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उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार खत्म कराने के शी जिनपिंग के बयान पर उठे सवाल

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग Published by: Harendra Chaudhary Updated Thu, 28 Jan 2021 03:02 PM IST
सार

शी और मून के बीच द्विपक्षीय मुद्दों और कोरोना महामारी से निपटने में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा हुई, लेकिन पर्यवेक्षकों का खास ध्यान उत्तर कोरिया के बारे में शी की टिप्पणी ने खींचा है। उत्तर कोरिया का मसला अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन के एजेंडे में भी ऊपर है...

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Chinese President Xi Jinping talk to South Korea President, said- he wants to end North Korea nuclear weapons
चीनी के राष्ट्रपति शी जिनपिंग - फोटो : Agency (File Photo)
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विस्तार
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस बयान ने दक्षिण-पूर्व एशिया में कयासों का दौर गर्म कर दिया है कि वे कोरिया प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त कराना चाहते हैं। इसका व्यावहारिक मतलब है कि उत्तर कोरिया को अपने परमाणु हथियार खत्म करने के लिए राजी किया जाए। अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश लंबे समय से इसी मकसद के लिए सक्रिय रहे हैं।

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उन्होंने उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम की वजह से उस पर प्रतिबंध भी लगा रखे हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसी उद्देश्य को हासिल करने के लिए उत्तर कोरियाई नेता किम उन जोंग से मुलाकात भी की थी। लेकिन ट्रंप किम से परमाणु हथियारों के खात्मे का वादा लेने में नाकाम रहे। इसीलिए अब ये सवाल उठाया जा रहा है कि जहां ट्रंप नाकाम रहे, क्या उस मुद्दे पर शी सफल हो सकेंगे?
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शी की राय दक्षिण कोरिया के प्रधानमंत्री के प्रधानमंत्री मून जाए-इन के साथ फोन पर हुई बातचीत में सामने आई। ये बातचीत मंगलवार को हुई थी, लेकिन इसका आधिकारिक ब्योरा बुधवार को जारी किया गया। बातचीत के दौरान शी ने मून से कहा कि चीन कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने के दक्षिण कोरिया के रुख का समर्थन करता है।

उन्होंने कहा कि ऐसा होना दोनों देशों (चीन और दक्षिण कोरिया) के साझा हित में होगा। बातचीत का ये ब्योरा दक्षिण कोरिया ने जारी किया है। इसके मुताबिक शी ने कहा कि कोरियाई प्रायद्वीप की स्थिति कमोबेश स्थिर है और चीन यहां की राजनीतिक समस्याओं के हल में दक्षिण कोरिया की भूमिका को बहुत महत्व देता है।

शी और मून ने जापान के साथ त्रिपक्षीय शिखर बैठक जल्द आयोजित करने संभावना पर भी बातचीत की। इसे भी एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। वैसे ये शिखर बैठक पहली बार 2008 में हुई थी और उसके बाद नौ बार हो चुकी है। लेकिन पिछले साल कोरोना वायरस महामारी के कारण इसे टाल दिया गया। इसी बीच अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध छिड़ गया। उसके बाद अमेरिका ने चीन से कूटनीतिक और सामरिक तनाव भी बढ़ा दिया। ऐसे में इस त्रिपक्षीय शिखर बैठक की संभावना धूमिल मानी जा रही थी।

गौरतलब है कि जापान और दक्षिण कोरिया दोनों को अमेरिकी खेमे का देश समझा जाता है। दोनों देशों में अमेरिकी फौजी तैनात रहे हैं। विश्लेषकों की नजर में ऐसे में उस वक्त जबकि अमेरिका और चीन के संबंधों में तनाव चरम पर है, इन दोनों देशों की चीन के साथ शिखर बैठक को आगे बढ़ाने की कोशिश अहम है। मून ने शी के साथ बातचीत में उम्मीद जताई कि शिखर बैठक के आयोजन के सवाल पर दक्षिण कोरिया और चीन मिलकर काम कर सकते हैं। इस पर शी ने कहा कि ये शिखर बैठक जितना संभव है उतनी जल्दी हो, इसके लिए चीन दक्षिण कोरिया के साथ अपने सहयोग को और मजबूत करेगा।

हालांकि शी और मून के बीच द्विपक्षीय मुद्दों और कोरोना महामारी से निपटने में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा हुई, लेकिन पर्यवेक्षकों का खास ध्यान उत्तर कोरिया के बारे में शी की टिप्पणी ने खींचा है। उत्तर कोरिया का मसला अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन के एजेंडे में भी ऊपर है। दक्षिण कोरिया की समाचार एजेंसी योनहाप के मुताबिक अमेरिका के नए विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्री कांग क्यूंग-व्हा से फोन पर बातचीत में इस मसले को उठाया। उन्होंने कहा कि यह ऐसा मुद्दा है, जिसे बाइडन प्रशासन तुरंत सुलझाना चाहेगा।

इस संदर्भ में शी का बयान और अहम हो जाता है। उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम में चीन की मदद को महत्वपूर्ण माना जाता है। उत्तर कोरिया पर चीन का प्रभाव भी है। ऐसे अगर चीन गंभीर और ईमानदार प्रयास करे, तो इस मामले में प्रगति हो सकती है, ऐसा इस क्षेत्र के पर्यवेक्षकों का मानना है।

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