एच-1 बी वीजा : अमेरिका में बड़े स्तर पर खारिज हुए भारतीय आईटी कंपनियों के आवेदन
एच-1 बी वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है जो उन अमेरिकी कंपनियों को विशेष व्यवसायों के लिए विदेशी कामगारों की नियुक्ति की मंजूरी देता है जिन्हें सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है।
विस्तार
आधिकारिक आंकड़ों के एक अध्ययन के मुताबिक, अमेरिकी कंपनियों की तुलना में टीसीएस और इंफोसिस जैसी भारतीय आईटी कंपनियों के लिए 2019 में अमेरिका ने हर पांचवीं याचिका में से एच-1 बी वीजा का एक आवेदन खारिज किया है। अमेरिका में वीजा आवेदन खारिज करने की यह बहुत ही ऊंची दर रही है।
प्रौद्योगिकी कंपनियां भारत और चीन जैसे देशों से हर साल दसियों हजार कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए इसी वीजा पर निर्भर रहती हैं। हालांकि 2019 में एच-1 बी वीजा खारिज करने की दर 21 प्रतिशत रही जो 2018 में 24 फीसदी के मुकाबले कुछ कम रही।
नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के मुताबिक, यह दर भारत की टीसीएस, विप्रो या इंफोसिस जैसी आईटी कंपनियों के लिहाज से बहुत अधिक है, जबकि अमेजन या गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियों के लिए बहुत कम है।
भारतीय कंपनियों को नुकसान
साल 2019 में टीसीएस और इंफोसिस जैसी भारतीय आईटी कंपनियों में एच-1 बी वीजा आवेदन के इनकार की दर क्रमश: 31 व 35 फीसदी रही जबकि विप्रो और टेक महिंद्रा के लिए यह 47 और 37 प्रतिशत रही। इसके ठीक विपरीत अमेजन और गूगल के लिए यह वीजा आवेदन खारिज करने की दर महज चार फीसदी रही। माइक्रोसॉफ्ट के लिए यह छह फीसदी व फेसबुक-वॉलमार्ट के लिए सिर्फ तीन प्रतिशत रही।
नए नियम से बढ़ेंगी मुश्किलें
वर्ष 2020 में ट्रंप प्रशासन एक नया एच-1 बी वीजा विनियमन विधेयक पेश कर सकता है। इसके पारित होने के बाद नियोक्ताओं के लिए अमेरिका में उच्च कौशल वाले विदेशी नागरिकों की नियुक्ति और भी मुश्किल हो जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2015 से 2019 के बीच शीर्ष सात भारतीय कंपनियों के लिए नई एच-1 बी याचिकाओं में 64 प्रतिशत की गिरावट आई है।