आज की पीढ़ी जहां सोशल मीडिया और इंटरनेट की लत में डूबती जा रही है, वहीं राजस्थान के डीग में श्रीजड़खोर गोधाम का श्री गणेशदास भक्तमाली वेद विद्यालय एक अनोखा उदाहरण बनकर सामने आया है। यहां बच्चों को मोबाइल और टीवी से दूर रखकर वेद, शास्त्र और संस्कारों की शिक्षा दी जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में 15-20% किशोर तनाव और अवसाद से जूझ रहे हैं। वहीं IAMAI की रिपोर्ट बताती है कि 16-24 आयु वर्ग के 82% युवा रोजाना औसतन 4-5 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। एनसीईआरटी के अध्ययन में भी अत्यधिक इंटरनेट उपयोग से पढ़ाई पर 35% तक नकारात्मक असर सामने आया है। ऐसे समय में गुरुकुल प्रणाली बच्चों को मानसिक संतुलन और सांस्कृतिक जुड़ाव का मार्ग दिखा रही है।
यहां पढ़ने वाले बच्चों को बटुक ब्रह्मचारी कहा जाता है। सात वर्षीय पाठ्यक्रम के अंतर्गत वे यहीं रहते हैं और संस्कारयुक्त शिक्षा प्राप्त करते हैं। वेद, संस्कृत, गणित, हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाने वाले आचार्य उन्हें राष्ट्र रक्षक और सनातन संस्कृति के संवाहक बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
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स्वामी राजेन्द्र दास जी महाराज का कहना है कि हमारा उद्देश्य विलुप्त होती सनातन संस्कृति की रक्षा करना और ऐसी युवा शक्ति तैयार करना है, जो देश व धर्म की रक्षा में सदैव आगे खड़ी हो।
विद्यालय में मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। बच्चों को सप्ताह में एक बार अभिभावकों से बात करने और माह में एक बार माता-पिता से मिलने की अनुमति होती है। सुबह 4 बजे उठकर प्रार्थना, योग, ध्यान, वेद अभ्यास, त्रिकाल संध्या, सूर्य नमस्कार और यज्ञ-हवन उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।
गौ सेवा और सात्विक भोजन यहां की शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग हैं। बर्गर, पिज्जा, मांस और मदिरा जैसी चीजों पर सख्त पाबंदी है। गौवृति प्रसाद को ही प्रमुख भोजन बनाया गया है।
डीग का यह गुरुकुल आधुनिकता की चकाचौंध से अलग बच्चों को न केवल ज्ञान बल्कि अनुशासन, करुणा, कृतज्ञता और आत्मबल से परिपूर्ण कर रहा है। यहां की दिनचर्या भविष्य की पीढ़ी को संस्कारित और सशक्त बनाने का प्रयास है।