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क्या है पंचशील समझौता: जयशंकर कर चुके हैं इसकी आलोचना, PM मोदी-जिनपिंग की बैठक के बाद चीन ने क्यों किया जिक्र?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Sun, 31 Aug 2025 09:15 PM IST
सार
चीन की तरफ से पंचशील का जिक्र किए जाने के बाद यह जानना जरूरी है कि आखिर दोनों देशों के बीच यह समझौता क्या है? भारत-चीन के रिश्तों के संबंध में इसका जिक्र पहले कब हुआ है? हालिया समय में भारत ने इसे लेकर क्या कहा है? आइये जानते हैं...
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शी जिनपिंग की पीएम मोदी से मुलाकात
- फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (31 अगस्त) को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों के नेताओं ने सीमा विवाद से आगे बढ़ने और अलग-अलग क्षेत्रों में एक-दूसरे के लिए नए मौके बनाने पर सहमति जताई। इस दौरान मोदी-जिनपिंग में द्विपक्षीय रिश्तों को अक्तूबर 2024 में रूस के कजान में हुई मुलाकात के आधार पर स्थिरता से आगे बढ़ाने पर भी सहमति बनी।
भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, बैठक के दौरान दोनों नेताओं में यह भी सहमति बनी कि दोनों देश एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी न होकर दोस्त हैं और कोई भी मतभेद विवाद में नहीं बदलने चाहिए। दूसरी तरफ चीन की तरफ से जारी बयान में पंचशील समझौते का जिक्र किया गया। चीन ने कहा कि भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए पांच सिद्धांत, जिनका जिक्र 70 साल तक भारत और चीन की पुरानी पीढ़ियां भी करती थीं, उसे पोषित और प्रचारित किया जाना चाहिए।
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भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, बैठक के दौरान दोनों नेताओं में यह भी सहमति बनी कि दोनों देश एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी न होकर दोस्त हैं और कोई भी मतभेद विवाद में नहीं बदलने चाहिए। दूसरी तरफ चीन की तरफ से जारी बयान में पंचशील समझौते का जिक्र किया गया। चीन ने कहा कि भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए पांच सिद्धांत, जिनका जिक्र 70 साल तक भारत और चीन की पुरानी पीढ़ियां भी करती थीं, उसे पोषित और प्रचारित किया जाना चाहिए।
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चीन की तरफ से पंचशील का जिक्र किए जाने के बाद यह जानना जरूरी है कि आखिर दोनों देशों के बीच यह समझौता क्या है? भारत-चीन के रिश्तों के संबंध में इसका जिक्र पहले कब हुआ है? हालिया समय में भारत ने इसे लेकर क्या कहा है? आइये जानते हैं...
पहले जानें- क्या है पंचशील समझौता, इसके पांच सिद्धांत क्या?
1947 में भारत के आजाद होने और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के गठन के बाद दोनों देशों ने आपसी संबंधों के लिए कुछ मानक तय किए। हालांकि, तिब्बत दोनों देशों के बीच में विवाद का केंद्र रहा। इस मसले पर कई चरणों की बातचीत के बाद 29 अप्रैल 1954 को व्यापार पर समझौते हुए। इसके अलावा चीन और भारत के बीच तिब्बत क्षेत्र से संपर्क के रास्ते भी खुले। यहीं से जन्म हुआ पंचशील यानी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों का।
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1947 में भारत के आजाद होने और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के गठन के बाद दोनों देशों ने आपसी संबंधों के लिए कुछ मानक तय किए। हालांकि, तिब्बत दोनों देशों के बीच में विवाद का केंद्र रहा। इस मसले पर कई चरणों की बातचीत के बाद 29 अप्रैल 1954 को व्यापार पर समझौते हुए। इसके अलावा चीन और भारत के बीच तिब्बत क्षेत्र से संपर्क के रास्ते भी खुले। यहीं से जन्म हुआ पंचशील यानी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों का।
