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प्रबोवो सुबियांतो: टिकटॉक पर प्रचार से जीता था राष्ट्रपति चुनाव, भारत की इस योजना को इंडोनेशिया में कराया लागू

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 17 Jan 2025 12:17 PM IST
सार
प्रबोवो सुबियांतो कौन हैं? उनका सैन्य और राजनीतिक इतिहास क्या रहा है? अमेरिका ने एक समय उनके प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों लगा दिया था? इसके अलावा भारत की तरफ से उन्हें मुख्य अतिथि घोषित करने में इतना समय क्यों लगा? आइये जानते हैं...
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Indonesia President Prabowo Subianto Ex-Military Leader Politician next India Republic Day Chief Guest profile
गणतंत्र दिवस पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति होंगे मुख्य अतिथि। - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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भारत ने गणतंत्र दिवस के लिए मुख्य अतिथि के नाम का एलान कर दिया है। इस बार 26 जनवरी को इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो कर्तव्य पथ पर जब भारतीय सेना के तीन अंगों की ताकत देखने के लिए मौजूद होंगे, तब वह हथियारों और सैन्य बेड़ों की ताकत को अंजान व्यक्ति की तरह नहीं, बल्कि एक पूर्व सैन्य कर्मी के तौर पर भी देखेंगे। वजह है उनका इतिहास, जो कि राजनीति से ज्यादा सैन्य क्षेत्र से जुड़ा है। 


गौरतलब है कि भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए थे। इसके बाद से यह चौथी बार है, जब इंडोनेशिया के राष्ट्राध्यक्ष को भारत में गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जा रहा है।


ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर प्रबोवो सुबियांतो कौन हैं? उनका सैन्य और राजनीतिक इतिहास क्या रहा है? अमेरिका ने एक समय उनके प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों लगा दिया था? भारत को लेकर उनका रुख कैसा रहा है? आइये जानते हैं...

कौन हैं प्रबोवो सुबियांतो?
प्रबोवो सुबियांतो ने पिछले साल जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति का चुनाव जीता था, तब देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में उनकी चर्चा जारी थी। दरअसल, सुबियांतो का लंबा विवादित इतिहास रहा है। फिर चाहे वह आर्मी जनरल के तौर पर हो या एक व्यापारी और नेता के तौर पर। प्रोबोवो सुबियांतो का जन्म 1951 में इंडोनेशिया के एक शक्तिशाली परिवार में हुआ था। वे चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थे। उनके पिता सुमित्रो जोजोहादिकुसुमो प्रभावशाली नेता थे और राष्ट्रपति सुकर्णो और सुहर्तो की सरकार में मंत्री रहे थे। 

बताया जाता है कि सुबियांतो के पिता ने इंडोनेशिया को नीदरलैंड के शासन से आजादी दिलाने में सुकर्णो के साथ बड़ी भूमिका निभाई थी। हालांकि, बाद में वे सुकर्णो के खिलाफ हो गए और इसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें देश छोड़ना पड़ा। इस तरह सुबियांतो का बचपन और युवावस्था इंडोनेशिया के बाहर ही बीती। वे फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी और डच भाषा अच्छी तरह जानते हैं। 

1967 में सुहर्तो के राष्ट्रपति बनने के बाद सुबियांतो का परिवार इंडोनेशिया वापस लौटा। इस दौर में सुहर्तो पर सरकारी फंड से अपने परिवार और करीबियों के लिए अरबों डॉलर लेने के आरोप लगे। साथ ही उन पर विरोधियों के खिलाफ सख्ती से ताकत इस्तेमाल करने का भी आरोप लगा। धीरे-धीरे सुहर्तो को इंडोनेशिया का तानाशाह कहा जाने लगा। 

