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National Song Vandematram Controversy: Why did the controversy over Vande Mataram heat up? Learn its history.
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National Song Vandematram Controversy: वंदेमातरम् पर विवाद क्यों गरमाया, जानें इसका इतिहास। PM Modi
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: अभिलाषा पाठक Updated Mon, 08 Dec 2025 01:10 PM IST
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राष्ट्रगीत वंदेमातरम् पर क्या है पूरा विवाद और क्या था 1937 में वंदेमातरम् पर लिया गया फैसला? बीजेपी और कांग्रेस का पक्ष क्या है और मुस्लिम पक्ष को क्यों इन पर आपत्ति है? दरअसल पिछले महीने हुए एक समारोह में पीएम मोदी ने कहा था कि कांग्रेस ने 1937 में वंदे मातरम् के जरूरी हिस्से हटा दिए और यही कदम विभाजन के बीज बोने जैसा था। उनका आरोप था कि गीत को टुकड़ों में बांटकर इसकी मूल भावना कमजोर कर दी गई। कांग्रेस ने तुरंत जवाब देते हुए गांधी, नेहरू, पटेल, बोस, रजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद और सरोजिनी नायडू की मौजूदगी वाले कार्यसमिति के फैसले का हवाला दिया। पार्टी का कहना है कि 1937 में सिर्फ पहले दो पद इसलिए चुने गए क्योंकि बाकी पदों में धार्मिक प्रतीक थे, जिनसे कुछ लोग असहमत थे। जानें पूरा इतिहास।
वंदे मातरम् की रचना बैंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने करीब 1875 के आसपास की थी। बाद में 1881 में यह उनके उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित हुआ।इस उपन्यास में 'मां' को भारत माता के रूप में दिखाया गया, एक ऐसी भूमि जो कभी शक्तिशाली थी, अब पीड़ित है और फिर एक दिन मजबूत होकर उठेगी।हालांकि, बाद के आलोचकों ने कहा कि गीत के कुछ हिस्सों में देवी-प्रतिमा जैसा चित्रण है, जो सभी धर्मों को समान रूप से स्वीकार्य नहीं हो सकता। 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान यह गीत आजादी के आंदोलन का सबसे बड़ा नारा बन गया। स्वदेशी आंदोलन, विरोध मार्च, अखबारहर जगह वंदे मातरम् गूंजता था।1906 में बारिसाल में हिंदू और मुसलमान दोनों मिलकर इस नारे के साथ मार्च कर रहे थेउस समय इसकी अपील साम्प्रदायिक नहीं, बल्कि देशभक्ति की प्रतीक थी। इस नारे को लोकप्रिय बनाने वालों में रविंद्रनाथ टैगोर, बिपिन चंद्र पाल और अरविंदो शामिल थे। ब्रिटिश सरकार इससे इतनी परेशान हुई कि जगह-जगह इसे बोलने पर पाबंदियां लगाई गईं।
1896 के कांग्रेस अधिवेशन में टैगोर ने पहली बार इसे गाया और यह पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया। 1905 में कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय अवसरों पर अपनाया। लेकिन 1930 के दशक में इसके कुछ पदों को लेकर धार्मिक आपत्तियां बढ़ीं, नीति-निर्माताओं को लगा कि आंदोलन को सबके लिए समावेशी रखना जरूरी है।कांग्रेस कार्यसमिति ने 1937 में तय किया कि राष्ट्रीय आयोजनों में सिर्फ पहले दो पद गाए जाएंगे। इसके पीछे का कारण थे- यही पद सबसे लोकप्रिय और विवाद-रहित थे, बाकी पदों में धार्मिक प्रतीक थे और कई मुसलमान नेताओं ने उन हिस्सों पर आपत्ति जताई। कांग्रेस का उद्देश्य था कि कोई भी समुदाय अलग-थलग न महसूस करे। इसलिए बाकी पद नहीं हटाए गए, बल्कि सिर्फ राष्ट्रीय गायन के लिए तय नहीं किए गए। आयोजक चाहें तो अन्य गीत जोड़ सकते थे। टैगोर का मत था कि राष्ट्रीय प्रतीक ऐसा होना चाहिए जिसे हर नागरिक बिना हिचक अपना सकेयह सोच भी इसी फैसले की आधार बनी।
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