Bolivia: बोलिविया में राष्ट्रपति चुनाव में बड़ा उलटफेर, रोड्रिगो पाज ने दर्ज की जीत; 20 साल बाद बदलेगी सत्ता
बोलिविया में राष्ट्रपति चुनाव में रोड्रिगो पाज ने बड़ा उलटफेर करते हुए 54% से ज्यादा वोटों के साथ जीत हासिल की। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज तूतो कीरोगा को हराया। पाज ने जनता को एमएएस पार्टी के 20 साल के खर्चीले शासन और आर्थिक संकट से बदलाव का भरोसा दिलाया।

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बोलिविया में रविवार को हुए राष्ट्रपति चुनाव में एक बड़ा उलटफेर हुआ है। पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बने रोड्रिगो पाज ने चुनाव में जीत हासिल की है। शुरुआती नतीजों के अनुसार, पाज को 54% से ज्यादा वोट मिले हैं, जबकि उनके प्रतिद्वंदी और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज तूतो कीरोगा को सिर्फ 45% वोट ही मिल पाए। पाज एक मध्यमार्गी नेता हैं और उनके साथी उम्मीदवार एडमैन लारा एक पूर्व पुलिस कप्तान हैं। उन्होंने ग्रामीण और मजदूर वर्ग के वोटरों को अपनी तरफ खींचा, जो बीते 20 साल से सत्ता में रही मूवमेंट टुवर्ड सोशलिज्म (एमएएस) पार्टी से परेशान थे।

बता दें कि एमएएस पार्टी की सरकार पर जरूरत से ज्यादा खर्च करने और देश को आर्थिक संकट में धकेलने के आरोप लगते रहे हैं। वर्तमान में देश में डॉलर की भारी कमी है, महंगाई दर 23% पहुंच चुकी है, जो 1991 के बाद सबसे ज्यादा है और पेट्रोल की भारी किल्लत है।
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अब नहीं बदलेंगे नतीजे- चुनाव आयोग
वहीं चुनाव आयोग के प्रमुख ऑस्कर हस्सेंटेउफेल ने कहा कि रुझान साफ है, नतीजा अब नहीं बदलेगा। ऐसे में पाज की जीत को लोग 2005 के बाद का सबसे बड़ा बदलाव मान रहे हैं, जब इवो मोरालेस देश के पहले आदिवासी राष्ट्रपति बने थे और एमएएस पार्टी सत्ता में आई थी। हालांकि इससे पहले अपने वोट डालने के बाद पाज ने कहा कि हम एक युग को खत्म कर रहे हैं और नए दौर की शुरुआत कर रहे हैं। उनके साथ उनके पिता और पूर्व राष्ट्रपति जैमे पाज जमोरा भी मौजूद थे।
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पाज ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का किया है दावा
गौरतलब है कि बोलिविया की खराब होती आर्थिक स्थिति के बीच पाज ने चुनाव प्रचार में कहा कि वह देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए धीरे-धीरे मुक्त-बाजार सुधार लाएंगे। उनका इरादा फिक्स्ड एक्सचेंज रेट को खत्म करना, ईंधन पर सब्सिडी कम करना और सरकारी खर्च को घटाना है। लेकिन उनका ये भी कहना है कि वह यह सब धीरे-धीरे करना चाहते हैं ताकि देश में मंदी या महंगाई अचानक न बढ़ जाए। वहीं उनके प्रतिद्वंदी कीरोगा ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मदद लेने और तेज आर्थिक सुधारों का वादा किया था, जिसे लोग 1990 के दशक की मुश्किलों से जोड़ते हैं।