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Nepal Unrest: प्रदर्शन के बीच सबसे ज्यादा चर्चा में चार नाम, जानें युवा क्रांति के पीछे के इन चेहरों को
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Wed, 10 Sep 2025 08:04 PM IST
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सार
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नेपाल में प्रदर्शनों के पीछे के बड़े चेहरे।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों के खिलाफ सोमवार को शुरू हुए युवाओं के हिंसक प्रदर्शन ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। आलम यह रहा कि नेपाल सरकार के कई मंत्रियों के साथ-साथ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तक को इस्तीफा देना पड़ा। इस दौरान नेताओं के घरों से लेकर संसद और सुप्रीम कोर्ट तक में आगजनी की गई। हालांकि, बुधवार आते-आते नेपाल की सेना ने राजधानी काठमांडू समेत अलग-अलग शहरों में शांति स्थापित करने की कोशिशें शुरू कर दीं और हिंसा की घटनाओं पर लगाम लगाई।फिलहाल नेपाल में प्रदर्शनों के सूत्रधार और आगे की सियासत का रास्ता तय करने वालों में चार नामों की चर्चा सबसे ज्यादा है। इनमें से दो नाम- सुदन गुरुंग और बालेन शाह के हैं, जिन्हें 'जेन जी' के प्रदर्शनों का सूत्रधार माना जा रहा है। इसके अलावा तीसरा नाम है रबि लमिछाने और चौथा नाम सुशीला कार्की का है।
ऐसे में यह जानना अहम है कि नेपाल में प्रदर्शनों की वजह बताए जा रहे यह चेहरे कौन हैं? इन तीनों का इतिहास क्या रहा है? नेपाल की राजनीति में इनका क्या असर है? इसके अलावा और कौन से चेहरे नेपाल के भविष्य की इबारत लिखने में आगे आ सकते हैं? भारत को लेकर इनका क्या रुख है? आइये जानते हैं...
पहले जानें- कौन से चेहरे रहे नेपाल में प्रदर्शनों के सूत्रधार?
1. सुदन गुरुंग
भूकंप ने बदल दी राहगुरुंग ने इवेंट मैनेजमेंट और नाइटलाइफ इंडस्ट्री छोड़कर सामाजिक कार्य करना शुरू किया। 2015 के नेपाल भूकंप में उन्होंने 'हमि नेपाल' की स्थापना की। इस एनजीओ ने न सिर्फ भूकंप से प्रभावित लोगों के खाने और अस्थायी तौर पर रहने की व्यवस्था की, बल्कि पांच साल बाद आई कोरोना महामारी में राहत कार्यों के कारण यह एनजीओ चर्चा में रहा। 2020 में 'इनफ इज इनफ' आंदोलन के दौरान वे युवाओं के नेता बने। इसी साल तक यह 1600 से अधिक सदस्यों के साथ एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के रूप में पंजीकृत हो गया था।
युवाओं से की थी स्कूल ड्रेस में प्रदर्शन की अपील
प्रदर्शन के पीछे सुदन गुरुंग का नाम इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया पर छात्रों से अपील की कि वे सरकार के सोशल मीडिया प्रतिबंधों के खिलाफ स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर और किताबें लेकर आएं, ताकि यह विरोध शांति का प्रतीक बने। उन्होंने रैली के लिए औपचारिक अनुमति भी मांगी और सोशल मीडिया के जरिए सुरक्षा और रूट प्लान साझा किया। गुरुंग ने अपने पोस्ट के जरिए सरकारी भ्रष्टाचार की ओर युवाओं का ध्यान भी आकर्षित किया।
पुलिस की सख्ती के बाद मांगा ओली का इस्तीफा
इस बीच जब सरकार ने प्रदर्शनों को दबाने के लिए पुलिस से बल प्रयोग करवाया तो सुदन भड़क गए। उन्होंने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से तुरंत इस्तीफे की मांग रख दी। इसके अलावा उन्होंने मंत्रियों से भी इस्तीफे की मांग की और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने वालों पर सख्त कार्रवाई की भी मांग कर दी।
प्रदर्शन के पीछे सुदन गुरुंग का नाम इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया पर छात्रों से अपील की कि वे सरकार के सोशल मीडिया प्रतिबंधों के खिलाफ स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर और किताबें लेकर आएं, ताकि यह विरोध शांति का प्रतीक बने। उन्होंने रैली के लिए औपचारिक अनुमति भी मांगी और सोशल मीडिया के जरिए सुरक्षा और रूट प्लान साझा किया। गुरुंग ने अपने पोस्ट के जरिए सरकारी भ्रष्टाचार की ओर युवाओं का ध्यान भी आकर्षित किया।
पुलिस की सख्ती के बाद मांगा ओली का इस्तीफा
इस बीच जब सरकार ने प्रदर्शनों को दबाने के लिए पुलिस से बल प्रयोग करवाया तो सुदन भड़क गए। उन्होंने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से तुरंत इस्तीफे की मांग रख दी। इसके अलावा उन्होंने मंत्रियों से भी इस्तीफे की मांग की और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने वालों पर सख्त कार्रवाई की भी मांग कर दी।
2. बालेंद्र (बालेन) शाह
