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Twitter-Meta & Amazon layoffs: कर्मचारियों को नौकरी से क्यों निकाल रहीं बड़ी कंपनियां, भारत में इसका क्या असर?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु मिश्रा Updated Tue, 15 Nov 2022 03:08 PM IST
सार

Recession: सवाल उठता है कि आखिर अचानक से बड़ी कंपनियां क्यों लोगों को नौकरी से निकालने लगी हैं?  भारत में इसका क्या असर पड़ेगा? क्या ये मंदी की आहट है? आइए समझते हैं... 

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Twitter-Meta & Amazon layoffs: Why are big companies firing employees, what is its impact in India?
मंदी की आहट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पिछले कुछ महीने में दुनियाभर की कई कंपनियों ने बड़ी संख्या में अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकाल है। ट्विटर और मेटा के बाद अब अमेजन भी इसकी तैयारी कर रही है। इनके अलावा भी स्नैपचैट, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल और एपल जैसी कई कंपनियां छंटनी कर रही हैं।
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मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अलग-अलग कंपनियों ने पिछले दो महीने के अंदर डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को नौकरी से बाहर किया है। ये सिलसिला अभी भी जारी है। कई बड़े अर्थशास्त्री आशंका व्यक्त कर चुके हैं कि आने वाले समय में इससे भी बुरा दौर देखने को मिल सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अचानक से बड़ी कंपनियां क्यों लोगों को नौकरी से निकालने लगी हैं?  भारत में इसका क्या असर पड़ेगा? क्या ये मंदी की आहट है? आइए समझते हैं... 

पहले जानिए किस कंपनी ने कितने कर्मचारियों को नौकरी से निकाला? 

ट्विटर

एलन मस्क ने जब से माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर का अधिग्रहण किया है, तब से  हर रोज मस्क नए एलान कर रहे हैं। ट्विटर से अब तक लगभग 3,700 लोगों को नौकरी से निकाला जा चुका है। आने वाले दिनों में और भी छंटनी हो सकती है। कंपनी ने नई भर्ती पर भी रोक लगा दी है। कंपनी का अधिग्रहण करने के बाद जिन लोगों को सबसे पहले बाहर किया गया उनमें ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल, सीएफओ नेड सेगल और लीगल हेड विजया गाड्डे शामिल थे।  
 

मेटा (फेसबुक) 
सोशल मीडिया साइट फैसबुक (मेटा) ने भी करीब 11 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। कई तो ऐसे कर्मचारी थे, जिन्हें जॉइन कराने के अगले ही दिन नौकरी से बाहर कर दिया गया। अलग-अलग रिपोर्ट्स का दावा है कि अभी ये संख्या और भी बढ़ सकती है। करीब 20 हजार कर्मचारियों को फेसबुक नौकरी से निकाल सकता है। मेटा के सबसे बड़े शेयरधारकों में से एक अल्टीमीटर कैपिटल मैनेजमेंट ने पिछले महीने मार्क जुकरबर्ग को एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें लोगों से अपने वित्त को ठीक करने के लिए लागत में कटौती करने का आग्रह किया गया था।
 
 

माइक्रोसॉफ्ट
तकनीक के मामले में अग्रणी होने के बावजूद माइक्रोसॉफ्ट ने आर्थिक नुकसान कम करने के लिए छंटनी कर रही है। कंपनी ने पिछले महीने लगभग एक हजार कर्मचारियों की छंटनी की है, जो इस साल कंपनी में तीसरे दौर की कटौती थी।
  
नेटफ्लिक्स

ओटीटी स्ट्रीमिंग कंपनी नेटफ्लिक्स ने भी कर्मचारियों के छंटनी की प्रक्रिया शुरू कर दी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, कंपनी ने अब तक करीब 500 से ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। आने वाले दिनों में ये संख्या और भी बढ़ सकती है। 
 
