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Sirohi News: ब्रह्माकुमारी नारी सशक्तिकरण का वैश्विक उदाहरण, प्रभारी से मुखिया तक महिलाओं के हाथों में कमान

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सिरोही Published by: सिरोही ब्यूरो Updated Fri, 07 Mar 2025 09:14 PM IST
Women Empowerment: From in-charge to head, command is in the hands of women in Sirohi Brahmakumari
नारी नरक का द्वार नहीं सिर का ताज है। नारी अबला नहीं सबला है। शक्ति स्वरूपा है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और नारी के उत्थान के संकल्प के साथ उसे समाज में खोया सम्मान दिलाने, भारत माता, वंदे मातरम् की गाथा को सही अर्थों में चरितार्थ करने वर्ष 1937 में उस जमाने के हीरे-जवाहरात के प्रसिद्ध व्यापारी दादा लेखराज कृपलानी ने नारी सशक्तिकरण की नींव रखी। नारी उत्थान को लेकर उनका दृढ़ संकल्प ही था कि उन्होंने अपनी सारी जमीन-जायजाद बेचकर एक ट्रस्ट बनाया और उसमें संचालन की जिम्मेदारी नारियों को सौंप दी। इतने बड़े त्याग के बाद भी खुद को कभी आगे नहीं रखा। लोगों में परिवारवाद का संदेश न जाए इसलिए बेटी तक को संचालन समिति में नहीं रखा। वर्ष 1950 में संस्थान का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू बनाया गया। जहां से बहुत ही छोटे स्तर पर विधिवत भारत सहित विश्वभर में सेवाओं की शुरुआत की गई। पहले संगठन का नाम ओम मंडली था। 1950 में बदलकर इसे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय किया गया। उस वक्त मात्र 350 लोग ही इसके समर्पित सदस्य थे।    

गौरतलब है कि साल 1937 में स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के ध्येय वाक्य को लेकर संस्था की शुरुआत हुई थी। वर्तमान में 101 वर्षीय राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की नायिका है।140 देशों में संस्था के सेवाकेंद्र संचालित है इसमें पांच हजार सेवा केंद्र देशभर में चलाए जा रहे हैं। इसमें 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित हैं। 20 लाख लोग नियमित विद्यार्थी एवं
2 लाख बालब्रह्मचारी युवा सदस्य है। संस्था की 1970 में विदेशी सरजमीं पर शुरुआत हुई थी। 7 पीस मैसेंजर अवार्ड यूएनओ से दिए गए है। 20 प्रभागों के माध्यम से समाज के सभी वर्ग की सेवा की जा रही हैं। अमृत महोत्सव के तहत देशभर में 2022 में 55 हजार कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। संस्था द्वारा 1602000 पौधे कल्पतरुह अभियान (2022) के तहत देशभर में लगाए गए थे।

दुनिया का एकमात्र और सबसे बड़ा संगठन
ब्रह्माकुमारी संस्थान नारी शक्ति द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा और एकमात्र संगठन है। यहां मुख्य प्रशासिका से लेकर प्रमुख पदों पर महिलाएं ही हैं। नारी सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि यहां के भोजनालय में भाई भोजन बनाते हैं और बहनें बैठकर भोजन करती हैं। संगठन की सारी जिम्मेदारियों को बहनें संभालती हैं और भाई उनके सहयोगी के रूप में साथ निभाते हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम में पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी इस संगठन की सफलता और विशालता को देखते हुए कहा था कि यहां नारी शक्ति ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि नारी को मौका मिले तो वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।

चौथी क्लास से लेकर पीएचडी डिग्रीधारी बहनें समर्पित
राजयोग ध्यान का ही कमाल है कि संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका स्व. राजयोगिनी दादी जानकी जो मात्र चौथी कक्षा तक पढ़ीं थीं, लेकिन 60 वर्ष की उम्र में वह विदेशी सरजमीं पर पहुंचीं। 90 साल की उम्र तक उन्होंने अकेले 100 से अधिक देशों में भारतीय आध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन का परचम लहराया। इसके अलावा ज्ञान-ध्यान की बदौलत अनेकों ऐसी बहनें हैं जो आठवीं कक्षा से कम पढ़ी-लिखीं हैं लेकिन जब वह मंच से शक्ति स्वरूपा बनकर दहाड़ती हैं तो लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। इसके साथ ही संस्थान में डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, वकील, प्रोफेसर, जज, आईएएस से लेकर सिंगर तक हैं जिन्होंने बाकायदा प्रोफेशनल डिग्री लेने के बाद आध्यात्म की राह अपनाई और आज समर्पित रूप से संस्थान में सेवाएं दे रही हैं।

सात साल की तपस्या से गुजरता है ब्रह्माकुमारी बनने का सफर
संस्थान के साथ जुडऩा तो आसान है लेकिन ब्रह्माकुमारी बनने का रास्ता त्याग-तपस्या से होकर गुजरता है। पहले तीन साल कन्या जब किसी भी सेवाकेंद्र पर रहती है तो उसके आचरण, नियम-संयम को परखकर ट्रायल लिस्ट में नाम आता है, इसके बाद सात साल तक संपूर्ण रीति संस्थान के ईश्वरीय संविधान पर चलने के बाद ही ब्रह्माकुमारी के रूप में समर्पण किया जाता है।

