सीहोर जिले के भैरूंदा गांव में वन भूमि पर आदिवासियों को नोटिस मिलने के बाद शुरू हुआ विवाद अब राजनीतिक रणभूमि में बदल गया है। केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समर्थन के बाद यह मामला केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ दल के भीतर असहजता का कारण बन गया है। अब कांग्रेस ने इस पर हमला बोलते हुए शिवराज को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है।
कांग्रेस का पलटवार, कहा-शिवराज अब जनता को भ्रमित न करें
कांग्रेस जिलाध्यक्ष राजीव गुजराती ने प्रेस बयान और वीडियो संदेश जारी करते हुए कहा कि शिवराज सिंह चौहान अब विपक्ष जैसा अभिनय कर रहे हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, जो 18 साल मुख्यमंत्री रहे, वे अब खुद से ही सवाल पूछ रहे हैं कि नोटिस क्यों बांटे गए। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा शासन में ही आदिवासियों की जमीनें छीनी जा रही हैं और शिवराज दिखावे की राजनीति कर रहे हैं।
इस्तीफे की मांग और ‘ड्रामा’ का आरोप
कांग्रेस नेता राजीव गुजराती ने स्पष्ट कहा कि यदि शिवराज सिंह चौहान सच में असहाय हैं, तो उन्हें और बुधनी विधायक रमाकांत भार्गव को तत्काल इस्तीफा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता अब दिखावे के बयानों से नहीं, ठोस कार्रवाई से भरोसा चाहती है। गुजराती ने तंज कसते हुए कहा कि सरकार से आग्रह करेंगे कहना हास्यास्पद है, क्योंकि सरकार तो उन्हीं की पार्टी की है। क्या अब वे अपने ही शासन के खिलाफ आंदोलन करेंगे?
शिवराज की हुंकार- पुराने कब्जे नहीं छोड़ेंगे, बोवनी करेंगे
भैरूंदा की आदिवासी पंचायत में शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि पुराने कब्जे नहीं छोड़ेंगे, बोवनी करेंगे। उनके इस बयान ने आदिवासियों में उत्साह भर दिया, लेकिन प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मचा दी। शिवराज ने कहा था कि वे मुख्यमंत्री मोहन यादव से इस विषय पर बात करेंगे और आदिवासियों के साथ किसी भी अन्याय को रोकेंगे।
कानून के आदेश पर कायम प्रशासन
वन विभाग ने स्पष्टीकरण दिया कि उसने यह नोटिस किसी राजनीतिक दबाव में नहीं, बल्कि वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006 और 13 दिसंबर 2005 की कटऑफ तिथि के आधार पर जारी किए हैं। विभाग के अनुसार, केवल उन्हीं आदिवासियों को भूमि का अधिकार मिल सकता है जो उक्त तिथि से पहले कब्जे में थे। सीहोर के लाड़कुई वन परिक्षेत्र में करीब 1955.175 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जे दर्ज हैं, जिनका सत्यापन वन मित्र पोर्टल के माध्यम से किया जा रहा है।
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आदेश माने या मंत्री की घोषणा?
विभाग अब दुविधा में है। एक ओर शासन का स्पष्ट आदेश है कि वन भूमि पर अतिक्रमण हटाया जाए, दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान की सार्वजनिक घोषणा ने परिस्थितियों को राजनीतिक रूप दे दिया है। यदि प्रशासन आदेशों पर अमल करता है तो विरोध की लहर उठेगी, और अगर शिवराज की घोषणा को मान लेता है तो शासनादेश की अवमानना मानी जाएगी।
गरीबों की दिवाली अंधेरे में
कांग्रेस ने इस मुद्दे को मानवीय स्वर देकर सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। राजीव गुजराती ने कहा कि बुधनी क्षेत्र में हाल ही में एक आदिवासी परिवार का 100 साल पुराना कब्जा हटाया गया और परिवार की बच्चियों को जेल भेजने की नौबत आई। उन्होंने कहा, “जब गरीबों की झोपड़ी उजाड़ी जा रही थी, तब भाजपा के जनप्रतिनिधि दीपावली मना रहे थे।” कांग्रेस ने चेतावनी दी कि यदि ऐसी कार्यवाहियां नहीं रुकीं, तो वह आंदोलन करेगी।
कानूनी पेच
वन विभाग के मुताबिक, 13 दिसंबर 2005 के बाद किए गए अतिक्रमण अवैध हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि वे दशकों से इस भूमि पर बसे हैं। अधिकांश के पास कागजी प्रमाण नहीं हैं, केवल पीढ़ियों की गवाही है। अब सवाल उठता है कि क्या शासन संवैधानिक नियमों को सख्ती से लागू करेगा या जनभावना को प्राथमिकता देगा? यह द्वंद्व अब सियासी दलों के लिए भी परीक्षा बन गया है।
सरकार की नीति बनाम शिवराज की राजनीति
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पहले ही निर्देश दे दिए हैं कि वन भूमि पर दावों का निपटारा 31 दिसंबर तक किया जाए और किसी भी नए अतिक्रमण पर रोक लगाई जाए। वहीं, शिवराज सिंह चौहान ने उसी सरकार के मंत्री रहते हुए जनता के बीच सरकार के विरुद्ध आवाज उठाई। यह विरोधाभास अब भाजपा के लिए भी मुश्किलें बढ़ा रहा है। विपक्ष इसे सरकार के भीतर की असहमति बताकर राजनीतिक लाभ उठाने में जुट गया है।
समाधान या टकराव?
भैरूंदा का वन भूमि विवाद अब राज्य की सत्ता, संवेदना और सियासत.. तीनों की कसौटी बन गया है। एक ओर आदिवासी समुदाय उम्मीद कर रहा है कि उनकी जमीनें सुरक्षित रहें, दूसरी ओर प्रशासन कानूनी प्रक्रिया पर अड़ा है। कांग्रेस ने मोर्चा संभाल लिया है और शिवराज सिंह चौहान खुद को जनता के साथ खड़ा दिखाने की कोशिश में हैं। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं। क्या वे अपने ही केंद्रीय मंत्री की घोषणा को मान्यता देंगे या कानून की राह पर चलेंगे?