स्नैपचैट 

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्नैपचैट ने भी इस साल अगस्त में अपने 20 फीसदी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। अगर संख्या देखें तो करीब 1,500 कर्मचारियों की नौकरी गई है। कंपनी के सीईओ इवान स्पीगल ने एक इंटरनल मेल में कहा था कि 'किसी भी स्थिति में स्नैप के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए नौकरी में कटौती करनी पड़ रही है।' 
 
अमेजन

अमेजन ने भी बड़े पैमाने पर छंटनी की तैयारी कर ली है। न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी बहुत जल्द 10,000 कर्मचारियों को निकाल सकती है। इसके साथ ही कंपनी ने नई भर्ती पर भी रोक लगा दी है। अगर छंटनी की कुल संख्या 10,000 के आसपास रहती है, तो यह अमेजन के इतिहास में सबसे बड़ी छंटनी होगी। हालांकि यह कंपनी के कार्यबल के एक प्रतिशत से भी कम है, क्योंकि अमेजन विश्व स्तर पर 16 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है।

इन बड़ी कंपनियों में भी हुई छंटनी
हार्ड ड्राइव बनाने वाली कंपनी सी-गेट टेक्नोलॉजी ने पिछले महीने बताया था कि आठ फीसदी कर्मचारियों की छंटने करने की तैयारी है। धीरे-धीरे इसपर काम भी शुरू किया जा चुका है। कंपनी करीब तीन हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकालेगी। इसी तरह इंटेल ने अगले साल तक करीब 18 हजार करोड़ रुपये बचत करने की प्लानिंग की है। इसके लिए बड़ी संख्या में छंटनी की तैयारी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, करीब 20 फीसदी कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा सकता है। 
 
अमेरिकन कंपनी क्वॉइनबेस ने अपने 18 फीसदी स्टाफ को निकाल दिया है। आंकड़ों पर नजर डालें तो छंटनी के चलते करीब 1,100 कर्मचारियों की नौकरी गई है। कंपनी का कहना है कि मंदी की आशंका को देखते हुए कॉस्ट कटिंग करना जरूरी हो गया था। ई-कॉमर्स कंपनी शॉपिफाई ने भी 10 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी का एलान किया है। इसके चलते एक हजार से ज्यादा कर्मचारियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। इसके अलावा लिफ्ट, स्ट्राइप, ओपनडोर समेत कई कंपनियों ने 30 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। 

इसके साथ ही एपल और गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनियां भी खर्चे घटाने के लिए अलग-अलग उपायों पर काम कर रही हैं। हालांकि, दोनों ने अब तक किसी तरह की छंटनी का एलान नहीं किया गया है। 

नई भर्तियों पर भी लगाई रोक
कई कंपनियों ने नई भर्ती प्रक्रिया पर भी रोक लगा दी है। इसमें भारतीय कंपनियां भी शामिल हैं। देश की 10 बड़ी आईटी कंपनियों में से पांच के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। आईटी कंपनियों की कुल लागत में 55 से 65 फीसदी हिस्सेदारी कर्मचारियों पर आने वाले खर्च की होती है। यही कारण है कि कंपनियों ने भर्ती प्रक्रिया सुस्त कर दी है। विप्रो के कर्मचारियों की संख्या 6.5 फीसदी घटी है। एलएंडटी ने पांच फीसदी और टेक महिंद्रा ने 1.4 फीसदी हेडकाउंट घटा दिया। कॉस्ट कटिंग के नाम पर कंपनियां कई अन्य तरह के उपाय भी अपना रहीं हैं। कंपनियों ने एजेंसियों के जरिए जो हायरिंग की थी, उन्हें भी बंद कर दी है। इसके अलावा थर्ड पार्टी सुविधा लेने का काम भी काफी कम कर दिया है। 
 