सिविल इंजीनियर-रैप आर्टिस्ट से नेता तकबालेन शाह काठमांडू के 15वें मेयर हैं। बालेन पेशे से सिविल इंजीनियर और रैपर भी रहे हैं। बालेन शाह ने साल 2022 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में काठमांडू मेयर चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया था। बालेन शाह लोगों के बीच, खासकर युवा पीढ़ी में खासे लोकप्रिय हैं। बालेन शाह अपने समर्थकों से जुड़ने के लिए पारंपरिक मीडिया के बजाय सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय रहते हैं, जिससे युवा पीढ़ी उनसे जुड़ी।
भारत से की है इंजीनियरिंग की पढ़ाई
बालेंद्र (बालेन) का छात्र जीवन में भारत से भी रिश्ता रहा है। उन्होंने इजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर्नाटक से की है। संगीतकार, रैपर, कवि, इंजीनियर से नेता बने शाह का नाम देश के अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चला। बालेंद्र का जन्म 27 अप्रैल, 1990 को काठमांडू के नरदेवी में एक मैथिल मूल के मधेशी परिवार में हुआ। उनके पिता राम नारायण शाह एक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं। उनके पिता आयुर्वेदिक अस्पताल में तैनाती के बाद मधेश प्रांत के महोत्तरी जिले से काठमांडू आए थे। बालेन शाह ने 12वीं की पढ़ाई वीएस निकेतन हायर सेकेंडरी स्कूल से की। उन्होंने हिमालयन व्हाइटहाउस इंटरनेशनल कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की और बाद में कर्नाटक में विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी यूनिवर्सिटी (वीटीयू) से स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की।
टाइम मैगजीन ने उभरते नेताओं की सूची में शामिल किया
साल 2023 में टाइम मैगजीन ने शाह को टॉप 100 उभरते नेताओं की सूची में शामिल किया था, जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी उनकी तारीफ की। बालेन शाह की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें नेपाल की राजनीति में नई उम्मीद माना जा रहा है। जेनजी के प्रदर्शन को लेकर उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि 'भले ही वे आयु सीमा (28 वर्ष से कम) के कारण प्रदर्शन में शामिल नहीं हो सकते, लेकिन उनकी पूरी सहानुभूति और समर्थन प्रदर्शनकारियों के साथ है।' उन्होंने राजनीतिक दलों और नेताओं से आंदोलन का दुरुपयोग न करने की अपील भी की।
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ओली से रही बालेन शाह की अदावत
बालेन शाह को केपी शर्मा ओली का विरोधी माना जाता है। दोनों के बीच अदावत की वजह थी कि बीते साल काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी ने नियमों का पालन नहीं करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। इस कार्रवाई की जद में कई नेता भी आए। ऐसे में काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी का विरोध शुरू हो गया। बालेन शाह ने इसके लिए पीएम केपी शर्मा ओली पर निशाना साधा। इसके बाद मेट्रोपोलिटन सिटी के हजारों कर्मचारियों को कई महीनों तक सैलरी नहीं मिली थी। बालेन शाह ने इन कर्मचारियों को समर्थन दिया था और सरकार को चेतावनी दे डाली थी। इस मामले को लेकर खूब विवाद हुआ और बालेन शाह लोगों की नजरों में आ गए। नेपाली जनता भ्रष्टाचार के चलते राजनीतिक दलों से नाराज चल रही है, लेकिन बालेन शाह किसी पार्टी से जुड़े हुए नहीं हैं और ये बात भी उनके पक्ष में जाती है।
साल 2023 में टाइम मैगजीन ने शाह को टॉप 100 उभरते नेताओं की सूची में शामिल किया था, जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी उनकी तारीफ की। बालेन शाह की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें नेपाल की राजनीति में नई उम्मीद माना जा रहा है। जेनजी के प्रदर्शन को लेकर उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि 'भले ही वे आयु सीमा (28 वर्ष से कम) के कारण प्रदर्शन में शामिल नहीं हो सकते, लेकिन उनकी पूरी सहानुभूति और समर्थन प्रदर्शनकारियों के साथ है।' उन्होंने राजनीतिक दलों और नेताओं से आंदोलन का दुरुपयोग न करने की अपील भी की।
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ओली से रही बालेन शाह की अदावत
बालेन शाह को केपी शर्मा ओली का विरोधी माना जाता है। दोनों के बीच अदावत की वजह थी कि बीते साल काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी ने नियमों का पालन नहीं करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। इस कार्रवाई की जद में कई नेता भी आए। ऐसे में काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी का विरोध शुरू हो गया। बालेन शाह ने इसके लिए पीएम केपी शर्मा ओली पर निशाना साधा। इसके बाद मेट्रोपोलिटन सिटी के हजारों कर्मचारियों को कई महीनों तक सैलरी नहीं मिली थी। बालेन शाह ने इन कर्मचारियों को समर्थन दिया था और सरकार को चेतावनी दे डाली थी। इस मामले को लेकर खूब विवाद हुआ और बालेन शाह लोगों की नजरों में आ गए। नेपाली जनता भ्रष्टाचार के चलते राजनीतिक दलों से नाराज चल रही है, लेकिन बालेन शाह किसी पार्टी से जुड़े हुए नहीं हैं और ये बात भी उनके पक्ष में जाती है।
