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जी राम जी बिल पर थरूर ने सरकार पर साधा निशाना
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Tue, 16 Dec 2025 08:57 PM IST
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लोकसभा में मंगलवार को मनरेगा का नाम बदलने को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सरकार द्वारा लाए गए बिल का जोरदार विरोध करते हुए इसे न सिर्फ एक ऐतिहासिक योजना की पहचान मिटाने की कोशिश बताया, बल्कि महात्मा गांधी के ‘रामराज्य’ के विचार के भी खिलाफ करार दिया। तिरुवनंतपुरम से सांसद थरूर ने सदन में कहा कि गांधी का रामराज्य कहीं से भी राजनीतिक नारा नहीं था, बल्कि यह सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और कमजोर तबकों के उत्थान से प्रेरित एक नैतिक दृष्टि थी।
थरूर ने कहा कि मनरेगा जैसी योजना का मकसद कभी राजनीति करना नहीं रहा। यह उन करोड़ों गरीब ग्रामीण परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बनी, जिन्हें साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी मिली। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार मनरेगा का नाम बदलकर केवल एक कानून नहीं बदल रही, बल्कि एक विरासत और उसके पीछे की मूल भावना को खत्म करने का प्रयास कर रही है।
सदन में बोलते हुए शशि थरूर ने अपने बचपन का एक गीत याद करते हुए सरकार पर तीखा कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, “देखो ओ दीवानों ये काम मत करो, राम का नाम बदनाम मत करो।” थरूर के मुताबिक, मनरेगा का नाम बदलना भी कुछ ऐसा ही है, जहां रामराज्य की अवधारणा का इस्तेमाल उसकी आत्मा के उलट किया जा रहा है। उनका कहना था कि गांधी का रामराज्य सत्ता या प्रचार का औजार नहीं, बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचाने का सपना था।
थरूर ने इस बिल को राजकोषीय संघवाद यानी ‘Fiscal Federalism’ के उल्लंघन से भी जोड़ा। उन्होंने समझाया कि राजकोषीय संघवाद का अर्थ है केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय शक्तियों और संसाधनों का स्पष्ट और संतुलित बंटवारा। जब केंद्र सरकार राज्यों के वित्तीय अधिकारों और स्वायत्तता में दखल देती है, तो यह संघीय ढांचे को कमजोर करता है। थरूर ने आरोप लगाया कि मनरेगा के नाम और स्वरूप में बदलाव उसी दिशा में एक कदम है, जिससे राज्यों की भूमिका और अधिकार सीमित होंगे।
इससे पहले कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी लोकसभा में विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी VB-G RAM G बिल, 2025 का विरोध किया। यह बिल करीब दो दशक पुराने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) की जगह लाने का प्रस्ताव करता है। प्रियंका गांधी ने कहा कि वह इस विधेयक में किए जा रहे बदलावों पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहती हैं।
प्रियंका ने सदन में कहा कि मनरेगा पिछले 20 वर्षों से ग्रामीण भारत की रीढ़ बना हुआ है। इस योजना ने न सिर्फ करोड़ों लोगों को रोजगार दिया, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दी। उन्होंने याद दिलाया कि जब मनरेगा कानून बनाया गया था, तब संसद में मौजूद लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया था। यह अपने आप में इस कानून की ताकत और जरूरत को दर्शाता है।
कांग्रेस सांसद ने कहा कि मनरेगा जैसा कानून इतना क्रांतिकारी था कि इसने देश के सबसे गरीब और हाशिए पर खड़े लोगों को भी सम्मान के साथ काम और मजदूरी का अधिकार दिया। 100 दिन के रोजगार की गारंटी ने ग्रामीण पलायन को रोका और संकट के समय लाखों परिवारों को सहारा दिया। प्रियंका ने सवाल उठाया कि आखिर ऐसी सफल और जनहितकारी योजना के नाम और ढांचे को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी।
लोकसभा में यह बहस अब केवल एक नाम परिवर्तन तक सीमित नहीं रह गई है। विपक्ष इसे गांधी की विरासत, संघीय ढांचे और गरीबों के अधिकारों से जोड़कर देख रहा है, जबकि सरकार के कदम पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद के बाहर भी बड़ा राजनीतिक विवाद बनने के संकेत दे रहा है।
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