सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   World ›   Children's curiosity only needs direction not control Study published in Psychology Today

अध्ययन: बच्चों की जिज्ञासा को सिर्फ दिशा देने की जरूरत...नियंत्रण की नहीं

अमर उजाला नेटवर्क, टोरंटो Published by: लव गौर Updated Sun, 19 Oct 2025 06:26 AM IST
सार

साइकोलॉजी टुडे में प्रकाशित टोरंटो के रॉटमैन रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के अनुसार बच्चों की जिज्ञासा को सिर्फ दिशा देने की जरूरत है ना कि उनपर नियंत्रण की। अध्ययन में बताया गया है कि बच्चों पर अपनी सोच थोपना ठीक नहीं है। उनकी दिलचस्पी ही सीखने की सबसे बड़ी ताकत बनेगी।

विज्ञापन
Children's curiosity only needs direction not control Study published in Psychology Today
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : अमर उजाला प्रिंट
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

माता-पिता और शिक्षक अक्सर यह तय करने में जुटे रहते हैं कि बच्चों को क्या सीखना चाहिए? लेकिन अब विज्ञान कह रहा है कि बच्चों की जिज्ञासा को बस दिशा देने की जरूरत है, नियंत्रण की नहीं। साइकोलॉजी टुडे में प्रकाशित टोरंटो के रॉटमैन रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के अनुसार जब बच्चे किसी चीज में खुद रुचि लेकर डूबते हैं चाहे वह पक्षियों को पहचानना या उनकी आवाज पहचानना हो, डायनासोर के नाम याद रखना या संगीत के सुर पकड़ना तो उनका मस्तिष्क नई जानकारी को न सिर्फ तेजी से ग्रहण करता है बल्कि लंबे समय तक सहेज भी लेता है।
Trending Videos


विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को सिखाने से ज्यादा जरूरी है उन्हें खोजने देना, क्योंकि जिज्ञासा से उपजी सीख सबसे गहरी और स्थायी होती है। शोधकर्ताओं एरिक विंग और उनकी टीम का कहना है कि जो बच्चे खुद चीजें खोजते हैं, उनका मस्तिष्क सेल्फ जेनरेटेड फीडबैक बनाता है। यानी वे खुद को सिखाने की क्षमता विकसित करते हैं। विंग बताते हैं, जब बच्चे खुद जानकारी एकत्र करते हैं जैसे किसी पक्षी की तस्वीर लेना, उसकी आवाज रिकॉर्ड करना या उसका चित्र बनाना तो उनका मस्तिष्क सक्रिय रूप से सोचता है, न कि सिर्फ याद करता है।
विज्ञापन
विज्ञापन


शोधकर्ताओं ने दो समूह बनाए। एक, वे बच्चे जिन्हें किसी क्षेत्र जैसे पक्षियों की पहचान, संगीत या चित्रकला में पहले से रुचि थी, और दूसरा, वे जिनका उस विषय से कोई संबंध नहीं था। दोनों को नई जानकारियां दी गई। जैसे पक्षियों की नई प्रजातियां या अज्ञात ध्वनियां और पहचानने को कहा गया। परिणाम में रुचि वाले बच्चे नई जानकारी को तेजी से समझ गए और लंबे समय तक याद रख पाए। दूसरे समूह के बच्चे या तो समझ ही नहीं पाए और जो समझे उन्हें बहुत समय लगा। निष्कर्ष यह निकला कि जब बच्चा किसी विषय से भावनात्मक रूप से जुड़ता है तो उसका मस्तिष्क अधिक सक्रिय होकर उसी दिशा में सीखने की क्षमता बढ़ा देता है।

माता-पिता और शिक्षकों के लिए सबक
जब बच्चा किसी विषय पर बार-बार बोलता है, तो उसे टोकिए नहीं सुनिए। इससे उसका आत्मविश्वास और विषय से जुड़ाव बढ़ता है। अगर बच्चा पक्षियों में दिलचस्पी रखता है तो उसे पेड़ों, घोंसलों, कीड़ों और मौसम के बारे में जानने दीजिए। एक विषय दूसरे की ओर स्वाभाविक रूप से ले जाता है। किसी बाज का चित्र बनाना, उसकी उड़ान को रिकॉर्ड करना या उसकी आवाज को पियानो पर बजाना यह सब दिमाग में जानकारी को पक्का करते हैं। जब बच्चा किसी पक्षी को गलत पहचान ले, तो उसे सुधारने से पहले खुद विश्लेषण करने का मौका दीजिए।

शोध में कहा गया है कि टेक्सास की वाइल्डलाइफ बायोलॉजिस्ट डेनिएल बेलनी  इसका जीवंत उदाहरण हैं। बेलनी ने बचपन में फ्लूट बजाना सीखा था और संगीत की बारीकियों पर उनकी पकड़ मजबूत हो गई थी। बाद में जब उन्होंने बर्ड-वॉचिंग शुरू की तो उन्होंने पाया कि संगीत की उनकी समझ ने उन्हें पक्षियों की आवाजों को पहचानने में असाधारण रूप से मदद की।
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get latest World News headlines in Hindi related political news, sports news, Business news all breaking news and live updates. Stay updated with us for all latest Hindi news.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed