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SCO Summit: 'क्षेत्रीय शांति व स्थिरता को बनाए रखने में एससीओ की अहम भूमिका', वैश्विक नेताओं से बोले जिनपिंग
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तियानजिन
Published by: बशु जैन
Updated Mon, 01 Sep 2025 04:18 AM IST
सार
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बंदरगाह शहर तिनजियान में जुटे विश्व नेताओं के लिए विशाल भोज का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि एससीओ सुरक्षा मंच पर क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की रक्षा करने के साथ अपने सदस्य देशों के विकास व समृद्धि को बढ़ावा देने की अधिक जिम्मेदारी है।
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शी जिनपिंग
- फोटो : ANI
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विस्तार
चीन की मेजबानी में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन रविवार शाम तिनजियान में औपचारिक तौर पर शुरू हो गया। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बंदरगाह शहर तिनजियान में जुटे विश्व नेताओं के लिए विशाल भोज का आयोजन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा, एससीओ सुरक्षा मंच पर क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की रक्षा करने के साथ अपने सदस्य देशों के विकास व समृद्धि को बढ़ावा देने की अधिक जिम्मेदारी है।
जिनपिंग ने स्वागत भोज में कहा कि मौजूदा एससीओ शिखर सम्मेलन सभी पक्षों के बीच आम सहमति बनाने और सहयोग को गति देने के महत्वपूर्ण मिशन पर केंद्रित है। जिनपिंग ने कहा, क्षेत्रीय शांति व स्थिरता की रक्षा करने और वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती अनिश्चितताओं को देखते हुए एससीओ की जिम्मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं।
उन्होंने विश्वास जताया कि सभी पक्षों के साझा प्रयासों से, शिखर सम्मेलन सफल होगा और एससीओ निश्चित तौर पर और भी बड़ी भूमिका निभाएगा और अधिक प्रगति हासिल करेगा। जिनपिंग ने कहा, यह संगठन सदस्य देशों के बीच एकता और सहयोग को बढ़ावा देने, वैश्विक दक्षिण की ताकत को एकजुट करने और मानव सभ्यता की और अधिक प्रगति को आगे बढ़ाने में और बड़ा योगदान देगा।
गौरतलब है कि जून, 2001 में शंघाई में स्थापित एससीओ छह संस्थापक सदस्यों से बढ़कर 26 देशों के परिवार में बदल चुका है, जिसमें 10 सदस्य देश, दो पर्यवेक्षक और एशिया, यूरोप और अफ्रीका में फैले 14 संवाद साझेदार शामिल हैं। एजेंसी
दुनियाभर के नेता आज करेंगे वैश्विक मुद्दों पर मंथन
शिखर सम्मेलन में परस्पर संवाद का मुख्य आयोजन सोमवार को होगा, जिसमें 10 सदस्य देशों के साथ ही आमंत्रित वैश्विक नेता तमाम अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी-अपनी बात रखेंगे। चीन ने इस बार सदस्य देशों के अलावा 20 विदेशी नेताओं और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस सहित 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों को आमंत्रित किया है।
मोदी के भाषण पर टिकीं नजरें
एससीओ शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी के भाषण पर दुनियाभर की उत्सुकता से नजरें टिकी हुई हैं। इस सम्मेलन से सदस्य देशों के संबंधों के लिए एक नया रोडमैप तैयार होने की व्यापक उम्मीद है। प्रमुख उभरते बाजारों और चीन, रूस और भारत जैसे विकासशील देशों के साथ एससीओ दुनिया की लगभग आधी आबादी और वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक-चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। सदस्य देशों से अगले दशक के लिए संगठन की विकास रणनीति सहित प्रमुख दस्तावेज को अपनाने की उम्मीद है।
एससीओ सम्मेलन से रुतबा बढ़ाने की कोशिश में जिनपिंग
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक को चीन दुनिया में अपना रुतबा बढ़ाने और अमेरिकी वर्चस्व को कमतर करने के मौके के तौर पर भी देख रहा है। तियानजिन की बैठक को चीन एससीओ के इतिहास का सबसे बड़ा सम्मेलन बता रहा है। रूसी राष्ट्रपति समेत 20 देशों के शासनाध्यक्षों की मौजूदगी, सम्मेलन के बाद सैन्य परेड व गौरवशाली इतिहास का इस्तेमाल चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने में करेंगे। शी के लिए भी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ दुनिया में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता।
