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फ्रांस में परेशानी: स्थानीय चुनाव में इतने कम वोट क्यों पड़े, इमैनुएल मैक्रों की पार्टी की हुई करारी हार
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, पेरिस
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 21 Jun 2021 05:32 PM IST
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सार
फ्रांस में स्थानीय प्रशासन को काफी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। क्षेत्रीय परिषदों के पास अरबों यूरो का बजट होता है। अपने इलाके में स्कूल और परिवहन संचालन और आर्थिक विकास की योजनाओं को लागू करने का अधिकार उन्हें ही होता है...

ली पेन और मैक्रोन
- फोटो : Agency (File Photo)
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विस्तार
फ्रांस के स्थानीय चुनावों में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी को करारी मुंह की खानी पड़ी है। उसके लिए संतोष की बात सिर्फ इतनी रही है कि धुर दक्षिणपंथी नेता मेरी ली पेन की नेशनल रैली पार्टी को भी इन चुनावों में उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली। ज्यादा सफलता परंपरागत कंजरवेटिव पार्टी- लेस रिपब्लिकन्स को मिली है।

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मतदान खत्म होने के बाद जब एग्जिट पोल के नतीजे जारी हुए, तब एक टीवी डिबेट में मैक्रों की मध्यमार्गी पार्टी ला रिपब्लिक एन मार्श (एलआरईएम) के एक सांसद ने कहा कि चुनाव नतीजे उनकी पार्टी के गाल पर तमाचा हैं। राष्ट्रपति की सबसे बड़ी नाकामी इसे माना जा रहा है कि वे मतदाताओं को मतदान के लिए उत्साहित नहीं कर पाए। कुल मतदान सिर्फ 32 फीसदी रहा। इतना कम मतदान आधुनिक फ्रांस के इतिहास में कभी नहीं हुआ था।
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चुनाव के पहले ये अनुमान लगाया था कि ली पेन की पार्टी किसी एक या अधिक क्षेत्रों में स्पष्ट जीत हासिल कर सकती है। लेकिन उसे ऐसी सफलता नहीं मिली। सबसे ज्यादा कामयाबी लेस रिपब्लिकन्स को मिली, जिसे 29.3 फीसदी वोट हासिल हुए। ली पेन की नेशनल रैली पार्टी को 19.1 और पूर्व सत्ताधारी सोशलिस्ट पार्टी को 16.6 प्रतिशत वोट मिले। मैक्रों की पार्टी एलआरईएम महज 10.9 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई। इसे ही देखते हुए पार्टी के सांसद ऑरोरे बर्ज ने कहा- ‘जो हुआ है, उसे कम करके देखने की कोशिश मैं नहीं करूंगा। यह नतीजा हमारे गाल पर जनता का एक तमाचा है।’
इसके पहले क्षेत्रीय चुनाव 2015 में हुए थे। तब 50 फीसदी मतदान हुआ था। 2010 के चुनावों में 53.7 फीसदी वोट पड़े थे। इस तरह ये लगातार दूसरा मौका है, जब मतदान प्रतिशत में गिरावट आई है। विश्लेषकों के मुताबिक फ्रांस इस समय जैसे राजनीतिक संकट में है, यह सीधे तौर पर उसका ही असर है। उनके मुताबिक यह राजनीतिक पार्टियों में लोगों के घटते भरोसे की एक मिसाल है।
चुनाव फ्रांस के कुल 14 क्षेत्रों और 96 विभागों के लिए कराए गए थे। फ्रांस में स्थानीय प्रशासन को काफी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। क्षेत्रीय परिषदों के पास अरबों यूरो का बजट होता है। अपने इलाके में स्कूल और परिवहन संचालन और आर्थिक विकास की योजनाओं को लागू करने का अधिकार उन्हें ही होता है। इस बार कुल 4,108 सीटों के लिए वोट पड़े। इनके लिए 15,786 उम्मीदवार मैदान में थे। ये चुनाव दो चरणों में पूरा होते हैं। अगले चरण के लिए मतदान 27 जून को होगा।
पहले अनुमान लगाया गया था कि इन चुनावों से अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के बारे में कुछ संकेत मिलेंगे। लेकिन जानकारों के मुताबिक मतदान प्रतिशत इतना कम रहा कि अब वैसा कोई अनुमान लगाना कठिन है। समझा जाता है कि अगले साल राष्ट्रपति चुनाव में मुख्य मुकाबला राष्ट्रपति मैक्रों और ली पेन के बीच होगा। इन चुनावों में इन दोनों पार्टियों की उम्मीदों को झटका लगा है। चुनाव नतीजों का संकेत उभरने के बाद ली पेन ने कहा- ‘हमारे मतदाता वोट डालने नहीं आए।’
फ्रांस की चुनाव प्रणाली के मुताबिक क्षेत्रीय चुनाव में पार्टियां अपने उम्मीदवारों की एक सूची जारी करती हैं। मतदान में जिस पार्टी को जितना वोट मिलता है, उसके अनुपात में उसे निर्वाचित संस्था में सीटें आवंटित की जाती हैं। जो पार्टियां 10 फीसदी से अधिक वोट हासिल करने में सफल रहती हैं, उन्हें दूसरे चरण का चुनाव लड़ने की अनुमति मिलती है। दूसरे चरण से पहले कुछ पार्टियां गठबंधन बना सकती हैँ। अब देखने की बात होगी कि क्या मुख्यधारा पार्टियां पिछले राष्ट्रपति चुनाव की तरह ऐसा गठबंधन बनाती हैं, जिसका मकसद ली पेन की पार्टी को जीतने से रोकना होगा।