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फैसला: ब्रिटेन को चुकानी पड़ेगी ब्रेग्जिट की कीमत, क्या स्कॉटलैंड की आजादी को रोकना अब नामुमकिन?
अमर उजाला ब्यूरो, लंदन
Published by: कुमार संभव
Updated Mon, 12 Apr 2021 05:12 PM IST
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सार
- स्टरजन ने द गार्जियन को दिए इंटरव्यू में कहा, 'ब्रिटिश सरकार के भीतर पहले यह राय थी कि वह जनमत संग्रह को रोक सकती है, लेकिन अब वहां 'यह कब होगा' और 'जनमत संग्रह का आधार क्या होगा' जैसे सवालों पर चर्चा शुरू हो गई है।

ब्रेग्जिट
- फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
ब्रिटेन को ब्रेग्जिट (यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन से अलगाव) की कीमत अब चुकानी पड़ सकती है। दरअसल, ब्रेग्जिट के बाद स्कॉटलैंड में आजादी की मांग काफी तेज हो गई, जो अब अपने पहले मुकाम पर पहुंचती दिख रही है। दरअसल, स्कॉटलैंड की फर्स्ट सेक्रेटरी (निर्वाचित मुख्य प्रशासनिक अधिकारी) निकोला स्टरजन का दावा है कि अगर अगले महीने होने वाले चुनाव में उनकी पार्टी स्कॉटिश नेशनल पार्टी जीती तो प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन स्कॉटलैंड की आजादी के लिए फिर से जनमत संग्रह कराने के प्रस्ताव का विरोध नहीं कर पाएंगे। बता दें कि 2014 में भी स्कॉटलैंड में ऐसा जनमत संग्रह हुआ था। उस वक्त आजादी समर्थक मामूली अंतर से हार गए थे।
बता दें कि स्टरजन ने ब्रिटिश अखबार 'द गार्जियन' को दिए एक इंटरव्यू में अपनी जीत का दावा किया। हालांकि, इसी अखबार ने प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के हवाले से कहा है कि बोरिस जॉनसन जनमत संग्रह के सख्त विरोधी हैं। वहीं, सूत्रों बताते हैं कि कुछ रणनीतिक कारणों से जॉनसन सरकार अब इस मामले में नरमी के संकेत भी दे रही है। दरअसल, सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी चाहती है कि जनमत संग्रह की मांग स्कॉटलैंड के चुनाव में मुख्य मुद्दा न बनें। इससे वहां मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो सकता है। उसका फायदा आजादी समर्थक स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी) को मिल सकता है।
द गार्जियन में रविवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार जनमत संग्रह के खिलाफ है, लेकिन सरकार के भीतर यह सोच भी है कि अगर छह मई को होने वाले चुनाव में एसएनपी भारी बहुमत से जीत गई तो जनमत संग्रह की मांग ठुकराना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में कंजरवेटिव पार्टी की रणनीति एसएनपी के लिए समर्थन को यथासंभव सीमित रखने की है। हालांकि, पिछले हफ्ते इस्पोस मोरी एजेंसी की तरफ से जारी चुनाव पूर्व जनमत संग्रह से संकेत मिला कि एनएनपी के लगातार चौथी बार भारी बहुमत से जीतने की संभावना मजबूत है।
स्टरजन ने द गार्जियन को दिए इंटरव्यू में कहा, 'ब्रिटिश सरकार के भीतर पहले यह राय थी कि वह जनमत संग्रह को रोक सकती है, लेकिन अब वहां 'यह कब होगा' और 'जनमत संग्रह का आधार क्या होगा' जैसे सवालों पर चर्चा शुरू हो गई है। वहीं, ब्रिटिश मीडिया के कुछ हलकों का कहना है कि एसएनपी की जीत का अर्थ जनमत संग्रह के लिए मतदाताओं का समर्थन नहीं होगा। उधर, टाइम्स अखबार ने एक फौरी सर्वे के आधार पर दावा किया कि स्कॉटिश मतदाता जनमत संग्रह के सवाल पर बंटे हुए हैं।
एक राय यह भी है कि पार्टी में पिछले दिनों हुए विभाजन से एसएनपी की हैसियत कमजोर हुई है। एसएनपी के सीनियर नेता एलेक्स सालमंड ने अलग होकर अल्बा पार्टी बनाई है। स्टरजन कभी सालमंड को अपना गुरु मानती थीं, लेकिन पिछले साल दोनों के संबंध बहुत बिगड़ गए। सालमंड ने स्टरजन पर उन्हें बदनाम करने की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया। धीरे- धीरे बढ़ते मतभेदों के बीच एसएनपी में बंटवारा हो गया। ताजा इंटरव्यू में स्टरजन ने आरोप लगाया कि अल्बा पार्टी प्रदर्शन आयोजित करने और अनधिकृत जनमत संग्रह की बात करके आजादी समर्थक मतदाताओं में भ्रम पैदा कर रही है। उन्होंने दावा किया कि ब्रेग्जिट के बाद स्कॉटलैंड के लोग आजादी के पक्ष में स्पष्ट राय रखने लगे हैं।
