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फ्रांस: वर्तमान में पिटते मैक्रों को इतिहास का सहारा, नेपोलियन की विरासत का किया समर्थन
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, पेरिस
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 06 May 2021 02:38 PM IST
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सार
मैक्रों ने कहा, नेपोलियन की जिंदगी राजनीतिक इच्छाशक्ति की दास्तां है। एक साधारण पृष्ठभूमि से आया बच्चा यूरोप का स्वामी बन गया। यह साफ तौर पर दिखाता है कि मनुष्य इतिहास की धारा बदल सकता है...

इमैनुएल मैक्रों
- फोटो : Agency (File Photo)
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विस्तार
फ्रांस की मौजूदा मुश्किलों के बीच अपनी लोकप्रियता में गिरावट पर लगाम लगाने के लिए राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इतिहास का सहारा लिया है। बुधवार को उनकी सरकार ने नेपोलियन की 200वीं पुण्यतिथि पूरे धूमधाम से मनाई। विश्लेषकों ने कहा कि अब राष्ट्रपति मैक्रों ने नेपोलियन से जुड़े विवादों को दरकिनार कर उसकी विरासत को पूरी तरह गले लगा लिया है। मैक्रों ने फ्रांस की आधुनिक संस्थाओं की स्थापना का श्रेय नेपोलियन को दिया।

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लेकिन नेपोलियन पर 1789 की फ्रांस की क्रांति के बाद देश को फिर से साम्राज्यवादी रास्ते पर ले जाने और गुलामी प्रथा को बहाल करने के आरोप रहे हैं। फ्रांस की क्रांति के बाद फ्रांस के सभी उपनिवेशों में गुलामी प्रथा चलाने को ‘राजद्रोह’ घोषित कर दिया गया था। लेकिन नेपोलियन ने उसने 1802 में फिर से गुलामी प्रथा को वैध बना दिया। विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि जो नजरिया मैक्रों ने नेपोलियन की विरासत के बारे में अपनाया है, उनका वैसा ही रुख अल्जीरिया में औपनिवेशिक अत्याचारों और रुवांडा के नरसंहार के बारे में भी है।
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अल्जीरिया फ्रांस का गुलाम था। उसकी आजादी की लड़ाई के दौरान फ्रांस के अत्याचारों को लेकर फ्रांस के जागरूक तबकों में अपराध बोध रहा है। इसी तरह रुवांडा के नरसंहार में फ्रांस की भूमिका की आलोचना होती रही है। लेकिन अब मैक्रों सरकार देश के दक्षिणपंथी समूहों को संतुष्ट करने के लिए इन मामलों में उग्र राष्ट्रवादी नजरिये को मान्यता दे रहे हैं। मैक्रों ने गुलामों के व्यापारी और नस्लभेद के प्रतीक शख्सियतों की मूर्तियों को गिराने की मांग भी ठुकरा दी है। पिछले साल ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के दौरान ये मांग जोर-शोर से उठी थी। तब ब्रिटेन और अमेरिका में ऐसी कई मूर्तियां गिराई गई थीं।
फ्रांस में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होना है। इससे पहले मैक्रों की लोकप्रियता लगातार गिर रही है। धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी की नेता मेरी ली पेन ने जनमत सर्वेक्षणों में लगातार बढ़त बना रखी है। विश्लेषकों का कहना है कि इसीलिए मैक्रों अधिक से अधिक दक्षिणपंथी रुख अपनाते जा रहे हैं, ताकि वे ली पेन के समर्थन आधार में सेंध लगा सकें। इसी सिलसिले में उन्होंने नेपोलियन की दौ सौवीं पुण्यतिथि को बड़े पैमाने पर मनाया। फ्रेंच जनमत के कंजरवेटिव हिस्से में नेपोलियन के दौर को फ्रांस के स्वर्ण युग के रूप में देखा जाता है।
ली पेन और कंजरवेटिव नेता जैवियर बर्तरां ने आरोप लगाया है कि मैक्रों उन लोगों के सामने समर्पण कर रहे हैं, जो उपनिवेशवाद और गुलामी प्रथा के मुद्दों को फ्रांस की आलोचना के लिए हथियार बनाना चाहते हैँ। यानी इन मुद्दों से फ्रांस के आलोचकों को नया बल मिलेगा। चर्चा है कि बर्तरां भी राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी पेश कर सकते हैं।
लेकिन मैक्रों ने कहा है कि वे ‘फ्रांस के इतिहास के हर हिस्से’ को स्वीकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा- नेपोलियन की जिंदगी राजनीतिक इच्छाशक्ति की दास्तां है। एक साधारण पृष्ठभूमि से आया बच्चा यूरोप का स्वामी बन गया। यह साफ तौर पर दिखाता है कि मनुष्य इतिहास की धारा बदल सकता है। उन्होंने कहा- हम नेपोलियन को पसंद करते हैं, क्योंकि उसका जीवन संभावनाओं को हासिल करने की कथा है। वह जोखिम उठाने के लिए एक आमंत्रण है।
विश्लेषकों का कहना है कि नेपोलियन की विरासत को गले लगा कर मैक्रों ने एक बड़ा जोखिम उठाया है। उनके समर्थकों में ऐसे लोग भी शामिल रहे हैं, नेपोलियन के बारे में नकारात्मक राय रखते हैँ। मैक्रों सरकार ने लैंगिक समानता और समान अवसर विभाग की मंत्री वेद्रां एलिजाबेथ मोरेनो ने कहा- नेपोलियन सबसे बड़े स्त्री-द्रोहियों में एक था। उसके शासनकाल में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दोयम दर्जे को कानूनी मान्यता दी गई। उसने गुलामी प्रथा को बहाल किया।
फ्रेंच मीडिया की खबरों के मुताबिक मैक्रों के कार्यालय में भी नेपोलियन की पुण्यतिथि मनाने को लेकर मतभेद थे। लेकिन इसे बड़े पैमाने पर मनाने का फैसला मैक्रों ने किया। इसको लेकर उन देशों में गहरी नाराजगी है, जिन पर नेपोलियन के हमलों के दौरान क्रूरता से पेश आया गया था। लेखक और राजनीति शास्त्री लुई जोर्जिस तिन ने एक लेख में सवाल उठाया है- ‘आप ऐसे व्यक्ति से संबंधित उत्सव कैसे मना सकते हैं, जो फ्रेंच गणराज्य, कई यूरोपीय देशों, और मानवता का दुश्मन था। जो गुलामी प्रथा को सही मानता था।’