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SCO Summit 2025: ट्रंप की टैरिफ धमकियों पर जवाब देने को तैयार चीन, पुतिन और मोदी संग एकजुटता दिखाएंगे जिनपिंग

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग Published by: हिमांशु चंदेल Updated Tue, 26 Aug 2025 04:00 PM IST
सार

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एससीओ शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन को बुलाकर अमेरिका को कड़ा संदेश दिया है। यह बैठक तियानजिन में 31 अगस्त से एक सितंबर तक होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आयोजन बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूत करेगा और भारत-चीन रिश्तों में सुधार का अवसर देगा। 

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China SCO Summit Jinping ready to respond for Trump tariff threats show solidarity with Putin Modi
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी। - फोटो : ANI
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विस्तार
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ट्रंप की टैरिफ धमकियों के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित कई देशों के नेताओं को शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में आमंत्रित कर बड़ा संदेश दिया है। यह सम्मेलन 31 अगस्त से एक सितंबर तक तियानजिन, चीन में आयोजित होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आयोजन अमेरिका को उभरते नए विश्व व्यवस्था का आईना दिखाने की रणनीति का हिस्सा है।
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यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका और ब्रिक्स देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन इस आयोजन को यह दिखाने के लिए उपयोग करेगा कि अमेरिका, रूस, ईरान और अब भारत को अलग-थलग करने के उसके प्रयास विफल रहे हैं। चीन-ग्लोबल साउथ प्रोजेक्ट के संपादक एरिक ओलैंडर के मुताबिक, यह सम्मेलन दुनिया को यह संदेश देगा कि अमेरिकी नेतृत्व वाली व्यवस्था अब कमजोर हो रही है और बहुध्रुवीय दुनिया तेजी से आकार ले रही है।
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भारत-चीन रिश्तों को सुधारने की कोशिश
यह शिखर सम्मेलन भारत और चीन के लिए भी अहम माना जा रहा है। दोनों देशों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद और तनाव रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत इस सम्मेलन के जरिए चीन के साथ रिश्तों में सुधार की दिशा में कदम बढ़ा सकता है। उम्मीद है कि इस बैठक में दोनों देश सैनिकों की वापसी और व्यापार व वीजा पाबंदियों में ढील जैसे ऐलान कर सकते हैं। यह कदम द्विपक्षीय रिश्तों को नया आयाम देने में मदद करेगा।

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संगठन की चुनौतियां और अवसर
शंघाई सहयोग संगठन आज 10 स्थायी और 16 पर्यवेक्षक देशों तक पहुंच चुका है। इसके बावजूद कई विशेषज्ञ मानते हैं कि संगठन की वास्तविक दृष्टि और उसके ठोस परिणाम अभी स्पष्ट नहीं हैं। तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के मनोज किवलरामाणी का कहना है कि एससीओ किस दिशा में आगे बढ़ना चाहता है और इसके ठोस लाभ क्या होंगे, यह अभी धुंधला है। इसके बावजूद यह संगठन अमेरिका की नीतियों के खिलाफ सामूहिक हितों को सामने लाने का अहम मंच बन चुका है।

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नए विश्व क्रम की तैयारी
इस साल का शिखर सम्मेलन 2001 में एससीओ की स्थापना के बाद अब तक का सबसे बड़ा आयोजन माना जा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने इसे नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के निर्माण में एक महत्वपूर्ण ताकत बताया। सम्मेलन से उम्मीद की जा रही है कि यह न केवल क्षेत्रीय सहयोग को मजबूती देगा बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी संयुक्त प्रयासों का मार्ग प्रशस्त करेगा। हालांकि, सुरक्षा मामलों में इसकी भूमिका अभी सीमित ही मानी जा रही है।

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