स्टरजन ने कहा कि 2014 में जिन कई लोगों ने आजादी के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था, उन्होंने ब्रेग्जिट के बाद अपनी राय बदल ली है। अब वे खुले दिमाग से सोच रहे हैं। गौरतलब है कि स्कॉलैंड में आम राय ब्रेग्जिट के खिलाफ थी। वहां के लोग यूरोपियन यूनियन के साथ रहना चाहते थे। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार अगर जनमत संग्रह हुआ तो बाजी आजादी समर्थकों के हाथ लग सकती है।

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बता दें कि स्टरजन ने ब्रिटिश अखबार 'द गार्जियन' को दिए एक इंटरव्यू में अपनी जीत का दावा किया। हालांकि, इसी अखबार ने प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के हवाले से कहा है कि बोरिस जॉनसन जनमत संग्रह के सख्त विरोधी हैं। वहीं, सूत्रों बताते हैं कि कुछ रणनीतिक कारणों से जॉनसन सरकार अब इस मामले में नरमी के संकेत भी दे रही है। दरअसल, सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी चाहती है कि जनमत संग्रह की मांग स्कॉटलैंड के चुनाव में मुख्य मुद्दा न बनें। इससे वहां मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो सकता है। उसका फायदा आजादी समर्थक स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी) को मिल सकता है।
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द गार्जियन में रविवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार जनमत संग्रह के खिलाफ है, लेकिन सरकार के भीतर यह सोच भी है कि अगर छह मई को होने वाले चुनाव में एसएनपी भारी बहुमत से जीत गई तो जनमत संग्रह की मांग ठुकराना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में कंजरवेटिव पार्टी की रणनीति एसएनपी के लिए समर्थन को यथासंभव सीमित रखने की है। हालांकि, पिछले हफ्ते इस्पोस मोरी एजेंसी की तरफ से जारी चुनाव पूर्व जनमत संग्रह से संकेत मिला कि एनएनपी के लगातार चौथी बार भारी बहुमत से जीतने की संभावना मजबूत है।
स्टरजन ने द गार्जियन को दिए इंटरव्यू में कहा, 'ब्रिटिश सरकार के भीतर पहले यह राय थी कि वह जनमत संग्रह को रोक सकती है, लेकिन अब वहां 'यह कब होगा' और 'जनमत संग्रह का आधार क्या होगा' जैसे सवालों पर चर्चा शुरू हो गई है। वहीं, ब्रिटिश मीडिया के कुछ हलकों का कहना है कि एसएनपी की जीत का अर्थ जनमत संग्रह के लिए मतदाताओं का समर्थन नहीं होगा। उधर, टाइम्स अखबार ने एक फौरी सर्वे के आधार पर दावा किया कि स्कॉटिश मतदाता जनमत संग्रह के सवाल पर बंटे हुए हैं।
एक राय यह भी है कि पार्टी में पिछले दिनों हुए विभाजन से एसएनपी की हैसियत कमजोर हुई है। एसएनपी के सीनियर नेता एलेक्स सालमंड ने अलग होकर अल्बा पार्टी बनाई है। स्टरजन कभी सालमंड को अपना गुरु मानती थीं, लेकिन पिछले साल दोनों के संबंध बहुत बिगड़ गए। सालमंड ने स्टरजन पर उन्हें बदनाम करने की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया। धीरे- धीरे बढ़ते मतभेदों के बीच एसएनपी में बंटवारा हो गया। ताजा इंटरव्यू में स्टरजन ने आरोप लगाया कि अल्बा पार्टी प्रदर्शन आयोजित करने और अनधिकृत जनमत संग्रह की बात करके आजादी समर्थक मतदाताओं में भ्रम पैदा कर रही है। उन्होंने दावा किया कि ब्रेग्जिट के बाद स्कॉटलैंड के लोग आजादी के पक्ष में स्पष्ट राय रखने लगे हैं।
स्टरजन ने कहा कि 2014 में जिन कई लोगों ने आजादी के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था, उन्होंने ब्रेग्जिट के बाद अपनी राय बदल ली है। अब वे खुले दिमाग से सोच रहे हैं। गौरतलब है कि स्कॉलैंड में आम राय ब्रेग्जिट के खिलाफ थी। वहां के लोग यूरोपियन यूनियन के साथ रहना चाहते थे। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार अगर जनमत संग्रह हुआ तो बाजी आजादी समर्थकों के हाथ लग सकती है।