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UP: यूपी के इस जिले में बिजलीघरों की राख के दुष्प्रभावों का होगा अध्ययन, एम्स भोपाल की टीम को मिली जिम्मेदारी

अमर उजाला नेटवर्क, सोनभद्र। Published by: प्रगति चंद Updated Wed, 01 Oct 2025 07:04 PM IST
सार

सोनभद्र में स्थित नौ और सिंगरौली के दो बिजलीघरों से रोजाना 22 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए तीन लाख टन से अधिक कोयला जलाया जाता है। इससे रोजाना सवा तीन लाख टन फ्लाई ऐश निकलती है।

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AIIMS Bhopal team to study ill effects of power plant ash in sonbhadra and singrauli
सोनभद्र में पावर प्लांट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बिजलीघरों से निकलने वाली राख (फ्लाई ऐश) का मानव और पशु जीवन पर पड़ रहे दुष्प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी एम्स भोपाल के ट्रांसलेशनल मेडिसिन विभाग को सौंपी गई है। इस अध्ययन में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने वर्ष 2017 में जैव चिकित्सा अनुसंधान और स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए जारी नैतिक दिशा निर्देशों को शामिल करने का अनुरोध किया है। सिंगरौली प्रदूषण मुक्ति वाहिनी ने एनजीटी से हस्तक्षेप की गुहार भी लगाई गई है।



सोनभद्र में स्थित नौ और सिंगरौली के दो बिजलीघरों से रोजाना 22 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए तीन लाख टन से अधिक कोयला जलाया जाता है। इससे रोजाना सवा तीन लाख टन फ्लाई ऐश निकलती है। पर्यावरण वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका एक बड़ा हिस्सा हवा, पानी और मिट्टी में घुलने के साथ ही मानव-पशुओं के साथ ही वानस्पतिक जीवन पर असर डाल रहा है। 
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बिगड़ते हालात और एनजीटी की ओर से जारी दिशा-निर्देशों को देखते हुए यूपीपीसीबी की ओर से एम्स भोपाल को जिले में ताप विद्युत संयंत्र और राख उत्पादक उद्योगों के संचालन के कारण वायु और जल प्रदूषण के स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव पर अध्ययन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब एम्स भोपाल के ट्रांसलेशनल मेडिसिन विभाग सोनभद्र में फ्लाई ऐश की वजह से पशुओं और इंसानों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभावों का अध्ययन करेगा।

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एनजीटी की हिदायत, अध्ययन पूरा होते ही दें रिपोर्ट

अध्ययन की नई कवायद को लेकर सिंगरौली प्रदूषण मुक्ति वाहिनी की तरफ से एनजीटी में दाखिल की गई याचिका में कहा गया है कि इस अध्ययन में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की तरफ से मानव प्रतिभागियों से जुड़े जैव चिकित्सा अनुसंधान और स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए वर्ष 2017 में नैतिक दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं, उसका खास ख्याल रखा जाए। 

प्रदूषण के दुष्प्रभावों का अध्ययन नैतिक मानकों के अनुसार, पूर्ण पारदर्शिता के साथ, और प्रभावित समुदाय की सक्रिय भागीदारी के साथ किया जाए। अगर भविष्य में राज्य प्राधिकारियों की ओर से प्रभावित क्षेत्र का कोई संयुक्त निरीक्षण करने की योजना बनाई जाती है तो सिंगरौली प्रदूषण मुक्ति वाहिनी के एक प्रतिनिधि को भी उसमें शामिल किया जाए।

मांगों पर नहीं जताई गई कोई आपत्ति
पिछले सप्ताह इस मसले पर एनजीटी के चेयरमैन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की बेंच ने सुनवाई की। शनिवार को सामने आए निर्णय में एनजीटी की प्रधान पीठ की तरफ से कहा गया कि राज्य सरकार की तरफ से इसका कोई विरोध नहीं किया गया है। यह बताया गया है कि एम्स भोपाल प्रभावित क्षेत्र के अध्ययन में शामिल है। इसलिए एम्स भोपाल से जैसे ही रिपोर्ट प्राप्त होते ही राज्य प्राधिकारी उसे न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करें।

क्या बोले अधिकारी
एम्स भोपाल की टीम सोनभद्र में प्रदूषण के दुष्प्रभाव के व्यापक अध्ययन में जुटी हुई है। अक्तूबर तक अध्ययन कार्य पूरा कर लिया जाएगा। - आरके सिंह, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी, यूपीपीसीबी 

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