विश्लेषकों का कहना है, शी को भारत से तनाव कम करने में तेजी के लिए ट्रंप को शुक्रिया कहना चाहिए। टैरिफ को शी भारत को करीब लाने के अवसर में बदल रहे हैं, तो पुतिन से पुराने संबंधों को मान्यता देने का मौका। कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, अजरबैजान, आर्मीनिया, कंबोडिया, मिस्र, मालदीव, नेपाल, तुर्किये, मलयेशिया व म्यांमार के नेताओं की शिरकत से चीन की अहमियत दिख रही है। सम्मेलन के बाद चीन सैन्य परेड में नई मिसाइलों व लड़ाकू विमानों का प्रदर्शन करेगा। शी इतिहास, कूटनीति व सैन्य शक्ति से उस वैश्विक व्यवस्था को नया आकार देने की कोशिश कर रहे हैं जिस पर अमेरिका का वर्चस्व है।
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के फेलो जोनाथन जिन का कहना है, 20 देशों के नेताओं का आना शी की विदेश नीति की सफलता दर्शाता है। इनमें सबसे अहम मौजूदगी पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की है। इसके बाद शी द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 80वीं वर्षगांठ पर बीजिंग में सैन्य परेड की अध्यक्षता करेंगे।
अमेरिकी प्रभुत्व को कम करने का प्रयास
हाल तक चीन की रूस से नजदीकी अमेरिका पर दबाव डालती थी, पर हाल में ट्रंप ने पुतिन की तारीफ और युद्ध समाप्त करने के लिए यूक्रेन से जमीन देने की बात कहकर रूस का पलड़ा भारी कर दिया। शी-पुतिन सम्मेलन का इस्तेमाल ऐसी दुनिया के सपने को आगे बढ़ाने के लिए करेंगे, जहां अमेरिका का प्रभुत्व कम हो।
उभरती अर्थव्यवस्थाएं आई एकसाथ
पुतिन-मोदी के साथ तुर्किये, मिस्र, मलयेशिया और पाकिस्तान सहित कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं का आना, यूरोपीय व एशियाई देशों के बीच अमेरिकी वर्चस्व में आती कमी को दिखाता है। यूरोपीय देशों के बीच तब नाराजगी दिखी, जब शांति वार्ता से बाहर रहे यूरोपीय नेताओं को यूक्रेन में शांति शर्तों पर रूसी मांगों के आगे न झुकने के लिए ट्रंप को वाशिंगटन जाना पड़ा। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के विशेषज्ञ अली वाइन ने कहा, कई देश अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अस्थिरता पैदा करने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं।
अमेरिका-रूस के संबंधों पर हुई चर्चा
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एससीओ सम्मेलन शुरू होने से पहले शी जिनपिंग के साथ बैठक की। इसमें मॉस्को-बीजिंग संबंधों के अलावा रूस-अमेरिका के बीच हालिया संपर्कों के बारे में चर्चा हुई। पुतिन ने इसी माह के शुरू में अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत की थी।
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उन्होंने विश्वास जताया कि सभी पक्षों के साझा प्रयासों से, शिखर सम्मेलन सफल होगा और एससीओ निश्चित तौर पर और भी बड़ी भूमिका निभाएगा और अधिक प्रगति हासिल करेगा। जिनपिंग ने कहा, यह संगठन सदस्य देशों के बीच एकता और सहयोग को बढ़ावा देने, वैश्विक दक्षिण की ताकत को एकजुट करने और मानव सभ्यता की और अधिक प्रगति को आगे बढ़ाने में और बड़ा योगदान देगा।
गौरतलब है कि जून, 2001 में शंघाई में स्थापित एससीओ छह संस्थापक सदस्यों से बढ़कर 26 देशों के परिवार में बदल चुका है, जिसमें 10 सदस्य देश, दो पर्यवेक्षक और एशिया, यूरोप और अफ्रीका में फैले 14 संवाद साझेदार शामिल हैं। एजेंसी
दुनियाभर के नेता आज करेंगे वैश्विक मुद्दों पर मंथन
शिखर सम्मेलन में परस्पर संवाद का मुख्य आयोजन सोमवार को होगा, जिसमें 10 सदस्य देशों के साथ ही आमंत्रित वैश्विक नेता तमाम अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी-अपनी बात रखेंगे। चीन ने इस बार सदस्य देशों के अलावा 20 विदेशी नेताओं और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस सहित 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों को आमंत्रित किया है।