क्या मंदी का दौर आ चुका है? 
महंगाई और कंपनियों से छंटनी की प्रक्रिया पर सीएनएन को अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस ने एक इंटरव्यू दिया है। उन्होंने कहा, 'मौजूदा समय अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी खराब है। आर्थिक गतिविधियों में रुकावट शुरू हो चुकी है। आप कई सेक्टर में छंटनी की प्रक्रिया तेज होते हुए देख सकते हैं। ऐसे में अगर अभी मंदी का दौर नहीं है, तो जल्द ही हम उस दौर में पहुंच जाएंगे।'
 
इसी तरह कई अन्य आर्थिक मामलों के जानकार और कंपनियों के मालिक मंदी की आशंका जता चुके हैं। ब्रोकरेज फर्म नोमुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले सालभर के अंदर दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों को मंदी का सबसे बुरा दौर देखने को मिल सकता है। इसका सबसे ज्यादा असर टेक कंपनियों पर ही पड़ेगा। 5-6 महीने टेक कंपनियों के लिए काफी बुरे साबित होंगे। 
 
जुलाई में विश्व बैंक का भी एक बयान आया था। कहा गया था कि इस साल के अंत तक दुनिया की आर्थिक प्रगति कम होने की आशंका है। इसलिए ज्यादातर देशों को आर्थिक मंदी की तैयारी कर लेनी चाहिए। पूरी दुनिया ज्यादा महंगाई और कम विकास दर से जूझ रही है, जिसकी वजह से 1970 के दशक जैसी मंदी आ सकती है। दुनियाभर में इसका असर दिखने भी लगा है। 

भारत में इसका क्या असर पड़ेगा?
हमने इसे समझने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. प्रहलाद से बात की। उन्होंने कहा, 'दुनियाभर के आर्थिक गतिविधियों में गिरावट और रुकावट आई है। इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मंदी की आहट आने लगी है।' 
 
अर्थशास्त्री प्रो. प्रदीप माहेश्वरी कहते हैं, 'कोरोना और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूरी दुनिया की आर्थिक गतिविधि पर असर पड़ा है। इसका नतीजा महंगाई और बड़ी कंपनियों की ओर से छंटनी की प्रक्रिया के रूप में देखने को मिल रहा है। मंदी के इस दौर का सबसे बुरा असर अमेरिका, यूरोप में ही देखने को मिलेगा। ब्रिटेन जैसे देश भी इसकी चपेट में आएंगे। हालांकि, भारत को बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। यहां इसका कम ही असर देखने को मिलेगा।'
 
प्रो. माहेश्वरी के अनुसार, 'आईएमएफ ने वित्तीय वर्ष 2023 के लिए अनुमान लगाया है कि भारत की जीडीपी 6.1 फीसदी रहेगी। चीन, अमेरिका जैसे अन्य देशों की तुलना में ये काफी अधिक है। मंदी के खतरे के बीच ये आंकड़े भारत को राहत देने वाले हैं।'

अब मंदी को भी समझ लेते हैं
इसे प्रो. प्रहलाद ने समझाया। उन्होंने कहा, 'जब किसी भी देश के जीडीपी में लगातार छह महीने यानी दो तिमाही तक गिरावट आती है तो इसे अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है। वहीं, अगर लगातार दो तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आती है तो उसे डिप्रेशन कहा जाता है। जो काफी भयावह होता है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1930 में इस तरह का डिप्रेशन देखने को मिला था।'
 
प्रो. प्रहलाद आगे कहते हैं, 'जब अर्थव्यवस्था में लगातार कुछ समय तक विकास थम जाता है, रोजगार कम हो जाता है, महंगाई बढ़ने लगती है और लोगों की आमदनी घटने लगती है तो इसे आर्थिक मंदी कहा जाता है। पूरी दुनिया में चार बार आर्थिक मंदी आ चुकी है। पहली बार 1975 में, दूसरी बार 1982 में, तीसरी बार 1991 में और चौथी बार 2008 में आर्थिक मंदी आई थी। अब एक बार फिर से इसकी आशंका जताई जा रही है।'
 
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