3. रबि लमिछाने
टीवी शो से मिली लोकप्रियतारबि लामिछाने राजनीति में आने से पहले पत्रकार और एकंर भी रह चुके हैं। उन्होंने सीधा कुरा जनता संग नाम के एक शो को होस्ट किया था, जिसने उन्हें काफी लोकप्रियता मिली। इस कार्यक्रम की थीम भ्रष्टाचार और अन्य सामाजिक मुद्दों पर बात करने से जुड़ी थी। इसके चलते वे नेपाल में हर दूसरे घर में देखे जाने वाला चेहरा बन गए।
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राजनीति में उतरे, घाट-घाट का पानी पिया
लमिछाने ने 2022 में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) की स्थापना की थी। आम चुनावों में अपनी लोकप्रियता के दम पर रबि ने पार्टी को 20 सीटें जितवाईं। इसके बाद उन्हें पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री नियुक्त किया गया। हालांकि, पिछले साल अक्तूबर में उन्हें संगठित अपराध और सहकारी फंड में हेरफेर करने के मामलों में आरोपी मानकर गिरफ्तार कर लिया गया था और जेल भेज दिया गया। तबसे ही वे जेल में बंद थे।
सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों में युवाओं का समर्थन किया
रबि लमिछाने की पार्टी आरएसपी ने खुलकर सरकार के खिलाफ युवाओं के विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया। उनकी पार्टी के 20 सांसदों ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों और युवाओं के प्रदर्शन पर सख्ती बरतने के खिलाफ एक साथ इस्तीफा देकर दबाव बनाया। जेन जी के आंदोलन के बाद जेल प्रशासन ने लामिछाने की सुरक्षा सुनिश्चित करने से मना कर दिया। इसके बाद उनकी पत्नी निकिता पौडेल ने व्यक्तिगत तौर पर सुरक्षा की जिम्मेदारी ली। इस बीच युवाओं ने भी लमिछाने का समर्थन किया और उन्हें जेल से छुड़ा लिया।
रबि लमिछाने की पार्टी आरएसपी ने खुलकर सरकार के खिलाफ युवाओं के विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया। उनकी पार्टी के 20 सांसदों ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंधों और युवाओं के प्रदर्शन पर सख्ती बरतने के खिलाफ एक साथ इस्तीफा देकर दबाव बनाया। जेन जी के आंदोलन के बाद जेल प्रशासन ने लामिछाने की सुरक्षा सुनिश्चित करने से मना कर दिया। इसके बाद उनकी पत्नी निकिता पौडेल ने व्यक्तिगत तौर पर सुरक्षा की जिम्मेदारी ली। इस बीच युवाओं ने भी लमिछाने का समर्थन किया और उन्हें जेल से छुड़ा लिया।
4. सुशीला कार्की
नेपाल में युवाओं के प्रदर्शन के समर्थन में एक बड़ी आवाज नेपाली सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की की रही। उन्होंने युवाओं के प्रदर्शन का न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि सरकार की तरफ से प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग के आदेश के बाद खुद सड़कों पर उतर कर आंदोलन में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने सरकार की कार्रवाई को 'हत्या' करार दिया।बताया गया है कि युवाओं ने प्रदर्शन रोकने के बाद सुशीला कार्की को अंतरिम तौर पर नेपाल की सत्ता सौंपने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया। दरअसल, कार्की ने कहा था कि अगर 1000 युवा उनके पक्ष में हस्ताक्षर करेंगे तो ही वे सरकार की जिम्मेदारी संभालेंगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके पक्ष में 2500 से ज्यादा वोट पड़े।
भारत के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से की पढ़ाई
कार्की का जन्म सात जून 1952 को विराटनगर में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके अलावा उन्होंने कानून की पढ़ाई नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सटी से की। इसके बाद वकालत और कानूनी सुधारों के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत की। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक मामलों की सुनवाई की, जिनमें चुनावी विवाद भी शामिल थे।
कार्की का जन्म सात जून 1952 को विराटनगर में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके अलावा उन्होंने कानून की पढ़ाई नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सटी से की। इसके बाद वकालत और कानूनी सुधारों के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत की। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक मामलों की सुनवाई की, जिनमें चुनावी विवाद भी शामिल थे।