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UN Votings: भारत ने फलस्तीन के समर्थन में मतदान किया, 145 देश साथ; UNSC में ईरान पर बैन को हटाने के खिलाफ वोट

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला। Published by: ज्योति भास्कर Updated Fri, 19 Sep 2025 09:51 PM IST
सार

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया रोकने के लिए प्रस्ताव लाया गया, लेकिन यह पास नहीं हो सका। वहीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को वर्चुअल भाषण देने की अनुमति देने का प्रस्ताव लाया गया। इस प्रस्ताव को 145 देशों का समर्थन मिला, जबकि पांच देशों ने विरोध किया और छह देशों ने मतदान से दूरी बनाई। भारत ने इसके पक्ष में वोट किया है।

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UN Votings India voted in support of Palestine UNSC voted against lifting the ban on Iran know hindi details
संयुक्त राष्ट्र (फाइल) - फोटो : एएनआई
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विस्तार
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संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में भारत ने उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को वर्चुअल माध्यम से भाषण देने की अनुमति देने की बात थी। यह कदम तब उठाया गया जब ट्रंप प्रशासन ने अब्बास का अमेरिका का वीजा रद्द कर दिया। बता दें कि इस प्रस्ताव को भारी समर्थन मिला, इसमें 145 देशों ने इसके पक्ष में वोट दिया। वहीं पांच देश- इस्राइल, अमेरिका, पलाऊ, पराग्वे और नाउरू ने इसका विरोध किया, जबकि छह देशों ने मतदान से दूरी बनाए रखी। फलस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास अगले हफ्ते होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में वीडियो लिंक के जरिए दुनिया को संबोधित करेंगे। यह फैसला फलस्तीन के पक्ष में एक बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है, जबकि अमेरिका और इजराइल को इसमें झटका लगा है।

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25 सितंबर को चलाया जाएगा अब्बास का वीडियो संदेश
193 सदस्यीय महासभा में यह प्रस्ताव 'स्टेट ऑफ फलस्तीन की भागीदारी' शीर्षक से पेश किया गया। अब इस प्रस्ताव के तहत, 25 सितंबर को राष्ट्रपति महमूद अब्बास का पहले से रिकॉर्ड किया गया वीडियो संदेश महासभा हॉल में चलाया जाएगा, जिसे वहां मौजूद उनके प्रतिनिधि की तरफ से औपचारिक रूप से पेश किया जाएगा।
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संयुक्त राष्ट्र में गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य है फलस्तीन
महासभा का 80वां सत्र 23 सितंबर से शुरू होगा, जिसमें 25 सितंबर को फलस्तीनी राष्ट्रपति का संबोधन तय है। इसके अलावा, 22 सितंबर को होने वाले फलस्तीन मुद्दे और दो-राष्ट्र समाधान पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भी फलस्तीन वीडियो कॉन्फ्रेंस या रिकॉर्डेड संदेश के जरिए भाग ले सकेगा। फिलहाल, फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा हासिल है, जिसका मतलब है कि वह बैठकों में भाग ले सकता है लेकिन मतदान नहीं कर सकता। संयुक्त राष्ट्र में यह दर्जा सिर्फ दो देशों को मिला है- फलस्तीन और वैटिकन सिटी। भारत ने 1988 में फलस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी थी और लगातार दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करता रहा है।

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ईरान पर लगे 'स्नैपबैक' प्रतिबंध हटाने का प्रस्ताव खारिज
वहीं ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सुरक्षा परिषद में शुक्रवार को एक अहम प्रस्ताव पर वोटिंग हुई, लेकिन यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका। इस प्रस्ताव का मकसद ईरान पर दोबारा लगने वाले कड़े प्रतिबंधों को रोकना था। अब तय समयसीमा के मुताबिक सितंबर के अंत तक ये प्रतिबंध अपने आप लागू हो जाएंगे।

