनभिज्ञ हैं।
केस-1
किशुनदेव पट्टी के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय राजवंशी राय का देश की आजादी में गौरवशाली इतिहास रहा। इनको ताम्रपत्र भी मिला था। उनकी गाथा परिवारीजन और कुछ क्षेत्र के लोगों की जुबान पर तो है पर सरकारी दस्तावेज में नहीं। राजवंशी राय ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। राजवंशी राय का जन्म सन 1911 में में हुआ था। कम वर्षों में ही शिक्षार्थी के रूप में राजवंशी ने शिक्षकों का दिल जीत लिया। शुरू से ही उनके अंदर स्वतंत्रता का जुनून कूट-कूट कर भरा था। वह पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। शुरुआत में उनके परिवार को काफी यातनाएं दी गईं। इसके बाद उन्हें गोरखपुर में कुछ महीने तक जेल में सजा काटनी पड़ी। उनके स्मरणीय योगदान के लिए सरकार की तरफ से दी जाने वाली कृषि भूमि को भी उन्होंने ठुकरा दिया था। देश की आजादी के बाद वह ग्राम सचिव बने और समाजसेवा की भूमिका में अपनी जिम्मेदारियों को निभाए। 1971 में राजवंशी राय का निधन बीमारी के कारण हो गया।
केस-2
किशुनदेवपट्टी गांव के 1918 को ही एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे महामुनि राय भी कम नहीं थे। उन्होंने प्रदेश की विभिन्न जगहों पर आंदोलनों में शिरकत की। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा भी रहे। बागपत में गांधी आश्रम में रहकर स्वदेशी अपनाओ, विदेशी भगाओ का नारा बुलंद किया। अंग्रेजों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया, लेकिन महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की ठान ली। तीन सितंबर 2006 को उनका निधन हो गया। महामुनि के साथ उनके बेटे भी देश सेवा में लगे हैं। चार बेटों में दो बेटे दिलीप राय व सतीश राय उपनिरीक्षक व हेड कांस्टेबल हैं। उनके अलावा योगेंद्र राय व रवि राय किसान हैं। महामुनि राय की पत्नी किशोरा ने बताया कि स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस पर पूर्व में कई बार डीएम से मिलकर पति का स्मृति स्थल, स्मृति द्वार और दरवाजे पर हैंडपंप के लिए मांग की, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हरिनंदन सिंह और इनके भाई दीपराज सिंह के नाम भी उपेक्षा से अस्तित्वविहीन होते जा रहे हैं।
केस-3
1928 को चंद्रौटा गांव में जन्मे विद्यादीन तिवारी किशोरावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। शुरू से ही महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। 14 वर्ष की उम्र में रामधारी शास्त्री के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पडरौना में एक सर्कस चल रहा था। वहां अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा छपा था। रामधारी शास्त्री ने पर्चा बांटने की जिम्मेदारी विद्यादीन को देकर पुलिस से आगाह रहने के निर्देश दिए। विद्यादीन अपने सहयोगियों के साथ रामकोला के पास मोरवन गांव में छिप गए। अंग्रेज़ों को इसकी सूचना मिली तो वहां छापा मारकर विद्यादीन और उनके सहयोगियों को पकड़ लिया। अंग्रेजाें ने उन्हें माफी मांगने की बात कही, लेकिन स्वाभिमान से युक्त और मन में भारत को आजाद कराने में योगदान का संकल्प लेने वाले विद्यादीन राजी नहीं हुए। इससे नाराज अंग्रेजों ने उन्हें जेल भेज दिया। गोरखपुर में चार माह जेल की सजा काटने के बाद फिर से स्वतंत्रता की लड़ाई में जुट गए। हाईस्कूल के बाद सेना में भर्ती हुए। वहां से अदन चले गए। लौटने के बाद रेलवे में टीटी बन गए। छुट्टी पर घर लौटे तो परिवार वालों को पता था कि वह सेना में हैं, इस कारण उन्हें मां ने जाने नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने शिक्षक की नौकरी की। विद्यादीन पुलिस विभाग में उपनिरीक्षक पद पर भी रहे। सरकार उन्हें सेनानी, पुलिस और सेना से पेंशन देती थी। पेंशन के पैसे से रोडवेज से फ्री सेवा भी दी। सात अगस्त 2007 को उनका निधन हो गया।
केस-4
एक जून 1919 को फाजिलनगर विधानसभा क्षेत्र के श्रीराम पट्टी में जन्मे राजाराम लाल श्रीवास्तव भी महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। उनकी सक्रियता के चलते अंग्रेजों की पुलिस ने 18 अप्रैल 1941 को उन्हें गोरखपुर में गिरफ्तार कर लिया। सिटी मजिस्ट्रेट ने उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास व पचास रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना न दिए जाने के कारण उन्हें छह माह का अतिरिक्त कारावास भी भोगना पड़ा। जेल जाने के कारण उनकी शिक्षा कक्षा आठ तक ही सम्भव हो पाई। बाद में गन्ना विभाग में नौकरी करते हुए वह 1977 में सेवानिवृत्त हुए। स्वतंत्रता संग्राम के इस सेनानी ने भारत की स्वतंत्रता के आंखों में संजोए सपने की हकीकत देख कर 24 दिसंबर 2018 को सदैव के लिए आंखें मूंद लीं। उनके जाने के साथ ही सरकार उनको भूल गई।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यादीन तिवारी की फाइल फ़ोटो।संवाद