प्रबोवो सुबियांतो।
प्रबोवो सुबियांतो। - फोटो : अमर उजाला
सेना में सेवा के दौरान लगे मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप
1970 में सुबियांतो ने इंडोनेशिया की मिलिट्री एकेडमी में भर्ती ली। 1974 में ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद उन्हें स्पेशल फोर्सेज में जगह मिली। उन्हें पूर्वी तिमोर में कमांडर बनाया गया। हालांकि, 1980 और 1990 के दौर में इंडोनेशिया के कब्जे वाले पूर्वी तिमोर में उनका नाम मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में जुड़ने लगा। सुबियांतो इन आरोपों से हमेशा से ही इनकार करते रहे हैं। हालांकि, यहां हुई घटनाओं को लेकर सुबियांतो और उनकी स्पेशल फोर्सेज के सदस्यों पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया था। यह पाबंदी 2020 तक लागू रही, जब इंडोनेशिया का रक्षा मंत्री बनने के बाद उन्हें अमेरिका दौरे का मौका मिला।

इंडोनेशिया के तानाशाह सुहर्तो के दामाद थे सुबियांतो
प्रबोवो सुबियांतो की सेना में हनक की एक वजह यह भी थी कि वह इंडोनेशिया के ताकतवर तानाशाह सुहर्तो के दामाद थे। उनका विवाह इंडोनेशिया के तानाशाह सुहर्तो की बेटी तितिएक सुहर्तो से 1983 में हुआ था। हालांकि, 1998 में सुहर्तो की सत्ता जाने के बाद सुबियांतो का भी तितिएक से अलगाव हो गया। 

1998 सुबियांतो के लिए खासा अहम साल साबित हुआ, जब उन्हें एक कोर स्तरीय कमांड का नेतृत्व करने के लिए चुना गया। हालांकि, इसी साल के अंत में उन्हें सेना से निकाल दिया गया। वजह थी 1990 के दौर में उनके नेतृत्व में सैन्य टुकड़ियों की मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं। सुबियांतो पर आरोप हैं कि इसी दौरान उन्होंने एक यूनिट का कमांड संभाला, जिसने तानाशाह सुहर्तो विरोधी लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को अगवा करने के साथ उन्हें टॉर्चर किया। उनके उत्पीड़न का सामना करने वाले जिन 23 लोगों के नाम सामने आए थे, उनमें कुछ बच निकले, एक की मौत हो गई, जबकि 13 लोग लापता रहे। इन घटनाओं के खुलासे के बाद 1998 में ही उन्हें सेना से निकाल दिया गया। सुबियांतो इसके बाद खुद ही जॉर्डन जाकर बस गए थे। 

2009 से लड़ रहे चुनाव, 2024 में मिली सफलता?
प्रबोवो सुबियांतो की जॉर्डन से वापसी 2008 में हुई। इसके बाद उन्होंने पाम ऑयल और खनन के व्यापार में पैठ बनाई। देखते ही देखते सुबियांतो इंडोनेशिया के बड़े व्यापारियों में शामिल हो गए। इसी दौरान उन्होंने इंडोनेशिया में जेरिंडा पार्टी की स्थापना में भूमिका निभाई। 2009 में सुबियांतो ने उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इसके बाद 2014 और 2019 में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा। हालांकि, दोनों बार उन्हें इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो ने हराया। इस बीच उनकी बढ़ती ताकत का अंदाजा विदोदो को भी हो गया था। ऐसे में 2019 के चुनाव के बाद जब सुबियांतो ने शुरुआत में नतीजों को नहीं माना, तो विदोदो ने उन्हें सरकार में रक्षा मंत्री का पद देने की पेशकश की। इस तरह प्रबोवो सुबियांतो विपक्षी नेता होने के बावजूद विदोदो की सरकार में रक्षा मंत्री बनने में सफल हुए।

विदोदो सरकार में अहम मंत्रीपद मिलने के बावजूद सुबियांतो की नजर में राष्ट्रपति की कुर्सी हमेशा से ही रही। इसी के मद्देनजर जेरिंडा पार्टी ने 2021 में ही एलान कर दिया कि 2024 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में वे पार्टी की तरफ से उम्मीदवार होंगे। अपने चुनाव प्रचार के दौरान सुबियांतो ने सैन्य प्रमुख के तौर पर अपने इतिहास को भुलाने का भरसक प्रयास किया। इसी दौरान उन्होंने प्रचार के लिए टिकटॉक का सहारा लिया और अपनी छवि को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश की। इस दौरान उन्हें इंडोनेशिया में क्यूट ग्रैंडपा (मासूम दादाजी) शीर्षक से पहचाना जाने लगा। राष्ट्रपति चुनाव में जीत का उनका यह तरीका लंबे समय तक चर्चा में भी रहा।