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पंचशील समझौते को लागू करने का कुछ श्रेय भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जाता है, जिन्होंने इन सिद्धांतों को चीन के सामने रखा। हालांकि, कई विशेषज्ञों का मानना है कि पंचशील की नींव चीन के पहले प्रधानमंत्री झू एनलाई ने रखी थी और एक अलग मौके पर नेहरू ने भी इससे मिलते-जुलते विचार पेश किए थे।
नेहरू ने सितंबर 1955 में लोकसभा में पंचशील का जिक्र करते हुए कहा था कि पंचशील का सार अपनी स्वतंत्र नीति का पालन करना और सभी के साथ मित्रता का व्यवहार रखना है। साथ ही अपना रास्ता चुनने का अधिकार सुरक्षित रखना है। हम हर तरह के जुड़ाव और मित्रता का स्वागत करते हैं, लेकिन अपना खुद का रास्ता चुनने का पूरा अधिकार रखते हैं। यही पंचशील का सार है।
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नेहरू ने सितंबर 1955 में लोकसभा में पंचशील का जिक्र करते हुए कहा था कि पंचशील का सार अपनी स्वतंत्र नीति का पालन करना और सभी के साथ मित्रता का व्यवहार रखना है। साथ ही अपना रास्ता चुनने का अधिकार सुरक्षित रखना है। हम हर तरह के जुड़ाव और मित्रता का स्वागत करते हैं, लेकिन अपना खुद का रास्ता चुनने का पूरा अधिकार रखते हैं। यही पंचशील का सार है।
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पंचशील के सिद्धांतों ने कैसे बनाई पूरी दुनिया में जगह?
दुनिया में अमेरिका-रूस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में पंचशील का जिक्र होने लगा था। विदेश मंत्रालय की तरफ से पंचशील समझौते के 50 साल पूरे होने के मौके पर जारी दस्तावेज के मुताबिक, अप्रैल 1955 में जब 29 अफ्रीकी-एशियाई देशों के बीच बानदुंग में कॉन्फ्रेंस हुई थी, तब इसके घोषणापत्र में पंचशील के सिद्धांतों को अंतरराष्ट्रीय शांति और सहयोग के 10 सिद्धांतों में शामिल किया गया था। भारत, युगोस्लाविया और स्वीडन ने इसे लेकर एक प्रस्ताव भी दिया था, जिसे 11 दिसंबर 1957 को सर्वसम्मति से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्वीकार किया था। 1961 में गुटनिरपेक्ष देशों की बेलग्रेड में हुए सम्मेलन में पंचशील को गुटनिरपेक्ष आंदोलन के केंद्रीय सिद्धांत के तौर पर मान्यता मिली थी।
दुनिया में अमेरिका-रूस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में पंचशील का जिक्र होने लगा था। विदेश मंत्रालय की तरफ से पंचशील समझौते के 50 साल पूरे होने के मौके पर जारी दस्तावेज के मुताबिक, अप्रैल 1955 में जब 29 अफ्रीकी-एशियाई देशों के बीच बानदुंग में कॉन्फ्रेंस हुई थी, तब इसके घोषणापत्र में पंचशील के सिद्धांतों को अंतरराष्ट्रीय शांति और सहयोग के 10 सिद्धांतों में शामिल किया गया था। भारत, युगोस्लाविया और स्वीडन ने इसे लेकर एक प्रस्ताव भी दिया था, जिसे 11 दिसंबर 1957 को सर्वसम्मति से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्वीकार किया था। 1961 में गुटनिरपेक्ष देशों की बेलग्रेड में हुए सम्मेलन में पंचशील को गुटनिरपेक्ष आंदोलन के केंद्रीय सिद्धांत के तौर पर मान्यता मिली थी।
पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात
- फोटो : PTI
पंचशील से कैसे चले हैं भारत-चीन के रिश्ते?
1962 आते-आते खुद भारत और चीन के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हो गए और चीन ने इन सिद्धांतों को किनारे करते हुए भारत पर हमला कर दिया। चीन के इस रवैये ने भारत को चौंका दिया और दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। इसके बाद अलग-अलग मौकों पर दोनों देश प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरे। हालांकि, भारत और चीन लगातार पंचशील समझौते का जिक्र करते रहे हैं।
1962 आते-आते खुद भारत और चीन के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हो गए और चीन ने इन सिद्धांतों को किनारे करते हुए भारत पर हमला कर दिया। चीन के इस रवैये ने भारत को चौंका दिया और दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। इसके बाद अलग-अलग मौकों पर दोनों देश प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरे। हालांकि, भारत और चीन लगातार पंचशील समझौते का जिक्र करते रहे हैं।
चीन की तरफ से हर बार टकराव के बाद पंचशील का जिक्र क्यों?
