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Will the battle for succession begin in the Lalu family after Tej Pratap's defeat?
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तेज प्रताप की हार के बाद लालू परिवार में शुरू होगी विरासत की जंग?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sat, 15 Nov 2025 02:25 PM IST
बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव हमेशा सुर्खियों में रहे हैं कभी सबसे कम उम्र में डिप्टी सीएम बनकर, कभी सबसे युवा नेता प्रतिपक्ष के रूप में। उन्होंने अपने छोटे राजनीतिक करियर में कई बड़े पड़ाव तेजी से पार किए। जाति-संवेदनशील बिहार में अंतरधार्मिक विवाह रचाना हो या युवाओं को केंद्र में रखकर विपक्ष को सत्ता की दहलीज तक ले जाना तेजस्वी ने हर बार अपनी भूमिका को चर्चा में रखा। मगर इस बार वह चर्चा में एक अलग कारण से हैं खुद बमुश्किल चुनाव जीतने और राजद को उसकी सबसे बड़ी हार दिलाने वाले नेता के तौर पर।
तेजस्वी के नेतृत्व में मिली इस हार ने लालू परिवार के भीतर की खटपट को खुलकर सामने ला दिया है। चुनाव प्रचार के दौरान ही मीसा भारती और रोहिणी आचार्य के नाराज होने की खबरों ने राजनीतिक गलियारे में हलचल पैदा कर दी थी। सबसे अधिक विवाद तेजप्रताप यादव के निष्कासन के बाद देखने को मिला, जिन्होंने सोशल मीडिया पर कई बार तेजस्वी और उनके करीबी संजय यादव को खुलकर निशाने पर लिया। तेजप्रताप ने संजय को ‘शकुनियों का नेता’ बताया और यह आरोप लगाया कि टिकट वितरण से लेकर चुनावी रणनीति तक सबकुछ संजय यादव की मर्जी से हुआ। अब जबकि पार्टी को ऐतिहासिक हार मिली है, तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल और तीखे हो गए हैं।
तेजस्वी का राजनीतिक उदय जितना तेज रहा, उतनी ही तेजी से अब उनका राजनीतिक मूल्यांकन बदला है। 2015 में पहली बार चुनाव लड़ने के बाद उन्होंने राजद को सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई। मात्र 26 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बनना उनकी लोकप्रियता का संकेत था। 2020 में भी वह महागठबंधन के युवा नायक के रूप में उभरे और बिहार की राजनीति में अपना प्रभाव बनाए रखा। लेकिन 2025 के चुनाव ने उनकी नेतृत्व क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि सीट बंटवारे से लेकर चुनावी संदेश तक सबकुछ सिर्फ उन्हीं के फैसलों पर आधारित था।
इसी बीच तेजप्रताप यादव की भूमिका भी राजद की हार में निर्णायक मानी जा रही है। पारिवारिक विवाद के बाद पार्टी से बाहर किए गए तेजप्रताप ने जनशक्ति जनता दल (जेजेडी) बनाकर चुनावी मैदान में उतरने का बड़ा फैसला लिया। उन्होंने 40 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, जिनमें से ज्यादातर राजद के पारंपरिक यादव बहुल क्षेत्र थे। इस रणनीति ने सीधे तौर पर राजद के वोट बैंक पर चोट की। तेजस्वी जहां बेरोजगारी, शासन और विकास जैसे विषयों पर हाईटेक प्रचार कर रहे थे, वहीं तेजप्रताप जमीन से जुड़े भावनात्मक अभियानों में जुटे थे। उनकी सभाओं में ‘सम्मान’, ‘शुचिता’ और ‘लालू परिवार की उपेक्षा’ जैसे मुद्दों ने यादव वोटरों के एक हिस्से को प्रभावित किया।
राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि तेजप्रताप ने भले कोई बड़ी सीट न जीती हो, लेकिन उन्होंने महागठबंधन के कई उम्मीदवारों के चुनाव बिगाड़ दिए। यादव मतदाताओं का एक वर्ग अब भी उन्हें लालू का ‘बड़ा बेटा’ मानता है, जिसे गलत समझकर दरकिनार कर दिया गया। इसी भावनात्मक जुड़ाव ने कई सीटों पर राजद को नुकसान पहुंचाया।
हार के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या लालू परिवार एकजुट रह पाएगा? पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ रहा है और कई वरिष्ठ नेता धीरे-धीरे आवाज उठाने लगे हैं। संजय यादव की बढ़ती ताकत और परिवार के सदस्यों के बीच बढ़ते मतभेद ने राजद के भविष्य को अस्थिरता की ओर धकेल दिया है।
2025 का यह चुनाव नतीजा स्पष्ट संदेश देता है तेजस्वी को अब नेतृत्व की नई परीक्षा देनी होगी। वह नायक की छवि से खलनायक की आलोचना तक पहुंच चुके हैं, लेकिन आने वाले दिनों में उनकी राजनीतिक रणनीति ही तय करेगी कि वह वापसी करेंगे या बिहार की राजनीति में एक बड़ा मोड़ यहीं आ गया है।
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