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Nepal Unrest: क्या नेपाल में होगी राजशाही की वापसी, अभी कहां है काठमांडू का राजपरिवार?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, काठमांडू Published by: नितिन गौतम Updated Wed, 10 Sep 2025 10:41 AM IST
सार

मार्च में, राजशाही समर्थक प्रदर्शनों में भारी भीड़ उमड़ी और 'राजा वापस आओ, देश बचाओ' जैसे नारे लगाए गए। राजशाही के समर्थन में नारों के बीच प्रदर्शनकारियों ने ओली के इस्तीफे की मांग की। इस दौरान हुई हिंसा में दो लोग मारे गए थे और सैंकड़ों घायल हुए थे। 

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नेपाल में राजशाही की मांग नए पकड़ा जोर - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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नेपाल में तख्तापलट के बाद सेना मोर्चा संभाल चुकी है और हालात को सामान्य करने की कोशिश हो रही है। साथ ही ये सवाल उठ रहा है कि नेपाल के लिए अब आगे की राह क्या है? हाल के समय में जिस तरह से नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग उठी है, उसे देखते हुए ये भी माना जा रहा है कि नेपाल फिर से राजशाही के रास्ते पर लौट सकता है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में बीते मार्च में ही राजशाही की वापसी और हिंदू राज्य की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए थे। नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र सिंह भी खासे सक्रिय दिखाई दिए। तो आइए जानते हैं कि नेपाल का शाही परिवार अभी कहां है और क्या कर रहा है-
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पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह
साल 2008 में राजशाही के खत्म होने के बाद से पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह एक आम नागरिक की तरह देश में रह रहें हैं। ज्ञानेंद्र शाह का मुख्य निवास काठमांडू में निर्मल निवास है, लेकिन साल 2024 की शुरुआत में, वे कथित तौर पर शहर के बाहरी इलाके, नागार्जुन पहाड़ियों में, हेमंताबास नामक फार्म हाउस नुमा घर में रह रहे थे।
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मार्च में, ज्ञानेंद्र शाह पोखरा से काठमांडू लौटे और हजारों राजशाही समर्थकों ने उनका स्वागत किया। उन्हें और उनके परिवार को निर्मल निवास ले जाया गया। मई में, उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों और अपने पोते हृदयेंद्र के साथ नारायणहिती शाही महल का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान, शाही परिवार ने महल परिसर में पूजा भी की।

ज्ञानेंद्र शाह की बढ़ी सक्रियता
पोखरा में रहने के दौरान पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने एक दर्जन से ज्यादा मंदिरों और तीर्थस्थलों का दौरा किया और जनता का मूड भांपने की कोशिश की। माना गया कि ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में वापसी करना चाहते हैं। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) भी राजशाही की वापसी और नेपाल में सत्ता परिवर्तन की मांग का समर्थन कर रही है। आरपीपी का मानना है कि नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र एक-दूसरे के पूरक हैं।

राजमाता रत्ना
राजमाता रत्ना पूर्व शाही महल परिसर महेंद्र मंजिल में रहती हैं। राजपरिवार के युवा सदस्य नेपाल छोड़कर विदेश में रहते हैं। पूर्व युवराज पारस और राजकुमारी हिमानी की बेटी, राजकुमारी कृतिका शाह, जुलाई 2008 में नेपाल छोड़कर अपने परिवार समेत सिंगापुर में बस गईं। उनकी बड़ी बहन, राजकुमारी पूर्णिका शाह, भी 2008 से नेपाल छोड़कर सिंगापुर में रह रही हैं।

ये भी पढ़ें- Nepal: युवाओं का आंदोलन.. अति आक्रामकता से दबाने में गंवाई ओली ने पीएम की कुर्सी, नेपाल में बवाल की पूरी कहानी

नेपाल में इस साल हुए राजशाही समर्थक प्रदर्शन
मार्च में, राजशाही समर्थक प्रदर्शनों में भारी भीड़ उमड़ी और 'राजा वापस आओ, देश बचाओ', 'राजा के लिए शाही महल खाली करो', 'हमारे प्यारे राजा अमर रहें, हम राजतंत्र चाहते हैं'...जैसे नारे लगाए गए। राजशाही के समर्थन में नारों के बीच प्रदर्शनकारियों ने ओली के इस्तीफे की मांग की। कुछ लोगों ने शाही महल परिसर में घुसने की कोशिश की, और पुलिस के साथ झड़पों में दो लोगों की मौत भी हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।

मई में, नवराज सुबेदी के नेतृत्व में राजशाही समर्थक समूहों ने देशव्यापी विरोध अभियान शुरू किया। सरकार ने हालात को देखते हुए जुलाई तक नारायणहिती पैलेस सहित प्रमुख क्षेत्रों के आसपास प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया। सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल पार्टी ने नेपाल में गणतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के लिए राजशाही समर्थक प्रदर्शनों के जवाब में प्रदर्शन किए।

कैसे भड़का नेपाल की जनता का गुस्सा?
दरअसस नेपाल में राजशाही की समाप्ति और लोकतंत्र की बहाली से देश के युवा वर्ग को उम्मीद थी कि उनका जीवन पहले से बेहतर होगा, लेकिन नेपाल की विभिन्न लोकतांत्रिक सरकारें लोगों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकीं। साथ ही बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने लोगों को निराश किया तो भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति ने जनता के गुस्से को और बढ़ा दिया। हाल ही में जैसे ही नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का एलान किया, वैसे ही लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और युवा वर्ग सड़कों पर उतर आया। सरकार ने सख्ती से निपटने की कोशिश की, जिसमें 19 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद मंगलवार को जनता का आक्रोश दिखा और सरकार को न सिर्फ सत्ता से बेदखल किया बल्कि संसद भवन, सिंह दरबार जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं में भी आग लगा दी। 



 
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