चौंकाने वाली बात यह है कि हालिया वर्षों में भारत से तनाव के समय चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पंचशील समझौते का जिक्र करते जरूर दिखते हैं। 2017 में डोकलाम क्षेत्र में जब चीन की सेना कब्जा करने के इरादे से पहुंची थी, तो भारत से उसका आमना-सामना हुआ था। हालांकि, तनाव थमने के बाद चीनी राष्ट्रपति ने कहा था कि वह भारत के साथ पंचशील समझौते के तहत काम करना चाहते हैं।
इसी तरह दोनों देशों की सेनाओं के बीच 2020 में गलवां घाटी में हुई झड़प के बाद जब रिश्ते तनावपूर्ण रहे, तब कई बार पंचशील सिद्धांतों का जिक्र किया गया। यहां तक कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जून 2024 में भारत से रिश्ते बेहतर करने के लिए पंचशील का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था, "ये वही सिद्धांत हैं, जिनके आधार पर भारत अपनी विदेश नीति और पड़ोसियों के साथ संबंध रखता है। मौजूदा वैश्विक संघर्षों को समाप्त करने और पश्चिम के साथ वैश्विक दक्षिण के टकराव को खत्म करने में पंचशील की अहम भूमिका है।"
चौंकाने वाली बात यह है कि हालिया वर्षों में भारत से तनाव के समय चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पंचशील समझौते का जिक्र करते जरूर दिखते हैं। 2017 में डोकलाम क्षेत्र में जब चीन की सेना कब्जा करने के इरादे से पहुंची थी, तो भारत से उसका आमना-सामना हुआ था। हालांकि, तनाव थमने के बाद चीनी राष्ट्रपति ने कहा था कि वह भारत के साथ पंचशील समझौते के तहत काम करना चाहते हैं।
इसी तरह दोनों देशों की सेनाओं के बीच 2020 में गलवां घाटी में हुई झड़प के बाद जब रिश्ते तनावपूर्ण रहे, तब कई बार पंचशील सिद्धांतों का जिक्र किया गया। यहां तक कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जून 2024 में भारत से रिश्ते बेहतर करने के लिए पंचशील का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था, "ये वही सिद्धांत हैं, जिनके आधार पर भारत अपनी विदेश नीति और पड़ोसियों के साथ संबंध रखता है। मौजूदा वैश्विक संघर्षों को समाप्त करने और पश्चिम के साथ वैश्विक दक्षिण के टकराव को खत्म करने में पंचशील की अहम भूमिका है।"
पंचशील पर बदल गई है भारत की राय?
चीन से इतर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीते साल पंचशील समझौते की आलचोना की थी। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चीन नीति पर भी सवाल उठाए थे और कहा था कि बीजिंग से रिश्ते हकीकत के आधार पर होने चाहिए।
भारत के विदेश मंत्री ने कहा था कि पूर्व में ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिन्हें आज समझना बहुत मुश्किल है। पंचशील समझौता भी इसका उदाहरण है। हम सदियों पुरानी सभ्यताएं हैं और जब हम एक दूसरे से रिश्तें आगे बढ़ाएं तो इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की चीन नीति को व्यवहारिक करार दिया था।
चीन से इतर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीते साल पंचशील समझौते की आलचोना की थी। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चीन नीति पर भी सवाल उठाए थे और कहा था कि बीजिंग से रिश्ते हकीकत के आधार पर होने चाहिए।
भारत के विदेश मंत्री ने कहा था कि पूर्व में ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिन्हें आज समझना बहुत मुश्किल है। पंचशील समझौता भी इसका उदाहरण है। हम सदियों पुरानी सभ्यताएं हैं और जब हम एक दूसरे से रिश्तें आगे बढ़ाएं तो इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की चीन नीति को व्यवहारिक करार दिया था।