पिछले साल 14 फरवरी को आए नतीजों में उन्हें इंडोनेशिया के राष्ट्रपति चुनाव का विजेता घोषित किया गया। 20 अक्तूबर 2024 को उन्होंने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति पद की शपथ ली।

भारत को लेकर क्या रहा है सुबियांतो का रुख?
प्रबोवो सुबियांतो भारत के समर्थन में बयान देने वाले वैश्विक नेताओं में से रहे हैं। नवंबर 2023 में राष्ट्रपति चुनाव जीतने से पहले ही वे इंडोनेशिया में भारत से सीखने की बात कहते रहे। एक मौके पर तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि इंडोनेशिया ने बहुत दशकों तक पश्चिम की ओर देखा है। हालांकि, अब हमें यूरोप की जरूरत नहीं है और देश को कुछ भी सीखने के लिए पश्चिम की तरफ नहीं देखना चाहिए। बल्कि पूर्वी एशिया में भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से सीखना चाहिए। 

इतना ही नहीं प्रबोवो ने इंडोनेशिया के ब्रिक्स गठबंधन में शामिल होने की संभावनाओं पर विचार करने की बात कही थी। उनका मानना है कि ब्रिक्स एक भू-राजनीतिक गठबंधन न होकर एक आर्थिक गठबंधन है, जिससे इंडोनेशिया को फायदा हो सकता है। 

पीएम मोदी से भी कर चुके हैं बात
प्रबोवो सुबियांतो इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बातचीत कर चुके हैं। इंडोनेशिया में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद सुबियांतो ने पीएम मोदी को फोन किया था। इस दौरान दोनों के बीच भारत-इंडोनेशिया के सभ्यतागत रिश्तों को आगे बढ़ाने से लेकर कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने पर बात हुई थी। इसके अलावा दोनों नेताओं ने 2024 में ब्राजील के रियो डी जेनेरो में जी20 सम्मेलन के दौरान भी मुलाकात की थी। 

भारत की इस योजना को इंडोनेशिया में लागू किया
प्रबोवो सुबियांतो भारत के प्रशंसक होने के साथ ही यहां की योजनाओं से भी काफी प्रभावित रहे। इसी साल 6 जनवरी को इंडोनेशिया में उनके नेतृत्व में एक योजना लॉन्च हुई, जिसके तहत पहले ही दिन करीब 5 लाख 70 हजार से ज्यादा बच्चों को सरकार की तरफ से मुफ्त में खाना मुहैया कराया गया। इंडोनेशिया में 20 अक्तूबर को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के ठीक बाद ही उन्होंने घोषणापत्र में किया बच्चों के मुफ्त खाना मुहैया कराने का वादा निभाया और इसके लिए संसद में प्रस्ताव लाए। संसद में इस योजना के लिए 4.4 अरब डॉलर के खर्च की मंजूरी दी गई। 

बताया जाता है कि सुबियांतो की इस योजना की प्रेरणा भारत के स्कूली बच्चों को मुफ्त में दी जाने वाली खाने की योजना ही थी। इसका प्रमाण इसी बात से मिलता है कि अप्रैल 2024 में सुबियांतो के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ही इंडोनेशिया से एक प्रतिनिधिमंडल भारत आया था। इस समूह ने भारत के सफल मिड-डे मील कार्यक्रम पर स्टडी की और बच्चों में कुपोषण की स्थिति कम करने के परिणामों को भी परखा। डेलिगेशन ने मिड-डे मील योजना के लॉजिस्टिक्स, इसकी गुणवत्ता और बच्चों तक इसकी पहुंच जैसे मानकों की भी जांच की। 

इतना ही नहीं प्रतिनिधिमंडल ने भारत की अक्षय पात्र योजना का भी विश्लेषण किया। इसी आधार पर इंडोनेशिया में बच्चों को खाना मुहैया कराने की योजना का परीक्षण शुरू हुआ। 
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