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Queen Elizabeth Death: ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें महारानी एलिजाबेथ के निधन पर दुख नहीं हुआ!

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, लंदन Published by: Harendra Chaudhary Updated Tue, 13 Sep 2022 03:48 PM IST
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सार

Queen Elizabeth Death: एलिजाबेथ की मृत्यु के दिन से ही दुनिया भर में सोशल मीडिया ब्रिटिश साम्राज्य के दिनों में उपनिवेश बने देश में हुई लूट की चर्चा से भरा रहा है। इसमें ये ध्यान भी दिलाया गया है कि जब अंग्रेज भारत पहुंचे, तब दुनिया के जीडीपी में भारत का योगदान 27 फीसदी था...

Queen Elizabeth Death: there were many people who  not saddened by her death
Queen Elizabeth Death - फोटो : Agency
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विस्तार
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स्कॉटलैंड के शहर एडिनबरा में एक युवती की गिरफ्तारी ने ब्रिटेन में राज परिवार को लेकर मौजूद भावना के बारे में तीखी बहस छेड़ दी है। इस महिला को एक प्लेकार्ड लेकर चलने के लिए गिरफ्तार किया गया, जिस पर लिखा था- ‘साम्राज्यवाद को लानत है, राजतंत्र को खत्म करो।’ पुलिस ने उस 22 वर्षीया युवती पर शांति भंग करने का आरोप लगाया है।

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इस घटना ने एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जताई विभिन्न प्रकार की भावनाओं को चर्चा में ला दिया है। एलिजाबेथ जब 1952 में रानी बनी थीं, तब दुनिया की आबादी का एक चौथाई हिस्सा ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर आता था। उनका 70 वर्षों का कार्यकाल ब्रिटिश साम्राज्य के सिकुड़ने का काल रहा। लेकिन जानकारों का कहना है कि ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों को लोग आज भी नहीं भूले हैं।

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अमेरिका की वैंडरबिट यूनिवर्सिटी में अफ्रीकी अध्ययन के प्रोफेसर मोजेज ओचनू ने कहा है- ‘ऐसी एक मौजूद भावना है कि उसके अपराधों ब्रिटेन की कभी पूरी तरह जवाबदेही तय नहीं की गई।’ ओचनू ने अमेरिकी प्रसारण संस्था एनपीआर से बातचीत में कहा कि एलिजाबेथ के कार्यकाल में 20 से ज्यादा देश ब्रिटिश गुलामी से आजाद हुए। उन्होंने कहा- ‘इस तरह उनकी दोहरी छवि बनती है। उन्हें उपनिवेशवाद का चेहरा भी माना जाता है और उपनिवेशवाद खत्म होने का प्रतीक भी।’

नाईजीरिया में जन्मे ओचनू ने कहा कि एलिजाबेथ की यादों के साथ उपनिवेश रहे देशों में इस बात को लेकर गुस्सा मौजूद है कि उन देशों को आजादी पाने के लिए कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इसलिए ओचनू की राय में एलिजाबेथ की मृत्यु शोक का नहीं, बल्कि उन बातों पर गंभीरता से विचार करने का मौका है।

एलिजाबेथ की मृत्यु के दिन से ही दुनिया भर में सोशल मीडिया ब्रिटिश साम्राज्य के दिनों में उपनिवेश बने देश में हुई लूट की चर्चा से भरा रहा है। इसमें ये ध्यान भी दिलाया गया है कि जब अंग्रेज भारत पहुंचे, तब दुनिया के जीडीपी में भारत का योगदान 27 फीसदी था। लेकिन जब वे यहां से गए, तो ये योगदान सिर्फ तीन फीसदी बचा था।

अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोंसिन-मैडिसन में दक्षिण एशियाई इतिहास की प्रोफेसर माउ बनर्जी ने कहा है- ‘उन्होंने जो लंबी सेवा की उसके लिए हम उनका सम्मान कर सकते हैं, लेकिन दक्षिण एशिया को गुलाम बनाने की घटना से अलग करके उन्हें नहीं देखा जा सकता।’ भारत में जन्मी बनर्जी ने कहा है कि भारत में बहुत से लोगों को ये उम्मीद थी कि एलिजाबेथ उपनिवेशवाद के कारण वहां हुए नुकसान के लिए पछतावा जाहिर करेंगी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। 1997 में वे आखिरी बार भारत गई थीं। तब जलियांवाला बाग कांड के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था- ‘इतिहास को दोबारा नहीं लिखा जा सकता।’

यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट इंडीज में सेंटर फॉर जेंडर और डेवलपमेंट स्टडीज के पूर्व निदेशक ओपल पाल्मर एडिसा ने कहा है कि ब्रिटेन ने अफ्रीकी प्रवासियों से आज तक माफी नहीं मांगी है। जबकि ब्रिटेन 22 लाख अफ्रीकियों को गुलाम बना कर जबरन वेस्ट इंडीज के द्वीपों में ले गया था। उधर, ब्रिटेन में ये सवाल सोशल मीडिया में जोरदार ढंग से उठाया गया है कि लोकतंत्र के इस दौर में आखिर ब्रिटिश राजतंत्र का वजूद आज भी क्यों बना हुआ है?

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