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BSP की रैली से तेजस्वी के दलित वोट बैंक पर मंडराया खतरा?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Thu, 09 Oct 2025 10:12 PM IST
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लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर गुरुवार को हुई बहुजन समाज पार्टी (BSP) की महारैली ने उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। मायावती के भाषण में तीखापन भी था और आत्मविश्वास भी उन्होंने सपा, कांग्रेस और भाजपा तीनों पर एक साथ निशाना साधा। लेकिन इस रैली की सबसे बड़ी चर्चा भीड़ और उसके राजनीतिक असर को लेकर है।
मायावती ने मंच से कहा, “यह भीड़ किसी भाड़े की नहीं है। ये लोग अपने खून-पसीने की कमाई खर्च करके आए हैं।” भीड़ की विशालता देखकर खुद मायावती ने दावा किया कि इस रैली ने “अब तक की सभी रैलियों का रिकॉर्ड तोड़ दिया”।
मायावती ने अपने भाषण की शुरुआत कांशीराम जी के सम्मान से की, और कहा कि स्मारक स्थल की मरम्मत अब जाकर हुई है क्योंकि सपा सरकार के समय यह काम ठप पड़ा था।
उन्होंने खुलकर कहा-
“सपा ने टिकट का पैसा दबा के रखा, मरम्मत नहीं कराई। हमने यूपी सरकार को लिखा कि टिकट से जमा रकम का उपयोग रखरखाव में हो। भाजपा सरकार ने वादा किया और अब मरम्मत का काम हुआ।”
उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव को सीधा निशाना बनाते हुए कहा,
“अगर कांशीराम जी का इतना सम्मान था तो उनके नाम पर रखे कासगंज जिले का नाम क्यों बदल दिया? उनके नाम की योजनाएं क्यों बंद कर दीं? यही सपा का दोगलापन है।”
लखनऊ की इस रैली को मायावती ने केवल यूपी तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे “बहुजन एकता का राष्ट्रव्यापी संदेश” बताया। विश्लेषकों का मानना है कि यह रैली केवल प्रदर्शन नहीं थी, बल्कि 2025 बिहार विधानसभा चुनाव के लिए शक्ति प्रदर्शन भी थी।
दरअसल, मायावती पहले ही ऐलान कर चुकी हैं कि BSP बिहार की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। ऐसे में यूपी से उठी यह भीड़ की लहर अब गंगा पार बिहार की राजनीति में भी असर डाल सकती है।
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि बिहार में BSP की सक्रियता से सबसे बड़ा नुकसान महागठबंधन, खासकर RJD को हो सकता है।
अब तक तेजस्वी यादव को विपक्ष का सबसे मजबूत चेहरा माना जा रहा था उनके पास यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण और युवा वोटर की अपील दोनों थे।
लेकिन BSP का दलित वोट बैंक, जो बिहार की आबादी का लगभग 16-17% हिस्सा है, RJD के लिए सिरदर्द बन सकता है। RJD अब तक दलितों को “सहयोगी वोटर” मानती आई थी, लेकिन अगर BSP आक्रामक प्रचार के साथ मैदान में उतरती है, तो यह वोट सीधे RJD के खाते से कट सकते हैं।
BSP की रणनीति में मायावती के भतीजे आकाश आनंद अहम भूमिका निभा रहे हैं। उनकी रैलियां, सोशल मीडिया पर एक्टिव कैंपेनिंग और युवा मतदाताओं तक सीधा संवाद BSP की छवि को नया रूप दे रहा है।
बिहार में भी आकाश आनंद लगातार दौरे कर रहे हैं और दलित बस्तियों में सभाएं कर रहे हैं। उनकी मौजूदगी से पार्टी का ग्राउंड नेटवर्क तेजी से बढ़ा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि “मायावती जहां रणनीतिक सोच ला रही हैं, वहीं आकाश आनंद एनर्जी और डिजिटल अपील।”
अब तक तेजस्वी यादव को विपक्ष का चेहरा मानने वाली महागठबंधन की राजनीति पर BSP की एंट्री से संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
अगर BSP 5–6% वोट शेयर भी खींचने में सफल रही, तो RJD के पारंपरिक वोट बैंक में भारी सेंध लग सकती है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है-
“RJD के लिए यह खतरे की घंटी है। दलित वोटों के बिखरने से विपक्षी एकता का पूरा गणित गड़बड़ा सकता है।”
लखनऊ की रैली से मायावती ने साफ संदेश दिया कि BSP अब केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं, बल्कि पूर्वी भारत की सियासत में भी अपनी पकड़ बनाना चाहती है। कांशीराम स्मारक से शुरू यह स्वर अब बिहार तक पहुंचने वाला है। और अगर रैली की भीड़ और जोश संकेत हैं, तो यह कहना गलत नहीं होगा
“मायावती की राजनीति फिर एक बार अपनी नई जमीन तलाशने निकली है।”
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