क्या है मामला?
2015 में ईरान और विश्व शक्तियों के बीच परमाणु समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत ईरान पर लगे कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटा दिए गए थे। लेकिन इस समझौते में स्नैपबैक मैकेनिज्म नाम का प्रावधान है। इसका मतलब है कि अगर ईरान समझौते की शर्तें नहीं मानता, तो पहले के सभी प्रतिबंध अपने आप फिर से लागू हो जाएंगे। यूरोप के तीन बड़े देश- फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन- ने पिछले महीने यह मैकेनिज्म सक्रिय कर दिया था। इनके मुताबिक ईरान ने समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया है, इसलिए अब उस पर फिर से प्रतिबंध लगेंगे। इन प्रतिबंधों में हथियारों की खरीद-बिक्री पर रोक, बैलिस्टिक मिसाइल विकास पर प्रतिबंध, संपत्ति फ्रीज करना और यात्रा पर रोक और परमाणु तकनीक से जुड़ी गतिविधियों पर पूरी तरह बैन शामिल हैं।

वोटिंग में कौन किसके साथ?
इस प्रस्ताव को दक्षिण कोरिया, जो इस समय सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष है, ने पेश किया था। प्रस्ताव को पास करने के लिए 15 सदस्य देशों में से कम से कम 9 वोट चाहिए थे, लेकिन इसे सिर्फ चार देशों- चीन, रूस, पाकिस्तान और अल्जीरिया- का समर्थन मिला। नतीजतन, प्रस्ताव खारिज हो गया और अब प्रतिबंध लगना लगभग तय है। रूस के संयुक्त राष्ट्र दूत वासिली नेबेंजिया ने वोटिंग से पहले कहा, 'कुछ यूरोपीय देश इस परिषद का इस्तेमाल अपने राजनीतिक मकसद के लिए कर रहे हैं और ईरान पर गलत तरीके से दबाव बना रहे हैं।'

यूरोप और ईरान के बीच असफल कूटनीति
पिछले कई हफ्तों से यूरोपीय देशों और ईरान के बीच गहन बातचीत हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोंने इस्राइल के एक चैनल को दिए इंटरव्यू में साफ कहा, 'हां, प्रतिबंध लगना लगभग तय है क्योंकि ईरान की ओर से कोई गंभीर कदम नहीं उठाया गया।' यूरोपीय संघ की शीर्ष राजनयिक काया कैलास ने चेतावनी दी कि 'ईरान के पास समाधान निकालने का मौका बहुत तेजी से खत्म हो रहा है। उसे तुरंत अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को सभी परमाणु स्थलों का निरीक्षण करने देना होगा।'

ईरान का पलटवार
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने इस फैसले को गैरकानूनी और अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि ईरान ने आईएईए के साथ समझौता किया है, जिसके तहत एजेंसी को सभी परमाणु स्थलों तक पहुंच दी जाएगी। आईएईए प्रमुख राफेल ग्रोसी ने बताया कि इस समझौते के तहत निरीक्षण की प्रक्रिया और रिपोर्टिंग के स्पष्ट नियम तय किए गए हैं, लेकिन निरीक्षण कब शुरू होगा, यह अभी तय नहीं है।

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हालिया युद्ध ने स्थिति और बिगाड़ी
जून में इस्राइल और अमेरिका ने ईरान के कई परमाणु स्थलों पर हवाई हमले किए थे। इस 12 दिन के युद्ध ने ईरान के परमाणु भंडार और हथियार-स्तरीय यूरेनियम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। स्नैपबैक प्रतिबंध लागू होने के बाद ईरान और पश्चिमी देशों के बीच तनाव और बढ़ने की आशंका है। पहले ईरान ने चेतावनी दी थी कि अगर प्रतिबंध दोबारा लगाए गए, तो वह परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी)से बाहर हो सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो ईरान उत्तर कोरिया की तरह परमाणु हथियार विकसित करने की राह पर जा सकता है।

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