ट्रंप ने कट्टरपंथियों को शीर्ष पदों पर बैठाने को दिया समर्थन, मुसलमान हुए भयभीत
अमेरिकी मुसलमान डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद से ही सतर्क थे, लेकिन शुक्रवार को जब उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल माइकल फ्लिन को एनएसए, जेश सेशंस को अटार्नी जनरल और माइक पोम्पेओ को सीआईए प्रमुख बनाने की पेशकश की तो मुस्लिमों में भय व चिंता बढ़ गई है। चूंकि ट्रंप खुद इस्लाम के खिलाफ बोलते रहे हैं और उनके द्वारा शीर्ष पदों के लिए चयनित ये तीनों लोग भी कट्टरपंथी हैं, इसलिए अमेरिका के मुसलमानों को उनके साथ भेदभाव, हिंसा, अप्रवास और गिरफ्तारी का डर सताने लगा है।
कई मुसलमान कह रहे हैं कि वे इसलिए भी चिंतित हैं क्योंकि यह नया माहौल कहीं मुस्लिमों को आतंकी संगठनों से जोड़ने के लिए न उकसाने लगे। चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने कहा था कि ‘इस्लाम हमसे नफरत करता है’, यह विचार भी भविष्य के लिए बेहतर संकेत नहीं देता है। मुस्लिमों ने अपने साक्षात्कार में स्वीकार किया कि चुनाव से पहले इस तरह की बातें उतनी गंभीर नहीं लगती थीं, और उम्मीद थी कि चुनाव के बाद सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ट्रंप द्वारा शीर्ष पदों पर तीन लोगों को की गई पेशकश के बाद वे बुरी तरह डर गए हैं।
येल में अमेरिकन स्टडी की एसोसिएट प्रोफेसर जरीना ग्रेवाल ने कहा कि मैंने ट्रंप के बयानों और श्वेत राष्ट्रवादियों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया लेकिन अब जो हालात दिखाई दे रहे हैं वे सभी को परेशान करने वाले हैं। अमेरिकी शरणार्थी केंद्र में काम करने वाली इराक मूल की हनान हसन को लगता है कि सीरिया से आए अधिकांश लोगों का दिमाग अब तेजी से बदल रहा है।
इनमें से कुछ लोग डरे हुए हैं कि उन्हें वापस वहीं भेज दिया जाएगा। स्कूली बच्चों में भी यह चर्चा का विषय है। पाकिस्तान मूल की छात्रा 17 वर्षीय सारा खान ने कहा कि दुनिया भर के लोग अमेरिका में इसलिए बसे हैं क्योंकि यहां आजादी है, लेकिन यदि उन्होंने (ट्रंप) हमें यहां से भगा दिया तो हम क्या करेंगे?
मुस्लिमों के पंजीकरण के सुझाव की आलोचना
उत्तरी वर्जीनिया में देश की सबसे बड़ी मस्जिद में अमेरिकी मुसलमानों के संगठन एडीएएमएस बोर्ड के चेयरमैन रिजवान जाका ने कहा कि अमेरिकी मुस्लिम यूएस के संविधान का पालन करते हैं, लेकिन अब आगामी प्रशासन की पेशकश को लेकर जो बानगी सामने आई है उससे सभी भयभीत हैं। अरब अमेरिकी एसोसिएशन की कार्यकारी निदेशक लिंडा सारसौर ने भी कहा कि मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा जिस बात को लेकर हम सभी डर रहे हैं, लेकिन यह सच है कि हम अब पहले जितने निर्भीक भी नहीं हैं।
शीर्ष डेमोक्रेटिक सांसदों और मानवाधिकार संगठनों ने मुस्लिम-बहुल देशों से आए प्रवासियों की पंजीकरण नीति को दुबारा बहाल करने की भावी राष्ट्रपति ट्रंप की कथित योजना की कड़ी आलोचना की है। इस योजना के तहत प्रवासियों की सूची तैयार की जानी है। उल्लेखनीय है कि 9-11 को हुए हमले के बाद यह कार्यक्रम शुरू हुआ था जिसमें मुस्लिम बहुल देशों से अमेरिका आने वाले लोगों को तत्काल संघीय सरकार के समक्ष पंजीकरण कराना पड़ता था या निर्वासन का सामना करना पड़ता था।
अमेरिकी सीनेटर डिक डर्बिन के मुताबिक ‘हमारे देश में अरब और मुसलमानों को लक्ष्य करके विफल कार्यक्रमों को दुबारा बहाल करना यह दिखाता है कि अमेरिका में चुनाव की रात आईएस क्यों जश्न मना रहा था। इसकी वजह यह थी कि देश डर के साये में नागरिक अधिकारों को कुचलने की तरफ बढ़ रहा था। इससे हमारे शत्रु उत्साहित हैं और नई नियुक्तियों से आईएस का खेमा मजबूत हो रहा है।’ डर्बिन ने ही वर्ष 2002 में इस कार्यक्रम को बंद करने की मांग की थी।
कांग्रेशनल प्रोगेसिव कॉकस (सीपीसी) के सह-अध्यक्ष रॉल एम ग्रिजाल्वा और केथ एलिसन, कांग्रेशनल एशियन पेसिफिक अमेरिकन कॉकस की अध्यक्षा जूडी चू, सीपीसी उपाध्यक्ष कांग्रेसी माइक होंडा और सीपीसी उपाध्यक्ष मार्क टोकानो ने जापानी-अमेरिकी नजरबंदी शिविरों का इस्तेमाल मुस्लिमों के पंजीकरण के लिए करने के ट्रंप के सहयोगी कार्ल हिग्बी के सुझाव की आलोचना की है।
होंडा ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां परेशान करने वाली हैं। यह भय है, साहस नहीं। नफरत है, नीति नहीं। एलिसन ने कहा कि राष्ट्रपति के बतौर ट्रंप के निर्वाचन के बाद हजारों अमेरिकियों में भविष्य को लेकर भय का माहौल है। चू ने कहा कि अमेरिकी मुस्लिमों को पंजीकृत करने संबंधी किसी भी प्रस्ताव के लिए हमारे समाज में जगह नहीं है। इस तरह के विचारों का आधार खौफ, विभाजन और नफरत है।