मोदी के भाषण पर टिकीं नजरें
एससीओ शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी के भाषण पर दुनियाभर की उत्सुकता से नजरें टिकी हुई हैं। इस सम्मेलन से सदस्य देशों के संबंधों के लिए एक नया रोडमैप तैयार होने की व्यापक उम्मीद है। प्रमुख उभरते बाजारों और चीन, रूस और भारत जैसे विकासशील देशों के साथ एससीओ दुनिया की लगभग आधी आबादी और वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक-चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। सदस्य देशों से अगले दशक के लिए संगठन की विकास रणनीति सहित प्रमुख दस्तावेज को अपनाने की उम्मीद है।
एससीओ सम्मेलन से रुतबा बढ़ाने की कोशिश में जिनपिंग
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक को चीन दुनिया में अपना रुतबा बढ़ाने और अमेरिकी वर्चस्व को कमतर करने के मौके के तौर पर भी देख रहा है। तियानजिन की बैठक को चीन एससीओ के इतिहास का सबसे बड़ा सम्मेलन बता रहा है। रूसी राष्ट्रपति समेत 20 देशों के शासनाध्यक्षों की मौजूदगी, सम्मेलन के बाद सैन्य परेड व गौरवशाली इतिहास का इस्तेमाल चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने में करेंगे। शी के लिए भी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ दुनिया में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता।
विश्लेषकों का कहना है, शी को भारत से तनाव कम करने में तेजी के लिए ट्रंप को शुक्रिया कहना चाहिए। टैरिफ को शी भारत को करीब लाने के अवसर में बदल रहे हैं, तो पुतिन से पुराने संबंधों को मान्यता देने का मौका। कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, अजरबैजान, आर्मीनिया, कंबोडिया, मिस्र, मालदीव, नेपाल, तुर्किये, मलयेशिया व म्यांमार के नेताओं की शिरकत से चीन की अहमियत दिख रही है। सम्मेलन के बाद चीन सैन्य परेड में नई मिसाइलों व लड़ाकू विमानों का प्रदर्शन करेगा। शी इतिहास, कूटनीति व सैन्य शक्ति से उस वैश्विक व्यवस्था को नया आकार देने की कोशिश कर रहे हैं जिस पर अमेरिका का वर्चस्व है।
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के फेलो जोनाथन जिन का कहना है, 20 देशों के नेताओं का आना शी की विदेश नीति की सफलता दर्शाता है। इनमें सबसे अहम मौजूदगी पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की है। इसके बाद शी द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 80वीं वर्षगांठ पर बीजिंग में सैन्य परेड की अध्यक्षता करेंगे।
अमेरिकी प्रभुत्व को कम करने का प्रयास
हाल तक चीन की रूस से नजदीकी अमेरिका पर दबाव डालती थी, पर हाल में ट्रंप ने पुतिन की तारीफ और युद्ध समाप्त करने के लिए यूक्रेन से जमीन देने की बात कहकर रूस का पलड़ा भारी कर दिया। शी-पुतिन सम्मेलन का इस्तेमाल ऐसी दुनिया के सपने को आगे बढ़ाने के लिए करेंगे, जहां अमेरिका का प्रभुत्व कम हो।
उभरती अर्थव्यवस्थाएं आई एकसाथ
पुतिन-मोदी के साथ तुर्किये, मिस्र, मलयेशिया और पाकिस्तान सहित कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं का आना, यूरोपीय व एशियाई देशों के बीच अमेरिकी वर्चस्व में आती कमी को दिखाता है। यूरोपीय देशों के बीच तब नाराजगी दिखी, जब शांति वार्ता से बाहर रहे यूरोपीय नेताओं को यूक्रेन में शांति शर्तों पर रूसी मांगों के आगे न झुकने के लिए ट्रंप को वाशिंगटन जाना पड़ा। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के विशेषज्ञ अली वाइन ने कहा, कई देश अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अस्थिरता पैदा करने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं।
अमेरिका-रूस के संबंधों पर हुई चर्चा
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एससीओ सम्मेलन शुरू होने से पहले शी जिनपिंग के साथ बैठक की। इसमें मॉस्को-बीजिंग संबंधों के अलावा रूस-अमेरिका के बीच हालिया संपर्कों के बारे में चर्चा हुई। पुतिन ने इसी माह के शुरू में अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत की थी।
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