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Sonebhadra News: फायर हाइड्रेंट और स्प्रिंकलर सिस्टम न होता तो बिगड़ते हालात
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ओबरा (सोनभद्र)। ओबरा बी परियोजना के स्विचयार्ड में लगी आग पर काबू पाने में वहां मौजूद फायर हाइड्रेंट और स्प्रिंकलर सिस्टम काफी मददगार रहा। प्रारंभिक स्तर पर आग बुझाने के यह इंतजाम न होने तो हालात काफी भयावह हो सकते थे। कर्मचारियों की सतर्कता और सीआईएसएफ जवानों की तत्परता से आग पर महज तीन घंटे में काबू कर लिया गया। मुख्यालय से फायर ब्रिगेड या अन्य साधनों के भरोसे प्रबंधन रहता तो बड़ी अनहाेनी तय थी।
स्विचयार्ड के आईसीटी में सुबह आग लगने की घटना सुबह साढ़े 6 से सात बजे के बीच हुई। सूत्रों के मुताबिक ट्रांसफॉर्मर से अचानक खिटखिट की आवाज हुई और एक-एक कर दोनों ट्रांसफॉर्मर जलने लगे। तत्काल फायर स्प्रिंकलर सिस्टम को चालू करते हुए सीआईएसएफ की फायर इकाई को सूचना दी गई। महज 15 मिनट के अंदर ही सीआईएसएफ की टीम मौके पर पहुंच गई थी। पांच टेंडर लगाकर आग बुझाने में टीम जुट गई। आमतौर पर आग बुझाने के दौरान पानी की उपलब्धता चुनौती बनती है। फायर टेंडर में दोबारा पानी लेने के लिए ही कई किमी का लंबा चक्कर लगाना पड़ता है, लेकिन परियोजना में पर्याप्त फायर हाइड्रेंट की मौजूदगी से पानी की कमी नहीं हुई। चोपन, रॉबर्ट्सगंज व डाला के अग्निशमन केंद्र से मदद आठ बजे के बाद पहुंची थी।
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पुराने ट्रांसफॉर्मर की मेंटनेंस में लापरवाही पड़ी भारी
आग लगने की एक वजह पॉवर ट्रांसफॉर्मर के पुराने होने को भी माना जा रहा है। इसके मद्देनजर ही नियमित अंतराल पर ट्रांसफाॅर्मर का अनुरक्षण जरूरी होता है। आग की जद में आए दोनाें ट्रांसफॉर्मर काफी पुराने थे। एक ट्रांसफॉर्मर में 75 किलो लीटर तेल होता है। ऐसेमें छोटी सी चूक भी बड़े हादसे की वजह बन जाती है। माना जा रहा है कि अनुरक्षण में लापरवाही के चलते घटना हुई। हालांकि एक साथ दोनों ट्रांसफॉर्मर में आग लगने से सभी सकते में हैं।
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स्विचयार्ड के आईसीटी में सुबह आग लगने की घटना सुबह साढ़े 6 से सात बजे के बीच हुई। सूत्रों के मुताबिक ट्रांसफॉर्मर से अचानक खिटखिट की आवाज हुई और एक-एक कर दोनों ट्रांसफॉर्मर जलने लगे। तत्काल फायर स्प्रिंकलर सिस्टम को चालू करते हुए सीआईएसएफ की फायर इकाई को सूचना दी गई। महज 15 मिनट के अंदर ही सीआईएसएफ की टीम मौके पर पहुंच गई थी। पांच टेंडर लगाकर आग बुझाने में टीम जुट गई। आमतौर पर आग बुझाने के दौरान पानी की उपलब्धता चुनौती बनती है। फायर टेंडर में दोबारा पानी लेने के लिए ही कई किमी का लंबा चक्कर लगाना पड़ता है, लेकिन परियोजना में पर्याप्त फायर हाइड्रेंट की मौजूदगी से पानी की कमी नहीं हुई। चोपन, रॉबर्ट्सगंज व डाला के अग्निशमन केंद्र से मदद आठ बजे के बाद पहुंची थी।
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पुराने ट्रांसफॉर्मर की मेंटनेंस में लापरवाही पड़ी भारी
आग लगने की एक वजह पॉवर ट्रांसफॉर्मर के पुराने होने को भी माना जा रहा है। इसके मद्देनजर ही नियमित अंतराल पर ट्रांसफाॅर्मर का अनुरक्षण जरूरी होता है। आग की जद में आए दोनाें ट्रांसफॉर्मर काफी पुराने थे। एक ट्रांसफॉर्मर में 75 किलो लीटर तेल होता है। ऐसेमें छोटी सी चूक भी बड़े हादसे की वजह बन जाती है। माना जा रहा है कि अनुरक्षण में लापरवाही के चलते घटना हुई। हालांकि एक साथ दोनों ट्रांसफॉर्मर में आग लगने से सभी सकते में हैं।