140 देशों में पांच हजार सेवाकेंद्र संचालित
संस्थान के इस समय विश्व के 140 देशों में पांच हजार से अधिक सेवाकेंद्र संचालित हैं। 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित रूप से तन-मन-धन के साथ अपनी सेवाएं दे रही हैं। 20 लाख से अधिक लोग इसके नियमित विद्यार्थी हैं जो संस्थान के नियमित सत्संग मुरली क्लास को अटेंड करते हैं। दो लाख से अधिक ऐसे युवा जुड़े हुए हैं जो बालब्रह्मचारी रहकर संस्थान से जुड़कर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे और सेवा के लिए राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के तहत 20 प्रभागों की स्थापना की है।

सात दिन के कोर्स से होती है शुरुआत
ब्रह्माकुमारीज की मुख्य शिक्षा राजयोग का आधार स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन है। सबसे पहले स्थानीय सेवाकेंद्र पर सात दिन का नि:शुल्क राजयोग मेडिटेशन कोर्स कराया जाता है। जिसमें जीवन जीने की कला, आत्मा-परमात्मा का सत्य परिचय, सृष्टि चक्र का रहस्य, आत्मा के 84 जन्मों की कहानी, कल्प वृक्ष का रहस्य, कर्मों की गहन गति, राजयोग ध्यान की विधि, अन्न का मन पर प्रभाव, पवित्रता की धारणा और महत्व आदि बातों को गहराई पूर्वक बताया जाता है।

योग, नशामुक्ति, यौगिक खेती से लेकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही है संस्था
ब्रह्माकुमारीज संस्थान की बहनें न केवल ज्ञान-ध्यान की शिक्षा देती हैं बल्कि बड़े स्तर पर संस्थान द्वारा नशामुक्ति, जैविक-यौगिक खेती, पर्यावरण संरक्षण, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, युवा जागृति, महिला सशक्तिकरण, पौधारोपण जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं। हाल ही में संस्थान की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर अभियान चलाया गया। इसके तहत देशभर में आध्यात्मिक जागृति और देशभक्ति पर केंद्रित 55 हजार कार्यक्रम किए गए।  

संयुक्त राष्ट्र शांति पदक से सम्मानित
यूएनओ की ओर से ब्रह्माकुमारीज को वर्ष 1981 और वर्ष 1986 में संयुक्त राष्ट्र शांतिदूत पुरस्कार मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि को प्रदान किया गया। वहीं 1987 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति संदेशवाहक पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके साथ ही इसी वर्ष संस्थान को पांच राष्ट्रीय शांति संदेशवाहक पुरस्कार प्रदान किए गए। मार्च 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर बीके शिवानी दीदी को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा था।

यहां की शिक्षा के मुख्य चार आधार हैं- ज्ञान, योग, सेवा और धारणा
ज्ञान: नियमित विद्यार्थी बनने के लिए सात दिन का राजयोग कोर्स जरूरी है। इसमें भारतीय पुरातन संस्कृति आध्यात्म और श्रीमद् भागवत गीता ज्ञान के आधार पर राजयोग की शिक्षा दी जाती है। बाद में नियमित सत्संग मुरली क्लास होती है।
  • योग: ब्रह्माकुमारी की शिक्षाओं में योग की अहम भूमिका है। क्योंकि योग से ही दिव्य बुद्धि और संस्कार शुद्धि होती है। सभी भाई-बहनें ब्रह्ममुहूर्त में अमृतवेला 4 बजे से योग करते हैं।
  • सेवा: समर्पित रूप से सेवाएं देने वाले भाई-बहनें ज्ञान और योग के बाद अपनी जिम्मेदारी अनुसार सेवा का निर्वहन करते हैं।
  • धारणा: परमात्म ज्ञान को जीवन में धारण कर जो गलत आदतें, गलत संस्कार या निगेटिव विचार हैं उन्हें दूर कर दिव्य गुणों की धारणा करना यहां की पढ़ाई का चौथा और अंतिम सब्जेक्ट है।  

पांचवीं मुख्य प्रशासिका के रूप में 101 वर्षीय दादी रतनमोहिनी संभाल रहीं हैं दायित्व
वर्ष 1937 में संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका के रूप में मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (जिन्हें सब प्यार से मम्मा कहते थे) को नियुक्त किया गया। 24 जून 1965 में मम्मा के अव्यक्त आरोहण के बाद संस्थापक ब्रह्मा बाबा और सभी भाई-बहनों की सर्वसहमति से राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि को संगठन की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया। जिन्होंने 25 अगस्त 2007 तक यह जिम्मेदारी निभाई। ब्रह्माकुमारीज की सेवाओं को विश्वव्यापी रूप देने और जन-जन तक राजयोग का संदेश पहुंचाने में दादी प्रकाशमणि का अतुलनीय योगदान रहा है। इसके बाद 2007 में राजयोगिनी दादी जानकी ने कमान संभाली और 27 मार्च 2020 में 104 वर्ष की आयु में देवलोकगमन के बाद 94 वर्षीय राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी को मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया। 11 मार्च 2021 को दादी हृदयमोहिनी के देवलोकगमन के बाद 98 वर्षीय राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी को मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया है।

दादी जानकी के पास था विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का रिकार्ड
संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी के पास विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का रिकार्ड था। टेक्सास यूनिवर्सिटी में किए गए शोध में वैज्ञानिकों ने पाया था कि दादी का अपने मन पर पूरा कंट्रोल है। यहां तक कि उन्होंने योग से अपने मन को इतन संयमित कर लिया है कि वह जब चाहें और जो चाहें वही संकल्प कर सकती हैं। उन्होंने स्थितप्रज्ञ की अवस्था को पा लिया है। साथ ही उनकी नींद की अवस्था भी डेल्टा स्टेज की थी।
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